वह औरत चाहता था. औरत, चाहे किसी रूप में हो. औरत की ज़रूरत उसकी जिंदगी में एकाएक नहीं पैदा हो गयी थी. एक ज़माने से यह ज़रूरत उसके अन्दर धीरे-धीरे मौजूदा तेज़ी का रूप पाती रही थी और अब अचानक उसने महसूस किया था कि औरत के बिना वह एक पल जिन्दा नहीं रह सकता. औरत उसको ज़रूर मिलनी चाहिए. ऐसी औरत, जिसकी रान पर हौले से धप मार कर वह उसकी आवाज़ सुन सके. ऐसी औरत, जिससे वह वाहियात किस्म की बातें कर सके.
डरपोक
सआदत हसन मंटो
मैदान बिलकुल साफ था, लेकिन जावेद का खयाल था कि म्यूनिसिपल कमेटी की लालटेन, जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है. बार-बार, वह उस चौड़े सहन को, जिस पर नानकशाही र्इंटों का ऊँचा-नीचा फर्श बना हुआ था, पार करके, उस नुक्कड़ वाले मकान तक पहुँचने का इरादा करता, जो दूसरी इमारतों से बिलकुल अलग-थलग था. पर यह लालटेन, जो नकली आँख की तरह, हर तरफ टकटकी बाँधे देख रही थी, उसके इरादे को डगमगा देती और वह उस बड़ी मोरी के उस तरफ हट जाता, जिसको फाँद कर, वह सहन को चन्द कदमों में तय कर सकता था, सिर्फ चन्द कदमों में!
जावेद का घर इस जगह से काफी दूर था, पर यह फासला बड़ी तेज़ी से तय करके, वह यहाँ तक पहुँच गया था. उसके विचारों की गति, उसके कदमों की रफ़्तार से अधिक तेज़ थी. रास्ते में उसने बहुत-सी चीज़ों पर गौर किया. वह बेवकूफ नहीं था. उसे अच्छी तरह मालूम था कि वह एक वेश्या के पास जा रहा है और इसको इस बात की भी पूरी समझ थी कि वह किस वजह से उसके यहाँ जाना चाहता है.
वह औरत चाहता था. औरत, चाहे किसी रूप में हो. औरत की ज़रूरत उसकी जिंदगी में एकाएक नहीं पैदा हो गयी थी. एक ज़माने से यह ज़रूरत उसके अन्दर धीरे-धीरे मौजूदा तेज़ी का रूप पाती रही थी और अब अचानक उसने महसूस किया था कि औरत के बिना वह एक पल जिन्दा नहीं रह सकता. औरत उसको ज़रूर मिलनी चाहिए. ऐसी औरत, जिसकी रान पर हौले से धप मार कर वह उसकी आवाज़ सुन सके. ऐसी औरत, जिससे वह वाहियात किस्म की बातें कर सके.
जावेद पढ़ा-लिखा होशमन्द आदमी था. हर बात की ऊँच-नीच समझता था, पर इस मामले में कुछ और सोचने-विचारने के लिए तैयार नहीं था. उसके मन में एक ऐसी इच्छा हुई थी, जो नयी न थी. इससे पहले, कई बार उसके मन में यह इच्छा पैदा हुई थी और इस इच्छा को पूरा करने के लिए इन्तहाई कोशिशों के बाद, जब उसे निराशा का सामना करना पड़ा तो वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उसकी जिन्दगी में पूरी औरत कभी नहीं आयेगी और अगर उसने उस पूरी औरत की तलाश जारी रखी तो किसी दिन वह पागल कुत्ते की तरह किसी राह-चलती औरत को काट खायेगा.
काट खाने की हद तक अपने इरादे में नाकाम रहने के बाद, अब सहसा उसके मन में इस इच्छा ने करवट बदली. अब किसी औरत के बालों में अपनी उँगलियों से कंघी करने का खयाल उसके दिमाग से निकल चुका था. औरत की तस्वीर उसके दिमाग में मौजूद थी! उसके बाल भी थे, पर अब उसकी यह इच्छा थी कि वह उन बालों को वहशियों की तरह खींचे, नोचे, उखेड़े.
अब उसके दिमाग में से वह औरत निकल चुकी थी, जिसके होंटों पर वह अपने होंट इस तरह रखने के लिए इच्छुक था, जैसे तितली फूलों पर बैठती है. अब वह उन होंटों को अपने गर्म होंटों से दागना चाहता था.... हौले-हौले सरगोशियों में बातें करने का खयाल भी उसके दिमाग में नहीं था. अब वह ऊँची आवाज़ में बातें करना चाहता था. ऐसी बातें, जो उसके मौजूदा इरादे की तरह नंगी हों.
अब पूरी सालिम औरत उसके आगे नहीं थी. ...वह ऐसी औरत चाहता था, जो घिस-घिसा कर, शिकस्ता-हाल मर्द की शक्ल अख्तियार कर गयी हो. ऐसी औरत, जो आधी औरत हो और आधी कुछ भी न हो.
एक समय था, जब जावेद ‘औरत’ कहते समय, अपनी आँखों में एक खास किस्म की ठंडक महसूस किया करता था जब औरत की कल्पना उसे चाँद की ठण्डी दुनिया में ले जाती थी. वह ‘औरत’ कहता था, बड़ी सावधानी से, मानो उसको इस बेजान शब्द के टूटने का डर हो.... एक अर्से तक वह इस दुनिया की सैर करता रहा. पर आखिरकार उसको मालूम हुआ कि औरत, जिसकी तमन्ना उसके दिल में है, उसकी जिन्दगी का ऐसा सपना है, जो खराब मेदे के साथ देखा जाय.
जावेद अब सपनों की दुनिया से बाहर निकल आया था. बहुत देर तक ज़ेहनी तौर से वह अपने आपको बहलाता रहा. पर अब उसका शरीर भयंकर रूप से जाग चुका था. उसकी कल्पना की तेज़ी ने, उसके जिस्मानी एहसासों की नोक-पलक कुछ इस ढंग से निकाली थी कि अब जिन्दगी उसके लिए सुइयों का बिस्तर बन गयी. हर खयाल एक नश्तर बन गया! औरत उसकी नज़रों में ऐसा रूप धारण कर गयी, जिसको वह बयान करना चाहता भी तो न कर सकता.
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