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पंजाब में 'बाहरी' सुनील जाखड़ को कमान सौंपकर बीजेपी ने क्यों चला रिस्की दांव?

बीजेपी ने पंजाब में सुनील जाखड़ को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. कहा जा रहा है कि पार्टी और आरएसएस कार्यकर्ता इससे नाराज हो सकते हैं, लेकिन सवाल ये कि बीजेपी के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी थी.

11 जुलाई को चंडीगढ़ में पंजाब बीजेपी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं की भारी मौजूदगी थी. मौका था नए प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ के स्वागत का. पंजाब के शीर्ष बीजेपी नेता मंच पर मौजूद थे. निवर्तमान अध्यक्ष अश्विनी शर्मा की अनुपस्थिति पर किसी का ध्यान नहीं गया.

हालांकि शर्मा ने ट्वीट किया कि वह बीमार हैं, लेकिन जो लोग उन्हें अच्छी तरह से जानने का दावा करते हैं, उनका मानना है कि वह जाखड़ की नियुक्ति से नाराज हैं. ये इस बात की तरफ इशारा है कि राज्य में पार्टी के आधार का विस्तार करने की कोशिश में बीजेपी के सामने पुराने नेताओं को साथ लेकर चलने में चुनौती आ सकती है.

बता दें कि पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख जाखड़ पिछले साल मई में पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति अब सबको हैरान कर रही है. 

जाखड़ की नियुक्ति के बाद पंजाब मामलों के प्रभारी विजय रूपाणी ने अपने भाषण में कहा ' वह शर्मा की उपस्थिति को याद कर रहे हैं. सभा में मौजूद कई अन्य लोगों ने बीजेपी नेता अरुण नारंग को भी याद किया होगा. जिन्होंने हाल ही में पार्टी के सभी पदों इस्तीफा दे दिया था'.

बता दें कि 2017 में नारंग ने अबोहर विधानसभा सीट पर जाखड़ को हराया था, लेकिन 2022 के राज्य चुनाव में जाखड़ के भतीजे संदीप ने उन्हें हरा दिया.

विजय रूपाणी ने आगे कहा कि एक लंबा समय बीत चुका है. हमें पंजाब के लोगों के हितों की रक्षा करनी है. अब इस सिंड्रोम से उबरने का वक्त है कि हम एक जूनियर पार्टनर हैं, ये मेरा एक अनुरोध है. हमें इस 'छोटा भाई वाली सोच' (जूनियर सहयोगी होने की मानसिकता) को छोड़ना होगा.' 

बता दें कि अबोहर में नारंग की राजनीति जाखड़ परिवार के खिलाफ रही है. अक्टूबर 2021 में किसान यूनियनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान नारंग को किसान यूनियन के नेताओं ने बेरहमी से पीटा था. उनके कपड़े भी फाड़ दिए गए थे. पंजाब में कई बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया था कि जाखड़ के परिवार और सहयोगियों ने हमले के लिए उकसाया था. 

जाखड़ की नियुक्ति लेकर आई आरएसएस नेताओं में असहजता? 

सुनील जाखड़ दिवंगत कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ के बेटे हैं. कांग्रेस से होने के नाते कई वैचारिक मुद्दे पर जाखड़ के सार्वजनिक विचार आरएसएस और बीजेपी के विचारों से मेल नहीं खाता रहा है.

ऐसा पहली बार होगा जब पंजाब में संघ को एक ऐसे बीजेपी प्रमुख के साथ संपर्क करना होगा, जो उनकी नर्सरी से नहीं है और जिसके सार्वजनिक विचार भी अलग हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जाखड़ की वजह से राज्य में आरएसएस नेता असहज हो गए हैं.

पंजाब की राजनीति पर जानकारी रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार चंदन स्वपनिल ने एबीपी न्यूज को बताया- सुनिल जाखड़ की पार्टी लाइन कांग्रेसी थी, लेकिन जाखड़ की छवि पंजाब में हिंदुत्व वाली रही है. ऐसे में बीजेपी पार्टी या आरएसएस के लिए ये अच्छा है कि उन्हें वैसा नेता मिला है जैसा वो चाहते थे. दूसरा ये कि सुनिल जाखड़ के आने से बीजेपी मजबूत होगी. क्योंकि पंजाब में बीजेपी के पास कोई बहुत बड़ा चेहरा नहीं है, जिस पर 2024 में दांव खेला जा सके. 

चंदन स्वपनिल के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने सुनिल जाखड़ को अपना पार्टी अध्यक्ष बना कर एक ऑप्शन तैयार किया है. 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी ने ये दांव खेला है कि कैप्टन का पंजाब में कितना रुतबा है, और उस को आधार मानते हुए एक और ऑप्शन तैयार किया जाए.  

स्वापनिल आगे कहते हैं- अश्विनी शर्मा का पंजाब में कोई बहुत शानदार छवि नहीं है. ये बात बीजेपी को भी पता है, उनके नाराज होने से बीजेपी को कई फर्क नहीं पड़ेगा. जब अश्विनी खन्ना, कमल शर्मा बीजेपी के प्रधान होते थे तब वो जमीनी स्तर पर लोगों को जोड़ रहे थे, लेकिन बात चाहे श्वेता मलिक की हो या अश्विनी शर्मा की ये बस कुर्सी के अध्यक्ष ही रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि कोई गहरा असर बीजेपी को पड़ेगा. अश्वीनी शर्मा में वो बात नहीं थी कि वो पार्टी में जान डाल सके.

