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नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे?

बिहार में विधानसभा के चुनाव हैं. एनडीए की ओर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है. फिर भी कुछ युवा चेहरे हैं, जो नीतीश के सामने चुनौती पेश करने की कोशिश कर रहे हैं.

इस साल के अंत तक बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं. बीजेपी की ओर से ये साफ कर दिया गया है कि गठबंधन का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे. वहीं विपक्ष में अब तक गठबंधन की कोई साफ तस्वीर उभर कर सामने नहीं आई है. तेजस्वी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस एक साथ दिख रहे हैं. लेकिन लोकसभा में साथ रहे जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी के सुर गाहे-बगाहे बदलते दिख रहे हैं. ऐसे में नीतीश कुमार के सामने चुनौती के नाम पर दिख रहे हैं कुछ युवा चेहरे, जो इस विधानसभा चुनाव में प्रभावी साबित हो सकते हैं.

1. तेजस्वी यादव

नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? तेजस्वी यादव (फाइल फोटो)

तेजस्वी यादव बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के छोटे बेटे हैं और बिहार विधानसभा में फिलहाल नेता प्रतिपक्ष हैं. 2015 में जब बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए थे तो लालू यादव और नीतीश कुमार एक प्लेटफॉर्म पर साथ खड़े थे. सरकार भी बनाई थी और उस सरकार में तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन एक साल से थोड़ा ही ज्यादा वक्त बीता था कि नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़ दिया. तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. मिट्टी घोटाले और आईआरसीटीसी घोटाले में नाम घसीटा और खुद बीजेपी के साथ चले गए. तेजस्वी नेता प्रतिपक्ष बने. 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद, कांग्रेस, हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा, राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी और विकासशील इंसान पार्टी का गठबंधन बना था. लेकिन किशनगंज की सीट छोड़कर इस गठबंधन को कहीं सफलता नहीं मिली. नतीजा ये हुआ कि जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी ने तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए. मुजफ्फरपुर के चमकी बुखार और फिर पटना में आई बाढ़ में भी तेजस्वी यादव खुलकर सामने नहीं आए, जिससे विपक्षियों के साथ ही उनके अपने भी हैरान रह गए. अब चुनाव सर पर हैं, तो तेजस्वी यादव ऐक्टिव दिख रहे हैं. क्या वो फिर से महागठबंधन बना पाएंगे या फिर इस बार वो चुनावी मैदान में अकेले उतरेंगे, ये तो वक्त बताएगा. लेकिन नीतीश के सामने जो भी थोड़ी-बहुत चुनौती दिख रही है, वो सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव की ओर से ही दिख रही है.

2. तेज प्रताप यादव

नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? तेज प्रताप यादव (फाइल फोटो)

तेज प्रताप यादव चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे लालू यादव के बड़े बेटे हैं. 2015 में जब आरजेडी-जदयू की गठबंधन की सरकार थी, तो तेज प्रताप यादव को स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा दिया गया था. लेकिन गठबंधन टूटने के बाद वो सिर्फ विधायक ही रहे. बिहार की राजनीति में उनकी ज्यादा चर्चा उनकी राजनीति से नहीं, उनके पारिवारिक कलह की वजह से हुई. पत्नी ऐश्वर्या को तलाक देने के फैसले के बाद तेज प्रताप यादव और उनका पूरा परिवार खूब चर्चा में रहा. लालू यादव के घर से रोते हुए निकलीं ऐश्वर्या की तस्वीर को सबने देखा था. रही सही कसर पूरी हो गई थी 2019 के लोकसभा चुनाव में. तेज प्रताप यादव के चहेतों को लोकसभा का टिकट नहीं मिला तो वो बागी हो गए. आरजेडी से अलग होकर लालू-राबड़ी मोर्चा बना लिया और सारण से खुद को लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया. जबकि इस सारण सीट से आरजेडी ने तेज प्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय को टिकट दिया था. हालांकि तेज प्रताप यादव यहां से चुनाव नहीं लड़े और फिर चंद्रिका राय भी यहां से हार गए. इसके बाद फरवरी, 2020 में चंद्रिका राय ने आरजेडी छोड़ दी. अब तेज प्रताप यादव अपने भाई तेजस्वी के साथ हैं. वो खुद को कृष्ण और अपने भाई तेजस्वी को अर्जुन बता रहे हैं. हाल ही में हुई गृहमंत्री अमित शाह की वर्चुअल रैली पर भी निशाना साध रहे हैं. कुल मिलाकर तेज प्रताप फिलहाल बिहार की सियासत में ऐक्टिव दिख रहे हैं. लेकिन उनकी सक्रियता से नीतीश कुमार को फिलहाल तो कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है, क्योंकि कब तेज प्रताप राजनीति छोड़कर वृंदावन चले जाएं, कोई नहीं जानता.

