Explained: पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां जोरों पर है. सभी सियासी दल नफा-नुकसान को देखते हुए सियासी समीकरण बनाने की कोशिश में जुटे हैं. इस बीच कांग्रेस से किनारा होने के बाद पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है जिसके बाद पंजाब की सियासी फिजा बदलती दिख रही है. अब सवाल है कि कैप्टन की नई पार्टी से प्रदेश का सियासी समीकरण किस तरह से बदल जाएगा. साथ ही कांग्रेस के लिए कैप्टन की नई पारी कितना नुकसानदायक हो सकती है. आइए समझते हैं कैप्टन की नई पारी से प्रदेश की सियासत कैसे बदल सकती है.
कैप्टन करेंगे बीजेपी से गठबंधन!
मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफे के बाद से ही कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं. उन्होंने संकेत दिए हैं कि वो चुनाव से पहले बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं. और अपनी नई पार्टी बनाकर कुछ शर्तों के साथ बीजेपी के साथ गठजोड़ कर सकते हैं. कैप्टन का नजरिया अब बदला हुआ दिख रहा है क्योंकि अब वो बीजेपी को सांप्रदायिक या फिर मुसलमान विरोधी पार्टी नहीं मानते हैं. ऐसे में दोनों मिलकर सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करेंगे. वो पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात कर चुके हैं.
SAD-बीजेपी के नाराज नेताओं का साधेंगे कैप्टन!
आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में ये बिल्कुल साफ है कि कैप्टन बीजेपी के साथ समझौता करेंगे. इसके अलावा वो बीजेपी में नाराज चल रहे नेताओं को भी अपने साथ लाने की कोशिश करेंगे. साथ ही समान विचारों वाली पार्टियों खासकर ढींडसा और ब्रह्मपुरा के साथ भी हाथ मिला सकते हैं. इसके अलावा बताया ये भी जा रहा है कि वो शिरोमणि अकाली दल में नाराज चल रहे नेताओं को भी अपने साथ लाने की हरसंभव कोशिश करेंगे.
किसान आंदोलन का क्या होगा?
राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि बीजेपी कैप्टन के जरिए किसान आंदोलन का हल निकालने की कोशिश कर सकती है. बताया जाता है कि किसान नेताओं और संगठनों के जनप्रतिनिधियों के साथ कैप्टन के रिश्ते अच्छे रहे हैं ऐसे में केंद्रीय कृषि कानूनों का मामला सुलझाकर किसान आंदोलन को खत्म कराने की दिशा में कदम उठा सकते हैं. सुझाव व्यावहारिक पाए जाते हैं, तो सरकार कृषि कानूनों पर फिर से विचार कर सकती है, कृषि कानूनों में बदलाव के लिए कैप्टन बीजेपी के साथ सहमति बनाने में अगर कामयाब हो गए तो किसानों का कैप्टन के साथ रिश्ता मजबूत बना रह सकता है.
कांग्रेस को कितना नुकसान कर सकते हैं कैप्टन?
पिछले महीने कैप्टन के अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस से बाहर हो जाने से न केवल पुरानी पार्टी संकट की ओर बढ़ गई, बल्कि ऐसे दरवाजे भी खुल गए जिनकी कीमत विधानसभा चुनावों में चुकानी पड़ सकती है. जब कैप्टन अमरिंदर को मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला हुआ तो कई विधायकों ने इस फैसले का समर्थन किया, जबकि कई ने नहीं किया. हालांकि तब से जो देखा गया है, उससे यह साफ हो गया है कि कांग्रेस के भीतर सत्ता-संघर्ष जारी है, और इस बात की पूरी संभावना है कि कैप्टन अपने वफादार विधायकों तक पहुँच सकते हैं.
SAD का कैप्टन और नवजोत सिद्धू पर तंज
पंजाब की सियासी फिजा जब बदलती दिख रही है तो ऐसे में आरोप प्रत्यारोप का खेल भी जारी है. शिरोमणि अकाली दल का आरोप है कि कैप्टन और बीजेपी हमेशा से साथ थे. शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता डॉ दलजीत एस चीमा का कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के गेम प्लान को ठीक ढंग से जानते थे और अंदर ही अंदर उनके इस प्लान का समर्थन कर रहे थे. इसके साथ ही वो मानते हैं कि कांग्रेस में फूट के लिए नवजोत सिंह सिद्धू ज्यादा जिम्मेदार हैं. उनका मानना है कि कांग्रेस ने मजबूरी में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया. जो सिद्धू को बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा है.
AAP कहां खड़ी है?
आम आदमी पार्टी भी प्रदेश में सियासी रुतबा मजबूत करने की कोशिश में जुटी है. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने के बाद से आम आदमी पार्टी के हौसले मजबूत हैं. मालवा क्षेत्र में 18 सीटों पर मिली जीत से पार्टी इस बार भी कुछ करिश्मा करने की उम्मीदें लगा रही है. बताया जा रहा है कि आम आदमी सिख चेहरे को सीएम और दलित को डिप्टी सीएम बनाना चाहती है. हालांकि देखना दिलचस्प होगा इस बार आम आदमी पार्टी क्या कुछ हासिल कर पाती है.
पंजाब का क्या है सियासी समीकरण?
सियासी जानकार बताते हैं कि पंजाब की सियासत हमेशा से जाट सिखों के इर्द गिर्द रहती है. ज्यादातर जाट चेहरे ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे हैं. पंजाब मुख्य रुप से तीन क्षेत्रों में बंटा है. जिसमें माझा, मालवा और दोआब है. माझा में 25 विधानसभा की सीटें हैं. जबकि दोआब में 23 सीटें आती हैं. इसके अलावा सबसे ज्यादा सीटें मालवा क्षेत्र में पड़ती है. कहा जाता है कि जिसने मालवा को जीत लिया उसने सत्ता हासिल कर ली. एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में करीब 20 फीसदी जाट सिख हैं. जबकि 32 फीसदी दलित वोटर हैं. जो पूरे देश में सबसे अधिक है. वही प्रदेश में करीब 38 फीसद हिंदू मतदाता हैं. दोआब में जीत का आधार दलित और हिंदू वोटरों को माना जाता रहा है. तो वही बताया जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह का हिंदू वोटरों के बीच अच्छी पकड़ है.
बहरहाल कैप्टन की अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने के ऐलान के बाद प्रदेश में सियासी गणित बदलने की उम्मीद साफ तौर से दिख रही है. सिद्धू के साथ लंबे वक्त तक मतभेदों के बाद उन्होंने जिस मकसद से इस्तीफा दिया है वो इसे साधने में कितना कामयाब हो पाते हैं ये आने वाला वक्त ही बताएगा. सवाल ये भी है कि क्या बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर कैप्टन पंजाब के बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ पाएंगे. क्या वो सिद्धू जैसे विरोधियों को सियासी मैदान में मात दे पाएंगे? हालांकि ये सियासत है और यहां संभावनाओं के असीम दरवाजे हैं.