पहली बार मीडिया के सामने साथ आएंगे अखिलेश-मायावती, कांग्रेस के बिना गठबंधन का होगा एलान
2014 के लोकसभा चुनाव में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस तीनों पार्टियां अलग-अलग होकर चुनाव लड़ी थी. मोदी लहर ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं करने दिया.
नई दिल्ली: कल दोपहर 12 बजे ऐसी सियासी तस्वीर सामने आने वाली है जो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी चुनौती पेश करेगा. बीएसपी अध्यक्ष मायावती और समाजवादी पार्टी चीफ अखिलेश यादव पहली बार एक साथ मीडिया से मुखातिब होंगे और संभवत: गठबंधन की आधिकारिक ऐलान करेंगे. इससे पहले आज मायावती और अखिलेश की लखनऊ में मुलाकात होगी, जिसमें सीटों को लेकर अंतिम मुहर लगेगी.
इंतज़ार ख़त्म : #मायावती और #अखिलेशयादव का साझा प्रेस कनफ़्रेंस लखनऊ में कल pic.twitter.com/YCRErBsU54
— Pankaj Jha (@pankajjha_) January 11, 2019
सूत्रों के मुताबिक, दोनों पार्टियां 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. सूबे में 80 सीटें हैं. बांकी बची छह सीटें अन्य छोटे दलों के लिए एसपी-बीएसपी छोड़ेगी. यह गठबंधन कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है. कांग्रेस एसपी और बीएसपी के साथ महागठबंधन बनाने की कोशिश में थी. जिसपर पानी फिरता दिख रहा है. दोनों पार्टियां कांग्रेस की परंपरागत सीटें अमेठी और रायबरेली छोड़ सकती है. यूपी में 2014 के चुनाव में कांग्रेस सिर्फ अमेठी और रायबरेली की सीटें ही जीत पाई थी. यहां से राहुल गांधी और सोनिया गांधी सांसद हैं.
क्या कहते हैं सर्वे?
एसपी-बीएसपी गठबंधन बीजेपी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. एबीपी न्यूज़ के हालिया सर्वे पर गौर करें तो एसपी-बीएसपी गठबंधन 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में 50 सीटें जीत सकती है. वहीं एनडीए के खाते में 28 सीटें जा सकती है. कांग्रेस पिछली बार की तरह की मात्र दो सीटों पर सिमट सकती है. यूपी में एनडीए में बीजेपी, अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी शामिल है. हालांकि बीजेपी की दोनों पार्टियां भी नाराज है.
पिछले चुनाव का हाल
2014 के लोकसभा चुनाव में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस तीनों पार्टियां अलग-अलग होकर चुनाव लड़ी थी. मोदी लहर ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं करने दिया. मायावती की बीएसपी तो खाता खोलने में भी नाकामयाब रही.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. हालांकि गठबंधन को खास सफलता नहीं मिली थी. विधानसभा की कुल 403 सीटों में कांग्रेस मात्र सात और समाजवादी पार्टी 47 सीट जीतने में कामयाब रही. तब बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) मात्र 19 सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी ने 312 सीटों पर कब्जा जमाया था.
खराब प्रदर्शनों को देखते हुए अखिलेश ने कांग्रेस से दूरी बना ली और मायावती के साथ जाने का एलान किया. दोनों ने सहयोग ने फूलपुर, गोरखपुर और कैराना में हुए उपचुनाव में शानदार सफलता हासिल की. तीनों सीटों पर चुनाव से पहले बीजेपी का कब्जा था. अब 2019 लोकसभा चुनाव का सभी को इंतजार है. इस चुनाव में बुआ और बबुआ की सियासी जोड़ी कितनी सफल होती है यह देखना काफी दिलचस्प होगा.