नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में सीपीआई नेता कन्हैया कुमार कांग्रेस के संपर्क में हैं. आने वाले दिनों में कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. इस सिलसिले में मंगलवार को उनकी राहुल गांधी से मुलाकात हुई. कन्हैया के नजदीकी सूत्रों के मुताबिक दोनों की मुलाकात होती रहती है. बताया जा रहा है कि कन्हैया के अलावा गुजरात के युवा निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी समेत बीजेपी विरोधी कई दूसरे युवा चेहरे भी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. हार्दिक पटेल पहले से कांग्रेस में हैं.
कांग्रेस में कन्हैया की भूमिका क्या होगी?
इस पर बातचीत आखिरी दौर में है. कांग्रेस देशभर में मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करने की रणनीति बना रही है. आंदोलन से पहचान बनाने वाले युवा नेताओं को इस अभियान से जोड़ा जा सकता है. सूत्रों के मुताबिक 2024 में मोदी को घेरने के लिए राहुल गांधी युवा नेताओं की टीम बना रहे हैं. पुरानी टीम राहुल के अहम सदस्य रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव जैसे नेता कांग्रेस छोड़ दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं. रणदीप सुरजेवाला, मिलिंद देवड़ा जैसे नेता अब वरिष्ठ की श्रेणी में आ चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए राहुल गांधी बीजेपी विरोधी विचारधारा के युवा नेताओं की नई टीम तैयार कर रहे हैं.
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी में कन्हैया कुमार राष्ट्रीय भूमिका में दिखेंगे. युवाओं में लोकप्रिय कन्हैया के रूप में कांग्रेस को बिहार में एक बड़ा चेहरा मिल जाएगा. यह जानना जरूरी है कि बिहार में कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल का रुख कन्हैया को लेकर नकारात्मक रहा है. ऐसे में आरजेडी को नाराज कर कांग्रेस के लिए बिहार में कन्हैया को चेहरा बनाना आसान नहीं होगा. जेएनयू में 2016 में लगे देश विरोधी नारों के मामले में आरोपी कन्हैया को लेकर एक राय यह भी है कि उनसे कांग्रेस को फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है.
कन्हैया के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को बचाना जरूरी है और राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती देने वाले राहुल गांधी इकलौते नेता हैं. वामपंथ की नर्सरी में पले-पढ़े कन्हैया की सोच है कि राहुल गांधी को मजबूत करने की जरूरत है.
लोकसभा चुनाव में कन्हैया ने गिरिराज सिंह को दी थी चुनौती
वर्तमान में कन्हैया भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं. बीते लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगूसराय सीट से कन्हैया ने बीजेपी के कद्दावर नेता गिरिराज सिंह को चुनौती दी थी और नाकाम रहे थे. राष्ट्रीय जनता दल ने कन्हैया के सामने उम्मीदवार खड़ा किया था. हालांकि विधानसभा चुनाव में आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन में वामदल भी शामिल थे लेकिन कन्हैया ने चुनाव नहीं लड़ा.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कन्हैया बिहार में लगातार सक्रिय हैं. उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बड़ी-बड़ी सभाएं की. कोरोना महामारी के समय पर्दे के पीछे रह कर अपने जिले बेगूसराय के लोगों की मदद करते रहे. बिहार चुनाव में कन्हैया ने प्रचार जरूर किया लेकिन खुद को बेहद सीमित रखा. चुनाव के बाद कन्हैया अपनी पार्टी में अंदर विवादों में भी घिरे. बहरहाल कन्हैया को भी पता है सीपीआई नेता के तौर पर वो चर्चा में तो रह लेंगे लेकिन राजनीतिक कामयाबी मुश्किल है. जाहिर है कन्हैया को विकल्प की तलाश है.
मुसलमानों के बीच भी कन्हैया खासे लोकप्रिय
दूसरी तरफ बिहार में लगातार सिमटती जा रही कांग्रेस तेजस्वी यादव, चिराग पासवान जैसे युवा पीढ़ी के नेताओं के सामने भविष्य का नेतृत्व ढूंढ रही है. अपने भाषण के अंदाज से देशभर में चर्चित कन्हैया बिहार के युवाओं में खासे मशहूर हैं. कन्हैया भूमिहार जाति से हैं जिसका रुझान बीजेपी की तरफ रहता है. कन्हैया के जरिए कांग्रेस इस जाति के साथ-साथ अगड़े समाज को संदेश दे सकती है. अल्पसंख्यक समाज यानी मुसलमानों के बीच भी कन्हैया खासे पसंद किए जाते हैं.
कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के लेकर कांग्रेस ही नहीं कन्हैया के कैम्प से भी सकारात्मक संकेत हैं. हालांकि चर्चाओं के उलट इस कवायद में ना तो चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कोई भूमिका है ना ही किसी अन्य कांग्रेस नेता की. बिहार कांग्रेस के नए अध्यक्ष और नई कमिटी के एलान में हो रही देरी को भी लोग कन्हैया की कांग्रेस में एंट्री से जोड़ रहे हैं लेकिन पार्टी के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इस तरह के कयास गलत हैं.
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