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73 साल की उम्र में समर कैंप जाकर इन्होंने सीखी संस्कृत, सीएम योगी ने की मुलाकात

सीएम योगी ने प्रोफेसर सरोज चूड़ामणि गोपाल से मुलाकात की. वे देश की जानी मानी पेडियेट्रिक सर्जन हैं. 73 वर्ष की उम्र में भी उनमें सीखने की ललक बच्चों जैसी है. इसकी बानगी इसी से देखने को मिलती है कि हाल ही में उन्होंने एक समर कैंप में संस्कृत बोलनी सीखी है.

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वाराणसी: रविवार को सीएम योगी सम्पर्क फॉर समर्थन अभियान के लिए प्रबुद्धजनों से मिलने के लिए निकले. इस दौरान उन्होंने प्रोफेसर सरोज चूड़ामणि गोपाल से भी मुलाकात की. वे देश की जानी मानी पेडियेट्रिक सर्जन हैं. 73 वर्ष की उम्र में भी उनमें सीखने की ललक बच्चों जैसी है. इसकी बानगी इसी से देखने को मिलती है कि हाल ही में उन्होंने एक समर कैंप में संस्कृत बोलनी सीखी है. यही नहीं उन्होंने बकायदा समर कैंप के खत्म होने पर आयोजित रंगारंग कार्यक्रम का संचालन भी किया. इस समर कैंप की खास बात यह रही कि उनके साथ संस्कृत सीखने वालों में उनके पोते-पोतियों की उम्र के बच्चे भी शामिल थे.

प्रोफेसर चूड़ामणि अपनी इस उपलब्धि से काफी खुश हैं. वे कहती हैं कि जब मालूम पड़ा कि समर कैंप में संस्कृत बोलनी सिखाई जाएगी तो वे अपने आपको इसमें एनरोल करवाने से रोक नहीं पाईं. उन्होंने बताया कि संस्कृत बतौर सब्जेक्ट उन्होंने स्कूल में पढ़ा था. फिर मेडिकल प्रोफेशन में आने के बाद संस्कृत से नाता टूट सा गया. केवल पूजा-पाठ के समय श्लोक पढ़ने तक संस्कृत की जानकारी रह गई थी. वे कहती हैं कि समर कैंप के दौरान अस्सी घाट पर पेड़ के नीचे बैठकर संस्कृत बोलना सीखना, मानो ऐसा था, जैसे गुरुकुल में पढ़ रहे हों. समर कैंप में उन्हें बस एक कमी खली कि कोई रिटेन मटेरियल नहीं मिला, जिसे आगे सहेज कर रखा जा सके. लेकिन इसके बाद भी वे खुश हैं कि 15 दिनों में उन्होंने देवभाषा बोली जाने वाली संस्कृत में संवाद करना सीख लिया है. इस कैंप में प्रोफेसर चूड़ामणि के साथ पढ़ने वालों में सेकंड क्लास में पढ़ने वाले अनंत अरोरा भी शामिल थे. वे तुलसी विद्या निकेतन के स्टूडेंट हैं. उन्हें भी अपने से बड़ों के साथ संस्कृत बोलना सीखने में काफी मजा आया. अब वे भी आसानी से संस्कृत बोल लेते हैं.

इस कैंप में दो लोग ऐसे भी थे जो आने जीवन के अंतिम पल बिताने काशी आए हुए हैं. त्रिपुरा के रहने वाले 66 वर्षीय जगदीश चक्रवर्ती और आजमगढ़ के रहने वाले स्वामीनाथ तिवारी भी इस कैंप में संस्कृत क्लास का हिस्सा थे. जगदीश चक्रवर्ती त्रिपुरा में स्कूल में फिजिक्स और मैथ्स के टीचर थे. उनका भी मानना है कि संस्कृत जब विदेशों में इतनी पॉपुलर है तो हम क्यों इसे पढ़ने और बोलने से झिझकें. 75 वर्षीय स्वामीनाथ तिवारी रेलवे के पर्सनल डिपार्टमेंट में बड़े अफसर थे. बीते तीन सालों से वे मुमुक्षु भवन में रह रहे हैं और मान्यता के अनुसार अंतिम सांस काशी में ही लेना चाहते हैं. वे भी संस्कृत बोलना सीखना चाहते थे, इसी वजह से उन्होंने यह कैंप ज्वाइन किया. वे कहते हैं कि कैंप में संस्कृत की क्लास में बैठने के दौरान वे भी बच्चों के साथ अपने आप को बच्चा महसूस करते थे.

