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राज की बातः बीजेपी-RSS की सोच बिल्कुल साफ, अगर देश जीतना है तो जरूरी है उत्तर प्रदेश में कमल का खिलना

असली चिंता यूपी ही है. इसके साथ ही जहां पर बीजेपी की सरकारें हैं, वहां से उठते असंतोष के स्वरों, बढ़ती गुटबाजी और जनता के बीच से आए कुछ संकेतों ने भी केंद्रीय नेतृत्व के कान खड़े कर दिए हैं. इसीलए संघ-बीजेपी कंधे से कंधा मिलाकर स्थितियां संभालने में जुटे हैं.

राज की बातः देश अगर जीतना है तो उत्तर प्रदेश जरूरी है. बीजेपी और संघ की यह सोच बिल्कुल स्पष्ट है. बल्कि इसे यूं कहें कि मौजूदा हालात में उत्तर प्रदेश हारना बीजेपी सहन नहीं कर सकती. बात सिर्फ 2022 की नहीं बल्कि 2024 की भी है. नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के सात सालों में इस तरह से बैठकों का दौर शायद ही कभी चला हो, जैसा फिलहाल चाल रहा है.

राज की बात में बीजेपी-संघ की बैठकों का लब्बोलुवाब और यूपी विजय को लेकर परिवार के प्लान की बात. इस प्लान के तहत संघ परिवार और बीजेपी 'साइलेंट नहीं वाइब्रेंट वोटर' पर फोकस करेगा. ये वाइब्रेंट वोटर क्या है आपको आगे बताएंगे. उससे पहले एक और बात कि यूपी में पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के समय में हुए काम, जिनका उद्घाटन योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद किया, उनके प्रचार से बचा जाएगा. नए काम और एक ही नाम यानी पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे और केंद्र के काम को आगे रखकर जनता के बीच जाने की रणनीति को अमली जामा पहनाया जा रहा है. इसे और थोड़ा और आसान भाषा में समझें तो यूपी में नेतृत्व बदले बगैर वोटरों के सामने मोदी को लाकर सत्ता की बाजी जीतने की ये कवायद है.

उत्तर प्रदेश में 2022 की सियासी जंग को जीतने के लिए संगठन से लेकर सरकार तक के स्तर पर नीतियों और रणनीतियों के निर्धारण का काम वैसे अभी भी जारी है. असली चुनौती संगठन को साथ लेकर और सरकार के भीतर बन गए गुटों को पूरी ताकत के साथ जमीन पर उतारना है. समय कम है, लिहाजा भारतीय जनता पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में चोटी तक पहुंचने के लिए एड़ी तक का जोर लगा रखा है. विधानसभा चुनाव को लेकर प्लानिंग हर दल में शुरु हो गई है लेकिन बीजेपी को तमाम नकारात्मक परिस्थितियों से बचते हुए कैसे सत्ता तक पहुंचना है इसका खाका दिल्ली मे खींच दिया गया है. राज की बात ये है कि सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में सत्ता को बनाए रखने के लिए संगठन और सरकार की सर्जरी से लेकर चुनावी कैंपेन तक का प्लान तैयार हो चुका है. 

भारतीय जनता पार्टी ने बूथ स्तर से लेकर बंपर वोटिंग तक होने वाली हर जतन पर जद्दोजहद शुरु कर दी है. सियासत को साधने के लिए रणनीति की बात करें तो पहली यह है कि अब यूपी में जो भी फैसले और काम सरकार और संगठन के स्तर पर होंगें उसकी कमान और म़ॉनिटरिंग आलाकमान के पास होगी. यह मैंने आपको पहले ही बताया था कि यूपी में चुनावों तक राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले अब दिल्ली से ही तय होंगे कि संगठन को कैसे जमीन पर उतरना है और सरकार को कहां फोकस करना है. 

राज की बात ये भी है कि सरकार और संगठन में सर्जरी तो विधानसभा चुनाव से पहले होनी ही है और उसकी कवायद लगातार चल भी रही है. एक बार फिर से बीएल संतोष का दौरा यूपी में होने जा रहा है लेकिन इस सर्जरी से पहले जमीनी चीजों को बीजेपी साध लेना चाहती है या फिर उनकी रणनीति को जमीन पर उतार लेना चाहती है. दरअसल कोरोना के बाद जिस तरह के हालात बने हैं, वह बीजेपी के एक कमजोर नब्ज है. इसके मद्देनजर पूरा संगठन और सरकार विपक्ष के आरोपों का जवाब तथ्यों के साथ देगी. हमलावर विपक्ष को कोरोना पर उनके बयानों से काटा जाएगा. साथ ही सरकार ने किस तरह से लड़ा, उसका हिसाब दिया जाएगा. हालांकि, इससे पहले हर कोरोना पीड़ित परिवार तक पहुंचना जरूरी होगा, ताकि उसके गुस्से और गम को कम किया जा सके.

