किनारे किनारे
समीर
एयर इंडिया का दैत्याकार विमान चिंघाड़ता हुआ एअरपोर्ट के चारों ओर चक्कर काट रहा था. उसका रुख रनवे की ओर था. किशनलाल वर्मा चिंतित नजरों से विमान को देख रहे थे. उनके माथे पर हल्की-हल्की सलवटें थी. आंखों से गहरी चिंता झांक रही थी. उनके बराबर खड़ी हुई लड़की जो उनकी सैक्रेटरी थी गर्दन झुकाए इस तरह ऊंघ रही थी जैसे खड़े-खड़े नींद पूरी कर रही हो.
विमान के अगले पहिए रनवे पर लग चुके थे. धीरे-धीरे पिछला पहिया भी धरती की ओर बढ़ रहा था. किशनलाल वर्मा ने अपने ओवरकोट की साइड की जेब टटोली और धीरे से बोला‒
“मिस रोशन, क्या तुम विनोद बाबू को पहचान सकोगी?”
सैक्रेटरी की ओर से कोई उत्तर न मिलने पर वर्मा ने उसकी ओर देखा और उसे सोते देख बुरा-सा मुंह बनाकर पुकारा‒ “मिस रोशन...!”
रोशन हड़बड़ाकर सीधी हो गई‒ “यस सर... मुवक्किल की फाइल तैयार है.”
“किस मुवक्किल की फाइल?” वर्मा ने बुरा-सा मुंह बनाया, “तुम यहां सोने के लिए आई हो या विनोद बाबू को रिसीव करने?” रोशन ने बौखलाकर इधर-उधर देखा और जल्दी से बोली‒ “सॉरी सर... आई एम वैरी सॉरी.”
“मैंने तुमसे पूछा था कि क्या तुम विनोद बाबू को पहचान सकोगी?”
“जी हां, जी हां, क्यों नहीं. मैंने उनकी फोटो आपकी आज्ञानुसार काफी देर तक देखी है. एक-एक नक्श याद कर लिया है.” “लेकिन ऊंघने के बाद सारे नक्श भूल गई होगी. एक बार फिर फोटो ध्यान से देख लो.”
वर्मा ने कोट की जेब से एक फोटो निकालकर रोशन की ओर बढ़ाते हुए कहा‒ “वैसे तो मुझे विश्वास है कि इस समय एअरपोर्ट पर कोई ऐसा आदमी मौजूद नहीं है जिस पर किसी प्रकार का संदेह किया जा सके. फिर भी मैं सावधानी के नाते दूर खड़ा हो जाता हूँ. तुम विनोद बाबू को रिसीव करना, मैं दूर रहकर निगरानी करूंगा. जब मुझे इत्मीनान हो जाएगा कि सचमुच कोई आदमी यहां नहीं है तो मैं पास आ जाऊंगा.”
“ओ. के. सर.”
“प्लेन रुक गया है. फोटो ध्यान से देख लो और फिर प्लेन से उतरने वाले यात्रियों पर अच्छी तरह नजर रखो. अगर इस बार ऊंघीं तो मैं तुम्हें डिसमिस कर दूंगा.” “न...न...नहीं सर, अब मैं बिल्कुल नहीं ऊंघूंगी.”
वर्मा टहलते हुए इधर-उधर निगाहें डालते रेलिंग के दूसरे छोर की ओर चले गये और एक ऊंचे स्थान पर जा खड़े हुए. रोशन ने एक नजर सामने रुकने वाले विमान को देखा जिसके पास सीढ़ियां ले जाई जा रही थीं. फिर वह फोटो को देखने लगी. फोटो एक स्मार्ट नौजवान का था. रोशन एक ठण्डी सांस भरकर बड़बड़ाई‒ “हाउ स्वीट यू आर... काश तुम... वही विनोद निकले जिसके सपने मैं अकसर देखा करती हूँ. काश तुम्हारे साथ गोरी चमड़ी की कोई मेम न आई हो विलायत से.”
फिर वह सामने देखने लगी. प्लेन के दरवाजे पर सीढ़ियां लगाई जा चुकी थीं. उसने दरवाजे पर निगाहें जमा दीं. एअरपोर्ट की ऊपरी बालकनी में खड़े एक दाढ़ी वाले सूटेड-बूूटेड बूढ़े ने आंखों पर दूरबीन लगाकर नीचे देखा. नीचे खड़ी रोशन के हाथ में पकड़े फोटो के पूरे नक्श दूरबीन में आंखों के सामने स्पष्ट हो गए. उसके होंठों पर प्रसन्नता-भरी मुस्कान फैल गई. वह दूरबीन द्वारा उस फोटो को बहुत ही ध्यान से देखने लगा.
फिर उसकी दूरबीन प्लेन के दरवाजे की ओर घूम गई. दाढ़ी वाले ने बाएं हाथ से दूरबीन के शीशे एडजेस्ट किए और उतरते हुए मुसाफिरों की ओर देखने लगा. दाढ़ी वाले ने कुछ देर बाद उस नौजवान को उतरते हुए देखा. जिसका फोटो रोशन के हाथ में था. नौजवान के कंधे पर एयर बैग लटका हुआ था. आंखों पर काला चश्मा था. दांतों में सिगार दबा हुआ था. वह दोनों हाथ ओवरकोट की जेब में डाले धीरे-धीरे उतर रहा था. उसकी निगाहें इधर-उधर देखती जा रही थीं.
दाढ़ी वाले के होंठों की रहस्यपूर्ण मुस्कान और गहरी हो उठी. नौजवान एअरपोर्ट की बिल्डिंग की ओर बढ़ रहा था. कुछ देर बाद वह रेलिंग के पास पहुंच गया. रोशन ने फोटो जल्दी से वैनिटी बैग में रख लिया और बैग से छोटा-सा शीशा और लिपिस्टक निकालकर जल्दी से होंठों की लिपिस्टक ठीक की और फिर नौजवान की ओर देखने लगी. नौजवान रेलिंग के निकट जा चुका था. रोशन ने जल्दी से अपने चेहरे पर एक विशिष्ट मुस्कराहट लाकर नौजवान की ओर बढ़ते हुए कहा‒ “हैलो मिस्टर विनोद...!”
नौजवान न केवल चौंककर एक कदम पीछे हट गया बल्कि जल्दी से इधर-उधर देखने लगा. जैसे उसे रोशन ने नहीं किसी और ने संबोधित किया हो. रोशन बड़ी नजाकत से हंसते हुए बड़ी अदा से बोली‒ “एक्सीलेंट...!”
नौजवान ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि दांतों में दबा सिगार फिसल कर गिरने लगा. उसने जल्दी से सिगार लपककर रोशन की ओर देखते हुए पूछा‒ “आपने मुझसे कुछ कहा?”
“यस मि. विनोद, मैं आप ही से कह रही हूँ.”
“वंडरफुल,” नौजवान ने आश्चर्य से कहा, “आपको मेरा नाम कैसे मालूम हुआ? मैं पूरे पंद्रह वर्ष अमेरिका में रहने के बाद आज ही भारत आया हूं.” “आप नाम पर ही आश्चर्य प्रकट कर रहे हैं,” रोशन मुस्कराई, “आपको इस बात पर आश्चर्य नहीं हुआ कि मैंने आपको पहचान कैसे लिया?” “वंडरफुल... हां, आपने मुझे कैसे पहचान लिया?”
“आपके फोटो से.”
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(समीर की किताब का यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)