महाराष्ट्र में कांग्रेस सहित विपक्षी दल शरद पवार के पीछे-पीछे भाग रहे हैं. आज दोपहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुणे में लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया जाना है. इस कार्यक्रम में शरद पवार भी हिस्सा लेने के लिए पहुंच गए हैं.लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन के खिलाफ इंडिया नाम का मोर्चा बना चुके विपक्षी दलों के लिए ये बहुत ही दुविधा वाले हालात हैं.
शरद पवार की पार्टी एनसीपी भी इस गठबंधन में शामिल है, हालांकि उनके भतीजे अजित पवार की अगुवाई में पार्टी विधायकों और नेताओं का एक बड़ा गुट महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो चुका है और अब एनडीए का हिस्सा है.
लेकिन पुणे में होने वाले कार्यक्रम से पहले कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना में बेचैनी है. जब पीएम मोदी के साथ मंच पर बैठे शरद पवार की तस्वीरें आएंगी तो वो क्या जवाब देंगे.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक कांग्रेस और महाराष्ट्र के दूसरे विपक्षी दलों शरद पवार को इस कार्यक्रम में जाने से रोकने के लिए सोमवार को उनसे मिलने पहुंचे थे, लेकिन उनको मिलने के समय नहीं दिया गया.
वहीं इस खबर में शरद पवार के एक समर्थक के हवाले से बताया गया है कि कि वो (शरद पवार) लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में शामिल होने जा रहे हैं. शरद पवार तो रविवार को ही देर रात दिल्ली से पुणे पहुंच चुके हैं.
उधर महाराष्ट्र कांग्रेस के उपाध्यक्ष मोहन जोशी ने टीओआई से बातचीत में बताया है कि विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शरद पवार से मिलने की कोशिश की थी लेकिन वह पुणे पहुंच चुके थे. जोशी ने बताया, 'उसके बाद हम लोगों ने फिर उनसे मिलने का समय मांगा जो कि नहीं दिया गया'.
वहीं शरद पवार के गुट वाली एनसीपी के पुणे जिले के अध्यक्ष प्रशांत जगताप ने टीओआई को बताया कि विपक्षी दलों के साथ कोई मीटिंग नहीं हुई क्यों कि इसका कोई समय पहले से तय नहीं था.
कांग्रेस ही नहीं, उद्धव गुट वाली शिवसेना भी शरद पवार को लेकर बेचैन नजर आ रही है. पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है कि शरद पवार बहुत ही अनुभवी नेता हैं हमें उनको कुछ बताने की जरूरत नहीं है लेकिन उनको अपना रुख साफ करके दुविधा को दूर करना चाहिए.
क्या शरद पवार का भी मन बदल रहा है? लोगों के मन में आ रहे इस सवाल के बीच शरद पवार वाली एनसीपी के एक नेता का कहना है कि पुरस्कार समारोह एक गैर राजनीतिक कार्यक्रम है और हो सकता है यही सोचकर उन्होंने इसमें हिस्सा लेने का फैसला किया है,फिर भी हमारी पार्टी के कार्यकर्ता सड़क पर पीएम मोदी का विरोध करेंगे.
पुणे में इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव) के कार्यकर्ता भी शामिल होंगे और इसको विपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन के तौर भी देखा जा रहा है. इसमें कुछ सामाजिक कार्यकर्ता भी हिस्सा लेंगे. कांग्रेस नेता मोहन जोशी का कहना है कि मणिपुर में हुई हिंसा पर जवाब देने के बजाए पीएम मोदी अलग-अलग राज्यों में घूम रहे हैं. इसका मतलब है कि वो मणिपुर को लेकर गंभीर नही हैं. पुणे में उनको काला झंडा दिखाया जाएगा. हमारा विरोध लोकतांत्रिक होगा, इसके लिए पुलिस से भी इजाजत ले ली गई है.
'लोकतांत्रिक संवाद जरूरी'
वहीं शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अपने पिता के फैसले को सही ठहराया है और कहा कि लोकतंत्र में संवाद अहम होता है, इसलिए वो पीएम मोदी के साथ उनके (शरद पवार) मंच साझा करने में कुछ भी गलत नहीं देखती हैं.
शरद पवार के पीएम मोदी के साथ मंच साझा करने पर उठे सवाल पर एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि लोकतंत्र में संवाद अहम होता है, लोकतंत्र बातचीत के लिए ही है.
अब सवाल इस बात का है जब पीएम मोदी के साथ शरद पवार मंच साझा कर रहे होंगे तो विपक्षी दल सड़क पर प्रदर्शन करके आम जनता को क्या संदेश देने की कोशिश करेंगे और ये नजारा कैसा होगा.
पीएम मोदी का महाराष्ट्र दौरा अहम क्यों?
एनसीपी में टूट के बाद पहली बार पीएम मोदी महाराष्ट्र के दौरे पर हैं. इसके साथ ही इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद पीएम मोदी और शरद पवार पहली बार एक ही मंच पर होंगे. लोकमान्य तिलक पुरस्कार समारोह एक गैर-राजनीतिक कार्यक्रम है जिसमें बीजेपी,शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेता भी होंगे.
