दुनिया का सबसे अनमोल रत्न


प्रेमचंद



दिलफ़िगार एक कंटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आंसू बहा रहा था. वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफ़रेब का सच्चा और जान देने वाला प्रेमी था. उन प्रेमियों में नहीं, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेश में माशूक़ियत का दम भरते हैं. बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फ़िदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फ़रियाद मचाते फिरते हैं. दिलफ़रेब ने उससे कहा था कि अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लेकर मेरे दरबार में आ तब मैं तुझे अपनी गुलामी में क़बूल करूँगी. अगर तुझे वह चीज़ न मिले तो ख़बरदार इधर रुख़ न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी.


दिलफ़िगार को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन का, शिकवे-शिकायत का, प्रेमिका के सौन्दर्य-दर्शन का तनिक भी अवसर न दिया गया. दिलफ़रेब ने ज्यों ही यह फ़ैसला सुनाया, उसके चोबदारों ने ग़रीब दिलफ़िगार को धक्के देकर बाहर निकाल दिया. और आज तीन दिन से यह आफ़त का मारा आदमी उसी कँटीले पेड़ के नीचे उसी भयानक मैदान में बैठा हुआ सोच रहा है कि क्या करूँ. दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ मुझको मिलेगी? नामुमकिन! और वह है क्या? क़ारूँ का ख़जाना? आबे हयात? खुसरो का ताज? जामे-जम? तख्तेताऊस? परवेज़ की दौलत? नहीं, यह चीज़ें हरगिज़ नहीं. दुनिया में ज़रूर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनमोल चीज़ें मौजूद हैं मगर वह क्या हैं. कहाँ हैं? कैसे मिलेंगी? या खुदा, मेरी मुश्किल क्योंकर आसान होगी?


दिलफ़िगार इन्हीं ख़यालों में चक्कर खा रहा था और अक़्ल कुछ काम न करती थी. मुनीर शामी को हातिम-सा मददगार मिल गया. ऐ काश कोई मेरा भी मददगार हो जाता, ऐ काश मुझे भी उस चीज़ का जो दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ है, नाम बतला दिया जाता! बला से वह चीज़ हाथ न आती मगर मुझे इतना तो मालूम हो जाता कि वह किस क़िस्म की चीज़ है. मैं घड़े बराबर मोती की खोज में जा सकता हूँ. मैं समुन्दर का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज़ और इनसे भी ज्यादा बेनिशान चीज़ों की तलाश में कमर कस सकता हूँ. मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है.


आसमान पर तारे निकल आये थे. दिलफ़िगार यकायक खुदा का नाम लेकर उठा और एक तरफ को चल खड़ा हुआ. भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर, वह बरसों वीरानों और आबादियों की ख़ाक छानता फिरा, तलवे काँटों से छलनी हो गये, शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ दिखायी देने लगीं मगर वह चीज़ जो दुनिया की सबसे बेश-क़ीमत चीज़ थी, न मिली और न उसका कुछ निशान मिला.


एक रोज़ वह भूलता-भटकता एक मैदान में जा निकला, जहाँ हजारों आदमी गोल बाँधे खड़े थे. बीच में कई अमामे और चोग़े वाले दढिय़ल क़ाजी अफ़सरी शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से ज़रा दूर पर एक सूली खड़ी थी. दिलफ़िगार कुछ तो कमजोरी की वजह से कुछ यहाँ की कैफियत देखने के इरादे से ठिठक गया. क्या देखता है, कि कई लोग नंगी तलवारें लिये, एक क़ैदी को जिसके हाथ-पैर में ज़ंजीरें थीं, पकड़े चले आ रहे हैं. सूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गये और क़ैदी की हथकडिय़ाँ, बेडिय़ाँ सब उतार ली गयीं. इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के खून के छींटों से रंगीन था, और उसका दिल नेकी के ख़याल और रहम की आवाज़ से ज़रा भी परिचित न था. उसे काला चोर कहते थे.


सिपाहियों ने उसे सूली के तख़्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गर्दन में डाल दी और जल्लादों ने तख़्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चीख़कर बोला-खुदा के वास्ते मुझे एक पल के लिए फाँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आख़िरी आरजू निकाल लूँ. यह सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया. लोग अचम्भे में आकर ताकने लगे. क़ाजियों ने एक मरने वाले आदमी की अंतिम याचना को रद्द करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर ज़रा देर के लिए फाँसी से उतार लिया गया.


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(प्रेमचंद की कहानी का यह अंश जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)