माइनस एक डिग्री का तापमान और श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराते राहुल गांधी..., 29 जनवरी की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर अब भी रील्स के साथ वायरल हो रहे हैं. श्रीनगर पहुंचने के साथ ही 135 दिन बाद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा लाल चौक पर ही खत्म हुई थी.
यात्रा 7 सितंबर को तमिलनाडु के अंतिम छोर कन्याकुमारी से शुरू होकर देश के 14 राज्यों के 75 जिलों से होकर कश्मीर पहुंची थी. कन्याकुमारी से श्रीनगर तक राहुल के साथ इस दौरान 204 भारत यात्री साथ रहे. राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा में 13 रैलियों को संबोधित किया.
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कांग्रेस के मुताबिक सभी भारत यात्रियों ने 135 दिन में करीब 4000 किमी की यात्रा की. राहुल की इस यात्रा में कमल हासन, रिया सेन, स्वरा भास्कर, सुशांत सिंह जैसे बॉलीवुड स्टार भी शामिल हुए. यात्रा में विपक्ष के एमके स्टालिन, फारुक अब्दुल्ला, महबूबा मुक्ती भी राहुल के साथ कदमताल करते नजर आएं.
यात्रा के बाद सियासी गलियारों में राहुल गांधी और कांग्रेस के भविष्य को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. लोकसभा 2024 के चुनाव में 400 से भी कम दिनों का वक्त बचा है. ऐसे में आइए जानते हैं, राहुल की यह यात्रा कांग्रेस संगठन में जान फूंकने के लिए कितना कारगर होगा?
यात्रा पास या फेल, 3 प्वॉइंट्स
1. राहुल की गंभीर छवि बनाने में कांग्रेस कामयाब- भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस देशभर में राहुल गांधी को गंभीर छवि वाले नेता बताने में कामयाब हो गई है. घुटने में चोट के बावजूद राहुल का पैदल चलना मीडिया और सोशल मीडिया की सुर्खियों में बना रहा. ठंड में टीशर्ट पहनकर यात्रा करना भी चर्चा में रहा.
इंडियन एक्सप्रेस में एक ओपिनियन में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम लिखते हैं, 'राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान लाखों लोगों की बातें सुनी, जो अलग-अलग समुदाय और वर्ग के थे. यात्रा उन राज्यों में अधिक लोकप्रिय रही, जहां बीजेपी और क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार है. समस्या बताने आए लोगों के लिए राहुल एक उम्मीद थे.'
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2011 के बाद देश में राहुल गांधी की छवि गंभीर नेता की नहीं थी जो जरूरत के वक्त या तो गायब रहते हैं या मुद्दा नहीं उठा पाते हैं. राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के वक्त खुद इस वाकये का जिक्र करते हुए कहा था कि मेरी छवि खराब करने के लिए करोड़ो रुपए खर्च किए गए.
2. सड़कों पर आए कांग्रेसी- 2014 में करारी हार के बाद कांग्रेस जमीन पर लड़ाई में लगातार पिछड़ रही थी. दूसरे शब्दों में कहे तो कांग्रेसी सड़कों से गायब हो रहे थे. भारत जोड़ो यात्रा की दूसरी बड़ी उपलब्धि यह रही कि तमिलनाडु से लेकर जम्मू-कश्मीर तक सड़कों पर कांग्रेसी उतर आए. 2024 चुनाव के दृष्टिकोण से कांग्रेस इसे संजीवनी मान रही है.
यात्रा का असर इतना अधिक हुआ कि जिन राज्यों से होकर यह यात्रा नहीं गुजरी, उन राज्यों में भी कांग्रेसी हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं. इनमें बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल का नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं. यात्रा के दौरान राहुल ने सभी राज्य प्रमुख से हर महीने 5-10 किमी की पैदल यात्रा करने का निर्देश दिया.
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राजस्थान में इसे लागू भी कर दिया गया है, जहां इसी साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होना है. कांग्रेस कई राज्यों में जल्द ही हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा भी निकालने जा रही है.
3. विपक्ष को एकजुट करने में नाकाम- लोकसभा की करीब 300 सीटों पर उन क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है, जो बीजेपी के साथ सरकार में शामिल नहीं हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने उन पार्टी के नेताओं को समापन समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित भी किया था, लेकिन नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी जैसे दिग्गज शामिल नहीं हुए.
शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे सहयोगी भी रैली में शामिल नहीं हुए. हालांकि, उनके दल के लोग जरूर यात्रा में कदमताल करते नजर आए. लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज से इन नेताओं की गैरमौजूदगी कांग्रेस के लिए टेंशन बढ़ाने वाला है. राहुल की भारत जोड़ो यात्रा विपक्ष को जोड़ने में अब तक नाकामयाब रही है.
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राहुल का इमोशनल स्पीच, कितना असरदार?
बर्फबारी के बीच श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में राहुल गांधी ने करीब 40 मिनट का एक इमोशनल स्पीच दिया. राहुल ने कहा कि मैं जब व्हाइट टीशर्ट पहनकर निकला तो एक ही बात दिमाग में आई. ज्यादा से ज्यादा क्या हो सकता है? व्हाइट टीशर्ट लाल हो जाएगी.
राहुल ने रैली में इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की हत्या के किस्से भी सुनाए. राहुल के इमोशनल स्पीच का असर कश्मीर में होना तय माना जा रहा है. बाकी के राज्यों में इसका ज्यादा असर शायद ही हो.
यात्रा अपनी जगह, कांग्रेस में जान फूंकना अब भी आसान क्यों नहीं?
राहुल की यात्रा अब खत्म हो चुकी है और कांग्रेस फरवरी के अंतिम हफ्ते में प्रस्तावित महाधिवेशन के लिए जुट गई है. यात्रा के बाद भी कांग्रेस में जान फूंकना राहुल के लिए आसान नहीं है. राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के बाद कहा कि यह पहला स्टेप था और आगे अभी कई फैसले लिए जाएंगे.
1. सख्त और त्वरित फैसले ले पाने में नाकाम हाईकमान- कांग्रेस हाईकमान त्वरित और सख्त फैसले ले पाने में अब तक नाकाम रहा है. राजस्थान कांग्रेस का संकट हो या झारखंड में 3 विधायकों पर सरकार गिराने की साजिश का आरोप. इन मामलों में कांग्रेस हाईकमान अब तक कोई सख्त फैसला नहीं ले पाया.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं- जब भी बड़ा फैसला लेना होता है, तो वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 10 जनपथ की ओर देखने लगते हैं, जबकि 10 जनपथ यानी सोनिया गांधी ने कांग्रेस के डिसीजन मेकिंग से खुद को अलग कर लिया है.
ऐसे में कांग्रेस हाईकमान की ओर से कई मामलों में सख्त और त्वरित फैसले नहीं लिए जा रहे हैं, जिसका नुकसान होगा ही.
2. संगठन में सर्जरी करना भी आसान नहीं- उदयपुर में एक प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें नेताओं के लिए वन पोस्ट-वन पर्सन का फॉर्मूला, एक पद पर 5 साल का कार्यकाल और कूलिंग पीरियड जैसे नियम शामिल थे.
वर्तमान में पिछले 3 महीने से खुद मल्लिकार्जुन खरगे 2 पोस्ट पर बैठे हैं. केसी वेणुगोपाल भी 5 साल से ज्यादा समय से महासचिव पद पर तैनात हैं. कई राज्यों में आंतरिक गुटबाजी की वजह से लंबे समय से जिलाध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों की नियुक्ति लंबित है.
संगठन में सर्जरी करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है. उदयपुर चिंतन शिविर में राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि संगठन में अगर आमलूचूल बदलाव नहीं हुआ तो कांग्रेस में जान फूंकना मुश्किल है.
3. फंड क्राइसिस भी एक समस्या- 2019 में हार के बाद से ही कांग्रेस फंड क्राइसिस से जूझ रही है. चुनाव आयोग में दाखिल हलफनामे के मुताबिक कांग्रेस 2020-21 को दान से सिर्फ 285.76 करोड़ रुपए ही मिले, जो 2018-19 के मुकाबले 682 करोड़ रुपए कम थे.
2018-19 में कांग्रेस को लगभग 918 करोड़ रुपए दान में मिले थे. हाल ही में आर्थिक संकट को देखते हुए कांग्रेस के प्रभारी कोषाध्यक्ष पवन बंसल ने राष्ट्रीय महासचिव और सचिव के लिए एडवाइजरी जारी किया था.
उदयपुर चिंतन शिविर में फंड इकट्ठा करने के लिए डोर-टू-डोर चंदा मांगने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे अब तक अमल में नहीं लाया गया है.