किन-किन हस्तियों को मिल चुका है लोकमान्य तिलक पुरस्कार
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी,पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधामंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, इंफोसिस के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति, मेट्रोमैन से विख्यात ई. श्रीधरन
लोकमान्य तिलक पुरस्कार का इतिहास
1983 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार का गठन किया गया था. इसके पुरस्कार के पीछे अवधारणा है लोकमान्य तिलक की विरासत का सम्मान करना है. इसे तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट की तरफ से दिया जाता है. देश की प्रगति और विकास के लिए काम करने पर पुरस्कार दिया जाता है.हर साल 1 अगस्त को लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि पर ये पुरस्कार दिया जाता है. लोकमान्य तिलक पुरस्कार पाने वाले पीएम मोदी 41वीं हस्ती हैं.
पीएम मोदी ने जब की शरद पवार की तारीफ
पीएम मोदी शरद पवार को अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक बता चुके हैं. प्रधानमंत्री ने एक बार ये भी कहा है कि यूपीए सरकार के दौरान एकमात्र नेता हैं जिन्होंने उनकी मदद की है. प्रधानमंत्री का कहना है कि शरद पवार ने ही उनको हाथ पकड़कर राजनीति सिखाई है. शरद पवार ने संसद में अनुशासन का पालन करने वाले नेता हैं. इसके साथ ही मोदी सरकार में ही शरद पवार को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है.
शरद पवार, पीएम मोदी की तारीफ में क्या कह चुके हैं
मेरी राय थी कि गुजरात के CM के खिलाफ की प्रतिशोध की राजनीति न हो. मोदी के काम करने के तरीके से हैरान हो जाता हूं. मोदी किसी काम को अंजाम तक पहुंचाकर रहते हैं. राफेल खरीद में पीएम नरेंद्र मोदी की मंशा पर लोगों को शक नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही शरद पवार ने चीन से तनातनी के बीच पीएम के लद्दाख दौरे की तारीफ भी की थी.
शरद पवार ने कब-कब चौंकाया
साल था 2019 में महाराष्ट्र चुनाव के बाद शिवसेना ने बीजेपी लड़ाई शुरू हो गई. किसी भी पार्टी के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं था.इसी बीच शरद पवार दिल्ली में पीएम मोदी मिले. कयास लगाए जाने लगे कि बीजेपी-एनसीपी मिलकर सरकार बनाएंगे.लेकिन शरद पवार ने बाद में कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना को समर्थन दे दिया.
साल था 2014 में महाराष्ट्र चुनाव के बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं.लेकिन बहुमत से दूर थी. बीजेपी ने सीएम पद के लिए देवेंद्र फडणवीस का नाम आगे कर दिया. शरद पवार ने बाहर से समर्थन देकर बीजेपी की सरकार बनाने में मदद की. शिवसेना चाहकर भी बीजेपी से मोलभाव नहीं कर पाई.
प्रधानमंत्री बनने की चाहत, लेकिन कई बार चूके
साल था 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बहुमत मिल चुका था. सोनिया गांधी के इनकार करने के बाद अर्जुन सिंह, शंकर दयाल शर्मा, मोतीलाल बोरा और अहमद पटेल, यशवंत राव चव्हाण, विलास राव देशमुख और शरद पवार का नाम आगे चल रहा था. यहां ध्यान देने की बात ये है कि इन नामों उत्तर भारत और महाराष्ट्र के नेता ही शामिल हैं.
लेकिन उत्तर भारत के गुट ने शरद पवार सहित महाराष्ट्र के किसी भी नेता को पीएम नहीं बनने दिया और पीवी नरसिम्हाराव को प्रधानमंत्री बना दिया गया.
शरद पवार का राजनीतिक सफर
शरद पवार में राजनीति में 50 सालों सक्रिय हैं. पवार तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पगद की शपथ ले चुके हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते थे. लेकिन सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर वो साल 2004 में कांग्रेस से अलग हो गए और एनसीपी का गठन किया. लेकिन बाद में वो यूपीए सरकार में भी शामिल हो गए और साल 2004 से 2014 तक वह कृषि मंत्री भी रहे. पवार केंद्र में रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं. साल 2017 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया जा चुका है. उस वक्त मोदी सरकार सत्ता में थी.
इंदिरा के समय भी छोड़ दी थी कांग्रेस
27 साल की उम्र में ही शरद पवार विधायक चुने गए थे. इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी से बगावत कर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया. राजनीतिक गठजोड़ में माहिर पवार ने 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बन गए.
साल 1980 में जब इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को बर्खास्त कर दिया. शरद पवार चुप नहीं बैठे.साल 1983 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन कर महाराष्ट्र की राजनीति में पैठ बनाए रखी. इसी साल शरद पवार में बारामती से लोकसभा चुनाव जीता और 1985 में उनकी पार्टी विधानसभा की 54 सीटें जीत लीं. शरद पवार की इस जीत ने उन्हें महाराष्ट्र का चाणक्य बना दिया. साल 1987 में उन्होंने कांग्रेस में फिर वापसी की और 1988 में वो कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री बन गए.