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सावधान! स्मोकिंग नहीं भी करते तो भी धुएं से हो सकता है डिमेंशिया
नई दिल्ली: क्या आप जानते हैं ब्रेन और स्मोकिंग का आपसी संबंध है. कोई व्यक्ति जितना ज्यादा इनडायरेक्ट स्मोकिंग के कॉन्टेक्ट में रहता है, उसकी हेल्थ को उतना ज्यादा ही खतरा बढ़ जाता है.
क्या कहती है रिसर्च
इंग्लैंड के एग्जिटर में मौजूद पैनिनसुला मेडिकल स्कूल के ब्रिटिश मेडिकल जरनल में पब्लिश रिसर्च में स्मोकिंग न करने वाले 50 साल से कम उम्र के 4800 लोगों के थूक की जांच की गईं, जिनमें कोटिनाइन की जांच की गई. यह निकोटीन में शामिल एक तत्व होता है जो स्मोकिंग के 25 घंटे बाद तक थूक में मौजूद रहता है.
रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों में कोटिनाइन की मात्रा अधिकतम होती है, उनमें निम्नतम कोटिनाइन वालों की तुलना में मेंटल डिसैबिलिटी का खतरा 44% अधिक होता है.
क्या कहते हैं डॉक्टर
आईएमए के अध्यक्ष डॉ के.के. अग्रवाल के मुतािबक, पूरी दुनिया में 4.68 करोड़ लोगों में डिमेंशिया होने का अनुमान है और यह संख्या अगले 20 सालों में दुगुना होने की आशंका है. स्मोकिंग से हार्ट प्रॉब्लम्स, डायबिटीज और स्ट्रोक का खतरा रहता है, जो डिमेंशिया का सबसे बड़ा कारण बनते हैं.
डिमेंशिया का कारण
उन्होंने कहा कि स्मोकिंग और होमीसाइसिटाइन का हाई लेवल भी मेंटल डिसैबिलिटी में अहम भूमिका निभाता है. यहां तक कि धुएं की वजह से होने वाली ऑक्सिडेटिव हानि ऐसा हालात पैदा कर सकती है, जिससे डिमेंशिया होता है. इनडायरेक्ट स्मोकिंग के भी ऐसे ही परिणाम होते हैं. जितना ज्यादा हम स्मोकिंग वाले माहौल में रहेंगे, उतना ज्यादा खतरा डिमेंशिया का बढ़ेगा और दिमाग उतना ही कमजोर होगा.
रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि एल्जाइमर के इलाज के लिए दी जाने वाली कई दवाओं का असर भी धूम्रपान कम कर सकता है.
कैसे रोके डिमेंशिया को
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने से फ्यूचर में डिमेंशिया होने का खतरा कम हो जाता है. रेगुलर एक्सरसाइज, बैलेंस वेट, बैलेंस डायट, स्मोकिंग से दूर रहना, टेंशन से दूर रहना और एल्कोहल लीमिट में लेना, डिमेंशिया, कैंसर, सांस संबंधी बीमारियों और मेंटल हेल्थ के खतरे को कम कर देता है."
उन्होंने कहा कि इस बारे में जागरूकता फैला कर ही इसे कम किया जा सकता है. एक अनुमान के मुताबिक, धूम्रपान छोड़कर डिमेंशिया के एक तिहाई मामले रोके जा सकते हैं.
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