पटना: बिहार में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. इसे एक बार फिर साबित कर दिया है, बिहार की बेटी कल्पना कुमारी ने. बिहार के शिवहर जिले के तरियारी प्रखंड के छोटे से गांव नरवारा से निकलकर कल्पना ने राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट) 2018 में टॉप करके आज पूरे देश में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया है.

बचपन में खेल-खेल में स्टेथोस्कोप खिलौने से लोगों की दिल की धड़कन नापने वाली कल्पना एमबीबीएस और बीडीएस में प्रवेश के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (नीट) 2018 में देशभर में सर्वोच्च अंक लाकर अपने बचपन के सपने को उड़ान दी है. कल्पना को नीट में 99.99 परसेंटाइल मिले हैं.

कल्पना ने बताया कि उनको नीट के परिणाम की जानकारी उनकी बड़ी बहन ने दी. इस परिणाम से बेहद खुश कल्पना ने कहा, "मेरी प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक गांव से हुई है. इसके बाद मैंने नवोदय विद्यालय शिवहर से दसवीं और बिहार बोर्ड से बारहवीं की परीक्षा दी. मेरे पिता राकेश मिश्रा सीतामढ़ी में शिक्षा विभाग के अधिकारी हैं और उनकी मां ममता मिश्रा गृहिणी हैं."

तीन भाइयों और बहनों में सबसे छोटी कल्पना की बड़ी बहन भारती कुमारी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर इसी महीने रक्षा मंत्रालय के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ज्वाइन करने वाली हैं, जबकि उनका बड़ा भाई प्रणव गुवाहाटी आईआईटी में अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा है.

कल्पना ने कहा, "मुझे बचपन से डॉक्टर बनने का शौक था. 10वीं कक्षा पास करने के बाद से ही मैं इस दिशा में जुट गई थीं. दो साल से दिल्ली में अपनी मौसी के घर रहकर एक कोचिंग संस्थान से नीट की तैयारी कर रही थीं."

वे बताती हैं कि उनके पिता एक शिक्षक हैं. वे जब भी डॉक्टर बनने के अपने सपने को पिता से साझा करतीं तो हमेशा ही उनके पिता का समर्थन उन्हें मिलता है. उसी की बदौलत आज इस मुकाम तक पहुंची हैं.

कल्पना का कहना है, "मेरे इस मुकाम पर पहुंचने के लिए मां-पिता, परिवार के अन्य सदस्यों, शिक्षकों और मित्रों का भी बहुमूल्य योगदान है." भविष्य की योजना के विषय में पूछे जाने पर कल्पना ने कहा, "अभी पांच साल तो एमबीबीएस फिर एमएस करना है. उसके बाद आगे का विचार करूंगी."

उन्होंने हालांकि इतना जरूर कहा कि डॉक्टर बनने के बाद वह लोगों की सेवा करना चाहती हैं और उनकी कोशिश समाज को वह सबकुछ देने की रहेगी जिसकी समाज को उनसे उम्मीद है.

कल्पना के पिता राकेश मिश्रा भी अपनी छोटी बेटी कल्पना की सफलता से बेहद खुश हैं. उन्होंने कहा, "कल्पना को बचपन से ही डॉक्टर बनने का जुनून था. बचपन में ही वह स्टेथोस्कोप खिलौने से लोगों की दिल की धड़कनों को नापती थी."

खुद को भाग्यशाली बताते हुए राकेश कहते हैं कि वे हमेशा ही अपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा देने के पक्षधर रहे हैं. लेकिन उनके बच्चों ने उम्मीद से कई गुना ज्यादा उपलब्धि हासिल की है, जिसे वे शब्दों में बयां नहीं कर सकते.

इधर, कल्पना के परिणाम के बाद उसके गांव के लोग भी काफी खुश हैं. नरवारा गांव के धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि वे तीन भाई-बहन इस गांव के बच्चों के लिए आदर्श हैं. कल्पना ने तो पूरे गांव का ही नहीं बिहार का नाम रौशन किया है.