राजस्थान: तेजी से बदलते दौर में आज भी कायम है खेती से जुड़ी ये सदियों पुरानी परंपरा
हाली अमावस्या के दिन ही किसान अपनी खेती की शुरूआत करते हैं. आज के दिन को खेती-बाड़ी के लिहाज से बहुत ही शुभ माना जाता है. अनाज की बुवाई के साथ किसान ख्ती की खुशहाली व समृद्धि की कामना भी करते हैं.
जयपुर: भारत एक कृषि प्रधान देश है, देश की कुल आबादी की 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है. आज़ादी के समय खेती बैलों व ऊंटों के पीछे हल लगाकर परंपरागत तौर- तरीकों से की जाती थी लेकिन समय के साथ खेती के तौर-तरीके भी बदल गए. खेती भी अत्याधुनिक उपकरणों व वैज्ञानिक तौर- तरीकों से की जाने लगी, जिसमें ट्रैक्टरों व अन्य मशीनरी का उपयोग होने लगा जिसमें कम समय व अपेक्षाकृत सीमित मानव संसाधनों के माध्यम से खेती फलीभूत होने लगी.
किसान समुदाय के लिए यह सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है
आज यानि हाली अमावस्या के दिन किसान अपनी खेती का श्रीगणेश करते हैं. जिसे स्थानीय भाषा में 'हलोतिया' कहते हैं किसान समुदाय के लिए यह सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है. इस दिन खेत में नई जोत जलाकर, खेती कार्यों को विधिवत रूप से शुरू करते हैं. इस वक्त खरीफ व जायद फसलों की बुवाई प्रारंभ करते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन को खेती-बाड़ी के लिहाज से शुभ व मांगलिक माना जाता है.
परंपरागत खेती के साधन हल की विधिवत पूजा व अर्चना कर वर्तमान के खेती के आधुनिक साधन ट्रैक्टर के द्वारा अनाज की बुवाई शुरू करते हैं. इस अवसर पर देसी भोजन के रूप में खीच व गुड़ की गलानी,बाजरे की रोटी व केर-सांगरी की सब्जी को बड़े ही चाव से बनाया जाता है. बोए जाने वाले अनाज के 'बोहल' या 'ढेरी' सुकून के रूप में बनाए जाते हैं एवं नाना प्रकार के अनाज की बनाई गई फेरियो के आगे मत्था टेक कर किसान परिवार खेती-बाड़ी की खुशहाली व समृद्धि की कामना करता है. देश में किसान को आज भी अन्नदाता के नाम से जाना जाता है पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि देश की समृद्धि और खुशहाली का रास्ता गांव और खेत से होकर गुजरता है.
कोरोना के बावजूद नहीं टूटी हाली अमावस्या की परंपरा जोधपुर जिले के ओसिया के रहने वाले किसान से राजनेता बने भैराराम सियोल ने आज हाली अमावस्या के दिन पैतृक गांव मांडीयाई खुर्द में पारिवारिक सदस्यों के साथ खेत में खेजड़ी के पेड़ के नीचे परंपरागत साधन हल व चौकनी सहित अन्य कृषि उपकरणों की पूजा अर्चना कर ट्रैक्टर से नई खेती के रुप में बाजरा की बुवाई को प्रारंभ किया, इस दौरान किसान परिवार के सभी सदस्यों ने सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखते हुए मास्क लगाए रखे. इस दौरान एक खास बात देखने को मिली कि सरकार द्वारा जारी कृषि विभाग की एडवाइजरी का भी पालन किया गया.
पूर्व विधायक भैराराम सियोल गत वसुंधरा सरकार में राज्य मंत्री रह चुके हैं. पीएम मोदी की जनता कर्फ्यू की घोषणा पर सियोल परिवार सहित दिल्ली से लौटकर गांव पहुंचे व पिछले करीब 1 महीने से गांव में खेत पर कृषि कार्यों में कृषकों का सहयोग कर रहे हैं. सियोल का कहना है कि कृषि हमारा पैतृक व्यवसाय है, जो कई पीढ़ियों से चला रहा है. लॉकडाउन के चलते गांव और खेतों में किसान पुरानी फसलों को लेने व नई फसलों की जोत देने में व्यस्त हैं. हालांकि लॉकडाउन के चलते मजदूरों को लाने व कृषकों की फसलों को बेचने संबंधी दिक्कतें आ रही है. फिर भी क्षेत्र के प्रत्येक खेत में घर परिवार के सभी सदस्य हाथ बंटोरकर खेती कार्यों को अमलीजामा पहना रहे हैं.
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रति ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की जागरूकता सराहनीय है, ग्रामीण क्षेत्र के काश्तकार खेतों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए व अपने चेहरे पर घर पर ही बनाए हुए कपड़े के मास्क लगाकर,फसलों को बोने एवं एकत्रित करने में लगे हुए हैं.
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