राज की बात ये है कि भाजपा चुनाव से पहले 2 तरीके से जनता से जुडऩे का प्लान बना रही है. पहला खाका तो ये है कि इस बार साइलेंट वोर्टर्स की जगह वाइब्रेंट वोटर्स को फोकस में रखकर पार्टी आगे बढ़ेगी. वाइब्रेंट वोटर्स का मतलब ये कि ऐसे भाजपा और मोदी समर्थक जो खुद का वोट तो दें हीं....सड़क पर पाऱर्टी के लिए लड़ाई लड़ सकें, विरोधी दलों से टकरा सकें और पार्टी की योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचा सकें. लेकिन योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए भी एक प्लानिंग हुई है जो राज की बात है.

राज की बात ये कि वाइब्रेंट वोटरों में ही बीजेपी अपनी जीत का राज ढूढ़ रही है. उसका मानना है कि वाइब्रेंट यानी जीवंत वोटर अगर जनता के बीच जाकर विपक्ष के आरोपों की काट करेंगे. साथ ही सरकार कैसे उनके दुख-दर्द दूर करने में जुटी है, इसका बखान करेंगे तो प्रभाव ज्यादा होगा. राज की बात ये है कि ऐसे वाइब्रेंट वोटरों को पहचानने के लिए चाय की दुकानों से लेकर खेल के मैदानों तक टेलेंट हंट चलाया जाएगा. उन्हें ढूढ़कर और ज्यादा मांजकर मैदान में उतारा जाएगा. चूंकि, बंगाल में साइलेंट वोटर पर भरोसा करने के बाद बीजेपी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले लिहाजा वो इन ऊर्जा से भरपूर जीवंत वोटरों को तैयार करेगी.  

वो ये है कि यूपी विधानसभा चुनाव के प्रचार में उन योजनाओं का प्रचार प्रसार जोर शोर से किया जाएगा जो प्रधानमंत्री मोदी ने चलाई हैं या फिर योगी सरकार का फैसला रही हैं. उन योजनाओं को इलेक्शन कैंपेन का हिस्सी किसी भी कीमत पर नहीं बनाया जाएगा तो पूर्व की अखिलेश सरकार ने चलाई थी और सीएम योगी ने फीता काटा है. कोशिश ये है कि सपा को ये आरोप लगाने का मौका न मिले कि उनकी बनाई गई योजनाओं को बीजेपी सरकार अपना बता रही है. 

दरअसल, तमाम चिंतन-मंथन के बाद संघ-बीजेपी के कर्ताओं-धर्ताओं ने पाया है कि यूपी में सिर्फ नेतृत्व या संगठन परिवर्तन से ही बात नहीं बनने वाली. संघ-बीजेपी इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि देश और यूपी में उसका ट्रंप कार्ड पीएम मोदी ही हैं. उनकी छवि जनता के बीच अच्छी है और उनकी विकास योजनाओं को गरीबों के लिए किए गए काम पार्टी की असली ताकत हैं. तो यूपी में भी योगी के सीएम रहते हुए भी मोदी के चेहरे और उनकी योजनाओं पर ही चुनाव लड़ा जाएगा. इसमें पिछड़ों और ब्राह्मणों को तरजीह देते भी सरकार दिखेगी.

इसका मतलब ये कि सीएम योगी और सरकार की कामयाबी का बखान तो होगा लेकिन कैंपेन मोदी सेंट्रिक होगा और उनकी चलाई योजनाएं लोगों तक पहुंचाई जाएंगी. मसलन आंतरिक और बाह्य सुरक्षा पर मोदी सरकार की उपल्बधि, किसानों को सम्मान निधि और डीएमपी की कीमत में कमी, राममंदिर निर्माण पर फैसला आते ही बिना देर किए मंदिर निर्माण की कवायद का आरंभ. साथ ही कोरोना काल में लोगों तक मुफ्त अनाज पहुचाने की योजना भी  लोगों तक पहुंचाई और बताई जाएगी . इसी तरह से यूपी सरकार के कामकाजी की बात करें तो पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, फिल्मसिटी, जेवर एयरपोर्ट, 5 लाख रोजगार और कोरानाकाल में अनाथ हुए बच्चों के भरणपोषण का मामला चुनाव कैंपेन का हिस्सा बनाया जाएगा.  मतलब साफ है कि चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाएगा और चूंकि बानगी केंद्र की तरफ से ज्यादा है लिहाजा प्रचार मोदी सेंट्रिक रहेगा. 

इस रणनीति के तहत केंद्रीय आलाकमान की कोशिश है कि विपक्ष जो आऱोप विकास को लेकर लगाता है उसे एक अछ्छा काउंटर केंद्र की योजनाओ से जोड़कर दिया जाए. राज की बात ये भी है कि भाजपा मानती है कि कोरोना काल में जो डेंट पार्टी और सरकार पर लगा है वो विपक्ष की कामयाबी है ....लेकिन इसे विकास की आंकडो और इबारतों से ढंका जाएगा औऱ कोशिश होगी कि जनता का मन 2017 की ही तरह 2022 में भी कमल से मिले.

राज की बातः बीजेपी के काट के लिए अखिलेश यादव की ये रणनीति कितनी कारगर होगी

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