इसी कैंप में शामिल थीं हाउसवाइफ सोनिया कपूर. वे इस क्लास को अटेंड करने एक लिए सुबह 5:30 बजे गंगापार रामनगर से आ जाती थीं. उनका इस क्लास के बारे में कहना था कि उनके साथ संस्कृत सीखने वालों में ज्यादातर लोग एकेडेमिक्स से जुड़े हुए हैं. ऐसे लोगों के साथ कुछ भी सीखना अपने आप में एक न भुला देने वाला अनुभव है. खासतौर से जब अपने देश की संस्कृति बताने वाली भाषा संस्कृत हो. कैंप में स्कूल में सोशल साइंस पढ़ाने वाली टीचर सीमा गौतम भी शामिल थीं. उनका इंटरेस्ट अपना कल्चर नजदीक से समझने में था. उन्होंने कहा कि अपने कल्चर का बेस जानने संस्कृत को जानना जरूरी है. वे इस क्लास में पार्टिसिपेट करने को अपने लिए गौरवशाली क्षण बताती हैं. उन्होंने कहा कि बच्चों के साथ बच्चा बनाकर पढ़ने से उन्हें उनकी मनोदशा को समझने में बहुत मदद मिली है. इसी तरह रागिनी जायसवाल भी पहले टीचर थीं लेकिन अब फैमिली की जिम्मेदारी के चलते फुलटाइम हाउसवाइफ की भूमिका में आ गई हैं. उन्होंने बताया कि क्लास के दौरान सभी अपना परिचय संस्कृत में देते थे. उन्होंने कहा कि 15 दिनों के भीतर फैमिली जैसा एनवायरनमेंट बन गया था. कैंप खत्म हुआ तो थोड़ा निराशा हुई, लेकिन सबने मोबाइल नम्बर एक्सचेंज कर लिए हैं तो कॉल करके संस्कृत में बात करेंगे.

दिलचस्प बात यह रही कि बिहार राहुल पांडे जो कि नालंदा के गोयनका डिग्री कॉलेज में संस्कृत के स्टूडेंट हैं, वे भी संस्कृत बोलना सीख रहे थे. उनका मानना है कि संस्कृत भाषा पढ़ कर समझना और उसमें संवाद करना दो अलग बाते हैं. उनके मुताबिक उन्होंने यह कोर्स अपने संस्कृत संवाद को सुधारने के लिए ज्वाइन किया था. इस कोर्स में कई स्टूडेंट रही हाउसवाइफ सरल मधु के मुताबिक हमारे देश मे संस्कृत आम बोलचाल की भाषा नहीं है, जबकि भारत के ज्यादातर पौराणिक ग्रन्थ संस्कृत में है. जर्मनी जैसे देश में जगह-जगह सनस्क्रूट के शब्द लिखे दिखते हैं. उनके मुताबिक विदेशी बनारस आकर संस्कृत बोलना सीख जाते हैं, लेकिन हम अपनी ही भाषा को सीखने में शर्म महसूस करते हैं.

इस संवादशाला की टीचर थीं श्वेता बरनवाल, जो कि अपने ज्यादातर स्टूडेंट्स के मुकाबले काफी उम्र की हैं. लेलकीं उन्होंने संस्कृत सिखाते समय क्लास में इस ऐज गैप को हावी नहीं होने दिया. वे पढाई के साथ आने स्टूडेंट्स के मनोरंजन के लिए भी एक्टिविटी कराती थीं. वे बकायदा अपने स्टूडेंट्स को होमवर्क भी देती थीं. जो इसे पूरा नहीं करता था, उसे पूरा समय संस्कृत में ही बात करने की पनिशमेंट मिलती थी.

इस कैंप की संचालिका अंकिता खत्री ने बताया कि संस्कृत संभाषण की क्लास में बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक का एक साथ संस्कृत में संवाद करना काफी सुखद और आश्चर्यजनक अनुभव था. खासतौर से वे इस कैंप में प्रोफेसर सरोज चूड़ामणि गोपाल के एनरोल होने को, इस कैंप की बड़ी उपलब्धि मानती हैं. उनका मानना है कि इससे अगली बार ले कैंप में संस्कृत सीखने आने वालों की संख्या बढ़ेगी और बड़े भी अपनी झिझक छोड़कर संस्कृत बोलना सीखने आएंगे.

Published at : 10 Jun 2018 05:08 PM (IST) Tags: Sampark for Samarthan UP CM Yogi AdityNath sanskrit varansi
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