राजस्थान कांग्रेस में सियासी संकट का असर दिल्ली तक है. राजधानी में कांग्रेस आलाकमान के इर्द गिर्द राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं. राजस्थान कांग्रेस के विधायकों की नाराज़गी और कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दरमियान अब सब की निगाहें भारतीय जनता पार्टी की ओर भी जा रही हैं.
कांग्रेस के अंदर सियासी संकट का फायदा क्या बीजेपी उठाएगी? क्या राजस्थान की कुर्सी कब्ज़ाने के लिये बीजेपी कोई कदम उठाएगी? इन सवालों के जवाब आम लोगों के साथ साथ राजनीतिक पंडितों भी आकलन के जरिए जानने की कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि जानकारों का कहना है कि इस वक्त बीजेपी सिर्फ मूक दर्शक बनकर सारा खेल देख रही है क्योंकि इससे पहले भी सचिन पायलट ने जब बगावत की थी तो उनकी ओर से दावा किया जा रहा था कि 50 से ज्यादा विधायक उनके पास हैं. पर्दे के पीछे जब बीजेपी सरकार बनाने के लिए एक्टिव हुई तो सचिन के पास सिर्फ मुट्ठी भर विधायकों का ही साथ था.
इस बार जब कांग्रेस के पर्वेक्षक दिल्ली से जयपुर का दौरा कर बिखरी हुई पार्टी को दोबारा एकजुट करने के प्रयास कर रहे हैं, तो राजस्थान की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी एकदम शांत है. हालांकि बीजेपी की ओर से कांग्रेस में जारी कलह पर तंज जरूर कसे जा रहे हैं.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि सचिन पायलट के लिए बीजेपी का दरवाजा बंद नहीं है. उन्होंने, कहा कि इस पर आखिरी फैसला पार्टी हाईकमान लेगा. सतीश पूनिया ने कहा - "सचिन पायलट के लिए बीजेपी का दरवाजा बंद नहीं, अगर ऐसे हालात बनते हैं तो पार्टी अलाकमान इस पर फैसला लेगा." उन्होंने कहा कि इन पूरे घटनाक्रमों के चलते राज्य की जनता प्रभावित हो रही है.
प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के अलावा राज्य के कई बड़े बीजेपी नेता इस सियासी संकट के बहाने कांग्रेस को घेर रहे हैं. राजस्थान के बीजेपी नेताओं में सांसद राज्यवर्धन राठौड़, विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौर के बयान आ चुके हैं. इस बीच BJP के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दिल्ली रवाना हो गए, हालांकि, संभावना ये जताई जा रही है कि वो राजस्थान की राजनीति पर वरिष्ठ नेताओं से चर्चा कर सकते हैं.
राजस्थान से बीजेपी सांसद राज्यवर्धन राठौड़ ने इस बारे में कांग्रेस का ड्रामा करार दिया. उन्होंने कहा, "इस ड्रामे से पर्दा हटाने का समय आ गया है. बेहतर होगा कि जनता को राहत देने के लिए वे (कांग्रेस) इस्तीफा दे दें. कांग्रेस सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.
उन्होंने आगे कहा, "कांग्रेस में लोकतंत्र है ही नहीं. इन्होंने जब भी इसका नाटक किया, पार्टी टूटने के कगार पर आ गई. लेकिन इसके चलते राजस्थान की जनता पिस रही है. गांव, गरीब, महिला, किसान, सब हर तरह से त्रस्त हैं. बेहतर होगा, जनता को राहत देने के लिए ये सच में त्यागपत्र दें."
वहीं बीजेपी नेता राजेंद्र राठौर इस घटनाक्रम पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस में जारी अंतर्द्वंद्व का संघर्ष अंतहीन है. जुलाई 2020 के बाद अब एक बार फिर कौरवों की A और B टीम आमने-सामने है और जादूगर की जादूगरी में सिर-फुटौवल चरम पर है. वहीं राजस्थान की जनता को फिर से भगवान भरोसे छोड़ दिया है.
बीजेपी कर रही है चुनाव की तैयारी
राजस्थान में अगले साल चुनाव होने हैं. और मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल सिर्फ एक साल बचा है. इसलिए बीजेपी को अब यहां एक साल के लिए सरकार बनाने में कोई फायदा नहीं दिख रहा है. दूसरी ओर चुनाव से पहले पार्टी किसी भी जोड़तोड़ की राजनीति के लिए अपनी ताकत खर्च नहीं चाहती है.
कांग्रेस के 80 से ज्यादा विधायकों ने सचिन पायलट को सीएम बनाए जाने की अटकलों के बीच अपना इस्तीफा स्पीकर सीपी जोशी को सौंप दिया है. और बीजेपी वेट और वाच की नीति अपना रही है.
वसुंधरा राजे की चुप्पी के भी कई संकेत
बीजेपी की वरिष्ठ नेता और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी पूरे प्रकरण में चुप्पी साध रखी है. पिछली बार जब सचिन पायलट के बीजेपी में शामिल होने की खबरें आ रही थीं तो कहा जाता है कि वसुंधरा राजे ने इस पर रोक लगा दी थी.
साल 2012 में बीजेपी में भी हुई थी बगावत
जिस संकट से आज कांग्रेस जूझ रही है वैसे ही विद्रोह बीजेपी भी झेल चुकी है. साल 2012 में वसुंधरा राजे के समर्थन में 60 से ज्यादा विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. उस समय पार्टी विपक्ष में थी और अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारियां हो रही थीं. दरअसल पार्टी के एक और नेता गुलाब चंद्र कटारिया ने राज्य में अपनी यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया था.
माना जा रहा था कि कटारिया इस यात्रा के जरिए खुद को सीएम पद का दावेदार बनाना चाहते हैं. कटारिया की यात्रा रोकने के लिए वसुंधरा के समर्थक विधायकों ने इस्तीफा दे डाला. वसुंधरा मनाने के लिए नितिन गडकरी, अरुण जेटली और पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को आगे आना पड़ा था.