3. कन्हैया कुमार

नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? (कन्हैया कुमार, फाइल फोटो)

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार बेगुसराय से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. बीजेपी के कद्दावर नेता और केंद्र में मंत्री गिरिराज सिंह के हाथों उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. देशद्रोह के आरोपों का सामना कर रहे कन्हैया कुमार अपने भाषणों के लिए लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हैं. देश की संसद ने जब नागरिकता संशोधन कानून को पास कर दिया तो इसके विरोध में उठने वाली मुख आवाजों में एक आवाज कन्हैया कुमार की भी थी. उन्होंने लगातार एक महीने तक सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ बिहार के अलग-अलग राज्यों में यात्रा निकाली और फिर पटना के गांधी मैदान में उसका समापन किया. बिहार के मुजफ्फरपुर में जब चमकी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत हो गई थी, तब भी कन्हैया मुजफ्फरपुर पहुंचे थे और नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था. हालांकि उनके विरोधी पटना की बाढ़ में उनकी चुप्पी पर सवाल खड़े करते रहे हैं. इस कोरोना महामारी में भी जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है तो कन्हैया कुमार चुप हैं और उनके विरोध उनकी इस चुप्पी पर सवाल खड़े कर रहे हैं. कन्हैया कुमार इसका जवाब भी दे रहे हैं. लेकिन अच्छे भाषण वोट में तब्दील नहीं होते, ये कन्हैया भी जानते हैं. रही बात कन्हैया की वजह से नीतीश कुमार के नुकसान की तो बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि कन्हैया के मज़बूत होने से नीतीश को सिर्फ फायदा ही है, क्योंकि इसका सबसे बड़ा नुकसान तेजस्वी यादव को होगा.

4. चिराग पासवान

नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? (चिराग पासवान, फाइल फोटो)

चिराग पासवान केंद्र में मंत्री और भारतीय राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाने वाले राम विलास पासवान के बेटे हैं. फिलहाल बिहार की जुमई लोकसभा सीट से लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं. केंद्र की एनडीए सरकार की सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. इससे पहले लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उनके पिता राम विलास पासवान थे, लेकिन अब पार्टी को संभालने की जिम्मेदारी चिराग की है. चिराग ने अपना करियर फिल्मों से शुरू किया था. बाद में वो राजनीति में आ गए और अब बिहार की युवा राजनीति के एक अहम चेहरे हैं. यही वजह है कि उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट का नाम बदलकर युवा बिहारी चिराग पासवान कर दिया है. अभी हाल ही में जब प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को लेकर विपक्ष नीतीश कुमार से सवाल कर रहा था, तो चिराग पासवान ने भी नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली पर असंतोष जताया था. वहीं मीडिया की ओर से उनसे जब एक सवाल हुआ कि 15 साल से बिहार के सीएम की कुर्सी पर काबिज नीतीश कुमार की जगह किसी और को देखना पसंद करेंगे तो चिराग ने कह दिया था कि वो बीजेपी के साथ हैं और बीजेपी जो भी फैसला लेगी, वो उन्हें मंजूर होगा. इसके बाद से ही एनडीए के दोनों घटक दल जेडीयू और लोजपा के बीच खिंचतान दिखने लगी है. जेडीयू की ओर से चिराग पासवान पर लगातार हमला किया जा रहा है. वहीं चिराग पासवान की ओर से कहा जा रहा है कि फैसला बीजेपी को करना है. और ये तब कहा जा रहा है, जब अमित शाह इस बात को दोहरा चुके हैं कि बिहार का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.

5. प्रिंस राज नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? (प्रिंस राज, फाइल फोटो)

प्रिंस राज राम विलास पासवान के भाई राम चंद्र पासवान के बेटे हैं. वो फिलहाल समस्तीपुर लोकसभा से सांसद हैं और बिहार लोक जन शक्ति पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. उनकी पढ़ाई ब्रिटेन के हर्टफोर्डशायर यूनिवर्सिटी से हुई है. पढ़ाई खत्म करने के बाद भारत लौटे प्रिंस की राजनीति की शुरुआत साल 2019 में ही हुई है. उनके पिता और समस्तीपुर से सांसद रहे राम चंद्र पासवान की जुलाई, 2019 में हार्ट अटैक से मौत हो गई. इसके बाद समस्तीपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने थे. पार्टी की ओर से प्रिंस राज उम्मीदवार बने और उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता अशोक कुमार को मात दी. इसके बाद अक्टूबर 2019 में प्रिंस राज बिहार लोजपा के अध्यक्ष बने. उनसे पहले पशुपति कुमार पारस बिहार लोजपा के अध्यक्ष थे, जो रिश्ते में उनके चाचा हैं. राम विलास पासवान और चिराग पासवान ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए युवा चेहरे को तरजीह दी, जो विदेश से पढ़कर आया है, अंग्रेजी बोलता है और युवाओं के बीच लोकप्रिय है. इस बीच एनडीए के दो सहयोगी दल जेडीयू और लोजपा के बीच के रिश्ते तल्ख होते दिख रहे हैं. ऐसे में पहले चिराग पासवान और अब प्रिंस राज, दोनों मिलकर नीतीश कुमार के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं. हालांकि चिराग ने खुद ही साफ कर दिया है कि बीजेपी आलाकमान जिसे कहेगा, बिहार में चुनाव उसी के नेतृत्व में होगा. और बीजेपी आलाकमान ने एक बार फिर से नीतीश कुमार के चेहरे पर अपनी मुहर लगा दी है.

