दागदार अतीत से गलत धारणा बनेगी
केंद्र सरकार के सभी सचिवालयों, पब्लिक सेक्टर के बैंकों और अन्य प्रमुख को भेजे गए आदेश में कहा गया है कि उपशमन अवधि (रिटायरमेंट की अवधि से पहले) को पूरा किए बिना अगर किसी अधिकारी के नियुक्ति के प्रस्ताव को स्वीकार किया जाता है तो इसे गंभीर कदाचार माना जाएगा. केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के ओएसडी राजीव वर्मा की ओर से भेजे गए आदेश में कहा गया है कि यह देखा गया है कि कभी-कभी सरकारी संगठन अपनी कार्यात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए रिटायर सरकारी अधिकारो को सलाहकार या विशेषक्ष के तौर पर अनुबंधित करता है और उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाता है. लेकिन विजिलेंस की परिभाषित प्रक्रिया के अभाव में अगर कोई विभाग किसी अधिकारी की नियुक्ति करता है तो कभी-कभी गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है.
आदेश में कहा गया है कि जब किसी अधिकारी का दागदार अतीत हो या उसके खिलाफ कोई केस पेंडिंग हो तो मामला खराब हो जाता है. इससे समाज में गलत धारणा बनती है. इन स्थिति को देखते हुए अखिल भारतीय सेवा के केंद्र सरकार में ग्रुप ए पद पर तैनात अधिकारी को किसी विभाग द्वारा नियुक्त किए जाने से पहले संबंधित अधिकारी के विभाग के विजिलेंस से क्लियरेंस अनिवार्य रूप से लेना चाहिए.
क्या था पश्चिम बंगाल का मामला
1987 बैच के आईएएस अधिकारी अलापन बंदोपाध्याय 31 मई को रिटायर होने वाले थे. उनपर केंद्र सरकार ने नोटस जारी किया था. नोटिस का जवाब तीन दिनों के अंदर मांगा गया था. नोटिस में कहा गया था कि क्यों न उनपर Disaster Management Act के तहत काम न करने के कारण कार्रवाई की जाए. इस एक्ट के तहत अधिकतम एक साल की जेल है. इस नोटिस का जवाब देने बंदोपाध्याय दिल्ली गए लेकिन इससे पहले ममता बनर्जी ने कहा कि बंदोपाध्याय सरकार में सलाहकार के पद पर तैनात होंगे. बनर्जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने राज्य के कोविड की लड़ाई के बीच अलापन को केंद्र में ट्रांसफर करने के केंद्र के आदेश का पालन नहीं करेंगी.
बंदोपाध्याय को तीन महीने का कार्यकाल विस्तार मिला था, जिसे खारिज करते हुए उन्होंने रिटायरमेंट का फैसला लिया. वहीं, केंद्र सरकार ने उन्हें प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली रिपोर्ट करने का आदेश दिया था उन्हें दिल्ली स्थिति केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के ऑफिस में रिपोर्ट करना था, लेकिन उन्होंने न जाने का फैसला लिया और सीएम के साथ मीटिंग करते रहे. इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से अनुशासनात्मक फैसला लिए जाने की चर्चा थी, जिसके पहले ही उन्होंने रिटायरमेंट का फैसला ले लिया. इससे केंद्र सरकार की किरकिरी हुई थी.