स्वापनिल ने आगे कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीजेपी में आने से पार्टी के कई पुराने वर्कर हाशिए पर चले गए थे. फिर भी पार्टी में हैं. अब जाखड़ के बारे में सिर्फ ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन जाखड़ की पंजाब में जो छवि है उसे देखते हुए ऐसा कहना सही नहीं लग रहा है.  

पार्टी में जाखड़ को क्या जिम्मेदारी दी गई है

जाखड़ का तात्कालिक काम भाजपा को एकजुट रखना और पंजाब में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ संतुलन बनाना होगा. दिल्ली भाजपा में उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है जो पार्टी को ग्रामीण जनता के बीच कुछ आकर्षण प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं.

बता दें कि लोकसभा 2024 से पहले  शिरोमणि अकाली दल (SAD) के साथ बीजेपी के गठबंधन की भी चर्चा हो रही है. बीजेपी गठबंधन में ज्यादा सीटों की मांग कर रही है. बीजेपी ने लोकसभा चुनावों के लिए 13 में से 7 सीटों की मांग कर रही है. बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के लिए 117 में से 55 सीटों की मांग रखी है. 

बीजेपी पंजाब में ऐसी मौजूदगी बनाने की तैयारी में है जहां उसे किसी और साथी के सहारे की जरूरत न पड़े. हालांकि, सुनील जाखड़ ने हाल ही में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया है. उन्होंने कहा, 'पंजाब में किसी भी गठबंधन के बारे में फैसला हाईकमान को लेना है.'

जाखड़ ने पदभार संभालने के बाद ये भी कहा कि भाजपा को शिरोमणि अकाली दल का 'छोटा भाई' की भूमिका निभाने का अपना रवैया छोड़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'हमें पंजाब के लोगों के हितों की रक्षा करनी है. जाखड़ ने कहा, 'हमें इस सिंड्रोम से पार पाना चाहिए कि हम जूनियर पार्टनर हैं. 

 शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के बीच 23 साल तक(1997- 2020) गठबंधन रहा था . इस दौरान बीजेपी को अकाली दल का जूनियर कहा जाता रहा, बीजेपी की ये भूमिका अहम थी क्योंकि बीजेपी शहरी हिंदुओं के बीच एक बड़े मतदाता आधार वाली पार्टी के रूप जानी जाती थी. 

पंजाब की राजनीति पर पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री ने एबीपी न्यूज को बताया ' पंजाब में बीजेपी मुख्यधारा की पार्टी नहीं रही है. अकाली दल की छोटे भाई वाली इमेज हमेशा बीजेपी का पीछा करती रही है. लोकसभा में अकाली दल बीजेपी को 3 सीटें देती थी और विधान सभा में 14 सीटें बीजेपी को दी जाती थी. अब बीजेपी के पास न तो बहुत ज्यादा हासिल करने के लिए है न ही कुछ खोने के लिए है. बीजेपी पूरे देश में हिंदुत्व के एजेंडे पर चुनाव लड़ती है. पंजाब में हिंदुत्व की कोई बहुत ज्यादा गुंजाइश नहीं है. 

सुनिल जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे का मकसद क्या?

हेमंत अत्री कहते हैं- सुनिल जाखड़ लंबे समय से पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति (पीपीसीसी) अध्यक्ष रहे हैं. अब वो बीजेपी में हैं. पंजाब में बीजेपी के पास सिख चेहरे के रूप में कैप्टन अमरिदंर सिंह पहले से मौजूद हैं, अब उन्हें एक हिंदू चेहरे की जरूरत थी.

जाखड़ को पूरा पंजाब जानता है. वहीं अश्विनी शर्मा की कोई खास पहचान नहीं थी. पंजाब में सिख की पॉलिटिक्स होती है और बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति करती है. अश्विनी शर्मा इन दोनों में कहीं पर भी फिट नहीं थे, लेकिन जाखड़ एक हिंदू नेता के रूप में जाने जाते हैं. उनकी पहचान ही वैसी बनी है. बीजेपी जाखड़ के जरिए एक प्रयोग कर रही है. 

अत्री आगे कहते हैं- जाखड़ कांग्रेस के नेता रहे हैं. रही बात पार्टी के नेताओं को नाराज करने की तो बीजेपी लाचार है, उसके पास पंजाब में सुनिल जाखड़ से अच्छा कोई ऑप्शन नहीं था. बीजेपी के पास पंजाब में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. बीजेपी पूरे पंजाब में अपने पैर पसारना चाह रही है उसके लिए प्रयोग शुरू कर चुकी है. 

अत्री ने आगे कहा 'जाखड़ पंजाब में भाजपा प्रमुख बनने वाले पहले जाट नेता हैं'. अश्विनी शर्मा की टीम में पार्टी के 28 शीर्ष पदाधिकारियों में 11 जाट सिख थे. भाजपा ग्रामीण मतदाताओं के बीच अपील हासिल करने के लिए जाखड़ के हिंदू धर्म, जाट जाति और राज्य कांग्रेस चलाने के अनुभव को भुनाने की उम्मीद कर रही है.  

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