अलीज़ा उमर को चाहती है, जबकि उमर उसको लेकर असमंजस में है. दिल ही दिल में वो अलीजा को इतना चाहता है कि उसे नहीं लगता कि वो अलीजा के लायक भी है. एक रोमांचक प्रेम कहानी.


अमर प्रेम


उमेरा अहमद


वह अब भी बोलती रही. "आप मुझ से कहते हैं के मैं अपनी सेंस ऑफ़ जजमेंट इस्तेमाल कर के अपनी राय बनाऊं और जब मैं ऐसा करती हूं तो आप मुझ पर हंसते हैं. मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं. आप के नज़दीक दुनिया में आप के अलावा कोई दूसरा सही राय रखने के क़ाबिल ही नहीं है."


"अलीज़ा! मैंने ऐसा नहीं कहा. मैं तुम्हें हर्ट करना नहीं चाहता था. मैं ने बग़ैर सोचे समझे ही बात कही." उमर बिलकुल सुलह करने वाला रवैया इख़्तियार किए हुए था मगर अलीज़ा उसकी बात सुने बग़ैर बोल रही थी.


"मैंने एनजीओज़ के बारे में जो कुछ कहा ठीक कहा. मैंने जो देखा, जो महसूस किया वही बताया. मैंने आप की राय का मज़ाक़ नहीं उड़ाया. मैंने आप की हर बात सुनी मगर आप...आप मेरी बातों का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं.


आप मुझे क्या समझते हैं...इडियट?" उमर के चेहरे से अब मुस्कुराहट बिलकुल ग़ायब हो चुकी थी. "आप को लगता है, दुनिया में आप के अलावा और कोई जीनियस नहीं है." "मैंने ऐसा नहीं कहा." "आपको लगता है के आप के अलावा किसी के पास परखने की सलाहीयत ही नहीं है." "तुम इस वक़्त ग़ुस्से में हो, तुम्हें पता नहीं, तुम क्या कह रही हो. तुम से मैं बाद में बात करूंगा."


उमर एकदम पलट गया मगर अलीज़ा बिजली की रफ़्तार से उसके रास्ते में आ गई. "नहीं! आप मेरी बात सुनें, उसके बाद जाएं." "मेरी एक छोटी सी बात पर इतना आग बबूला होने की ज़रूरत नहीं थी." उमर ने संजीदगी से कहा. " मुझे आप की किसी बात पर ग़ुस्सा नहीं होना चाहिए. क्योंकि आपको हर बात कहने का हक़ है लेकिन मुझे कुछ भी कहने का हक़ नहीं है."


"तुम बहुत कुछ कह रही हो अलीज़ा! और मैं सुन भी रहा हूं. इसके बावजूद तुम्हारा रवैया बहुत इंस्लटिंग है."


"मैंने आप से क्या कहा? मैंने तो कुछ भी नहीं कहा. जो कुछ आप मुझ से कह चुके हैं, उस के सामने तो यह कुछ भी नहीं है." वह अब भी उसी तरह बरहम थी. "मैं अपनी बात के लिए एक्सक्यूज़ कर चुका हूं." "आप हमेशा यही करते हैं. इंस्लट करते हैं. फिर इंसल्ट करते हैं और ऐसा बार बार करते हैं." "अलीज़ा! तुम ग़लत कह रही हो." उमर अपने लहजे को नार्मल रखने की पूरी कोशिश कर रहा था.


"मैं ग़लत नहीं कह रही हूं. आप ने उस दिन मेरी इंसल्ट की थी जब अंकल जहांगीर के साथ आप का झगड़ा हुआ." उमर के चेहरे के तासीरात एकदम तब्दील हो गए. "वह तुम्हारी ग़लती थी, तुम मेरे कमरे में इस तरह क्यों आई थी." उसने ठंडे लहजे में अलीज़ा से कहा. "नहीं आप को उस बात पर ग़ुस्सा नहीं आया के मैं आप के कमरे में इस तरह क्यों आई थी. आप को ग़ुस्सा इस बात पर आया था के मैं यह बात जान गई हूं कि आप ड्रिंक करते हैं."


"तुम्हें पता चल गया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है और तुम हो कौन जिस को यह पता चलने से मुझे कोई फ़िक्र होगी." उसकी आवाज़ में तल्ख़ी थी. "मैंने नानू को नहीं बताया के आप ड्रिंक करते हैं. अगर मैं नानू को बता देती तो..."


उमर उसकी बात पर एकदम भड़क उठा. "तो फिर...फिर क्या होता? वह मुझे शूट कर देतीं या इस घर से निकाल देतीं. तुम जिस को चाहो बताओ मुझे कोई परवाह नहीं, इस घर का कौन सा मर्द है शराब नहीं पीता. वह ख़ुद ग्रैंड पा को ड्रिंक करते देखती रहीं हैं. वह किस मुंह से मुझ से इस बारे में बात कर सकती हैं."


अलीज़ा जैसे रोना भूल गई. "आप को शर्म आनी चाहिए. इस तरह की बात करते." "माइंड योर लैंग्वेज अलीज़ा! तुम काफी बकवास कर चुकी हो और मैं सुन चुका हूं. अब अपना मुंह बंद कर लो तो बेहतर है."


"मुझे आप से नफ़रत है. आप दुनिया के सबसे गंदे और बद्तमीज़ आदमी हैं."


वह बुलंद आज़ में चिल्लाई. जवाबन उमर ने उसके चेहरे पर झन्नाटेदार थप्पड़ मारा था. अलीज़ा गाल पर हाथ रखे बिलकुल साक्त रह गई थी. दुनिया में आख़िरी चीज़ जो वह किसी से तवक्को कर सकती थी, वह उमर का ख़ुद पर हाथ उठाना था. वह पलकें झपकाए बग़ैर बेयक़ीनी के आलम में उसका चेहरा देखती रही. "मुझे अपने बारे में किसी शख़्स के तब्सिरे की ज़रूरत नहीं है." उसने उंगली उठा कर कहा और फिर वह तेज़ क़दमों के साथ रुके बग़ैर कमरे से निकल गया.


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(उमेरा अहमद के उपन्यास अमर प्रेम  का यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)