शतरंज और सियासत की बिसात में कोई खास फर्क नहीं होता. जैसे शतरंज की बिसात पर चाल चलने से पहले आगे और पीछे देखने की जरूरत होती है. तिरछी और ढाई चालों पर भी नजर रखनी होती है और बादशाह को शह से भी बचाना होता है. शतरंज के बिसात की यही बारीकियां बंगाल के सियासी रण में आजमाई जा रही हैं.


राज की बात ये है कि बंगाल विजय में पूरी ताकत से लगी भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव लड़ने के फार्मूले में आमूल-चूल परिवर्तन किए हैं. दरअसल किसी भी राज्य में चुनाव हो तो बीजेपी के सभी राज्यों के दिग्गजों को उस चुनाव में उतारा जाता है. ब्लॉक और पंचायत के स्तर पर दिग्गज मोर्चा सभालते हैं और पार्टी को मजबूत करने का जतन किया जाता है. लेकिन राज की बात ये है कि किसान आंदोलन के बाद बदलते सियासी समीकरणों के बीच बीजेपी ने अपनी चुनावी रणनीति की धुरी के एलाइनमेंट को थोड़ा चेंज किया है. राज की बात ये है कि बंगाल चुनाव में पूरी बीजेपी अपनी ताकत झोंक कर लड़ेगी लेकिन इस अभियान का हिस्सा पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेताओं को नहीं बनाया जाएगा.


नेताओं को बंगाल भेजना पार्टी के लिए भारी भी पड़ सकता है


अब सवाल ये है कि आखिर ये फैसला बीजेपी आलाकमान ने क्यों लिया है. तो आपको समझाते हैं. दरअसल जिन नेताओं को बंगाल के कैंपेन में न भेजने का फैसला किया गया है वो उन क्षेत्रों के हैं जहां पर किसान आंदोलन का असर सबसे ज्यादा है. इन क्षेत्रों में पार्टी आलाकमान में किसानों को साधने की जिम्मेदारी अपने-अपने नेताओं को सौंप रखी है. ये तो हुई साधारण सी बात लेकिन इन नेताओं को बंगाल न भेजने के पीछे जो अहम राज की बात है वो हम आपको बताते हैं. राज की बात ये है कि पंजाब हरियाणा और पश्चिमी यूपी की सियासी परिस्थितियां ऐसी है कि यहां के नेताओं को बंगाल भेजना पार्टी के लिए भारी भी पड़ सकता है. वो कैसे ये भी आपको समझाते हैं.


सबसे पहले बात पंजाब की करते हैं. दरअसल राज की बात ये है कि पंजाब में अकाली दल के बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. जानकारी के मुताबिक चंद बड़े बीजेपी नेताओं को तोड़कर अपने पाले में करने की कोशिश कांग्रेस और अकाली दल की तरफ से जारी रहती है ऐसे में बीजेपी के सामने खतरा ये है कि अगर बड़े नेतओं को बंगाल में लगा दिया गया तो कहीं जमीनी स्तर पर तोड़फोड़ से पार्टी को नुकसान न हो जाए. कहीं ऐसा न हो कि कुछ नाममात्र के जुझारू नेतओं को भी पंजाब में बीजेपी खो दे.


थोड़ी सी चूक मिशन 2022 पर भारी पड़ सकती है


हालात हरियाणा में भी ऐसे ही हैं. तोड़फोड़ वाली राजनीति की गुंजाइश की तलाश वहां भी जारी है ऐसे में हरियाणा के नेताओं को किसानों पर ही फोकस करने को कहा गया है और बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करें तो यहां के जाट नेताओं के साथ बीजेपी आलाकमान ने बैठक की और किसानों को समझाने की जिम्मेदारी दी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मामला इसलिए संवेदनशील है क्योंकि अगले ही साल यूपी में चुनाव हैं और थोड़ी सी चूक मिशन 2022 पर भारी पड़ सकती है.


यही वजह है कि बीजेपी के रणबांकुरे बंगाल में मोर्चा संभालेंगे लेकिन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के नेतओं को पंजाब नहीं भेजा जाएगा. इनकी जिम्मेदारी अपने राज्य में जमीन मजबूत करने की है और नाराज किसानों को मानाने की है.