6.आकाश सिंह

नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? (आकाश सिंह, फाइल फोटो)

आकाश सिंह कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह के बेटे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट से राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं. हालांकि उन्हें बीजेपी के दिग्गत नेता और तब केंद्र में कृषि मंत्री रहे राधा मोहन सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. उस चुनाव में ये सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी. तब पांच बार के सांसद रहे राधा मोहन सिंह के चुनाव प्रचार के लिए खुद तब के बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार के लिए आना पड़ा था. तब कहा जा रहा था कि लड़ाई 70 साल के अनुभवी बनान 27 साल के युवा की है. 27 साल का युवा हार तो गया, लेकिन जीतने के बाद भी राधा मोहन सिंह केंद्र में दोबारा मंत्री नहीं बन पाए. आकाश सिंह दार्जिलिंग के सेंट पॉल और लंदन की ब्रूनेल यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं. जब पूर्वी चंपारण मोतिहारी लोकसभा सीट हुआ करती थी, तो आकाश सिंह के पिता अखिलेश सिंह भी यहां से आरजेडी के टिकट पर सांसद रहे थे. 2019 के चुनाव में अखिलेश सिंह के जोर लगाने के बाद भी आकाश सिंह हार गए.आकाश चुनाव लड़े थे रालोसपा से. उनके पिता अखिलेश थे कांग्रेस के चुनाव प्रचार के प्रभारी और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद. इस गठबंधन को जोड़ने का काम कर रही थी आरजेडी. लेकिन अब तो इस गठबंधन का कोई नामलेवा ही फिलहाल नहीं दिख रहा है. अब जब बिहार विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं तो बिखरे हुए गठबंधन में आकाश कितनी बड़ी चुनौत खड़ी कर पाएंगे, ये वक्त ही बताएगा.

7. संतोष सुमन मांझी

नीतीश की सियासी हैसियत को कितनी बड़ी चुनौती दे पाएंगे ये युवा चेहरे? (संतोष सुमन मांझी, फाइल फोटो) संतोष सुमन मांझी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी के बेटे हैं. वो फिलहाल अपने पिता की पार्टी हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा से बिहार विधानपरिषद के सदस्य हैं. साल 2014 से पहले संतोष मांझी ब्लॉक लेवल पर बीजेपी की राजनीति करते आए थे. तब जीतन राम मांझी ने इसे परिवार में लोकतंत्र का नाम दिया था. लेकिन मार्च 2015 में गया की एक रैली में जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के नेता के तौर पर अपने बेटे संतोष को लॉन्च किया. साल 2018 में जब जीतन राम मांझी एनडीए से अलग होकर आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन के साथ गए तो अप्रैल 2018 में संतोष सुमन मांझी को गठबंधन की ओर से बिहार विधानपरिषद का सदस्य बना दिया गया. इसके बाद से ही संतोष सुमन मांझी राजनीति में सक्रिय हैं. हालांकि 2019 में जब जीतन राम मांझी समेत हम के सारे उम्मीदवार चुनाव हार गए तो संतोष सुमन की राजनीति को धक्का लगा. अब भी हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा, जीतन राम मांझी और संतोष सुमन मांझी उस हार से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. और इसी का नतीजा है कि संतोष सुमन कहते हैं कि जब तेजस्वी यादव और चिराग पासवान का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर सामने आ सकता है तो मेरा क्यों नहीं. साफ है कि संतोष अपने पिता जीतन राम मांझी को फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने की ख्वाहिश रखते हैं. लेकिन न तो एनडीए में और न ही महागठबंधन में उनकी ये ख्वाहिश पूरी होने वाली है. इसलिए वो सिर्फ चुनौती ही पेश कर सकते हैं. ये कितनी बड़ी होगी, चुनावी नतीजे ही बताएंगे.
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