मुंबई: महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस की महागठबंधन की सरकार है, लेकिन राज्य में ज़िला स्तर पर कई जगहों पर गठबंधन धर्म का पालन नहीं हो रहा, जिससे सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या राज्य की महागठबंधन की ठाकरे सरकार में सब ठीक चल रहा है? ताज़ा उधारण है अहमदनगर के पारनेर नगरपाचंयत का, जहां गठबंधन की सरकार बनने से पहले शिवसेना, एनसीपी ने मिलकर सत्ता हासिल की थी, लेकिन अब अगले चुनाव से पहले शिवसेना के पांच पार्षदों ने एनसीपी में प्रवेश किया, जिससे पारनेर में शिवसेना की ताक़त कम होकर एनसीपी का वर्चस्व बना है.
एनसीपी में शामिल होने वाले पार्षदों के नाम हैं, डॉ मुदस्सिर सैयद, नंदकुमार देशमुख, किसान गंधडे, वैशाली औटी और नंदा देशमान. इनके अलावा, शिवसेना के कुछ पदाधिकारियों ने भी एनसीपी का दामन थामा है.
इन लोगों का कहना है कि पारनेर के नगराध्यक्ष से नाराज़ होकर उन्होंने शिवसेना छोड़ एनसीपी में जाने का फ़ैसला किया है, लेकिन बताया जा रहा है कि एनसीपी नगर चुनाव से पहले पारनेर में अपनी ताक़त बढ़ाना चाहती है, इसीलिए अपने मित्र पक्षों पार्षदों को अपने साथ जोड़ने के लिए भी राज़ी हुई. यानी शिवसेना की ताक़त कम कर अपनी ताक़त बढ़ाने को एनसीपी गठबंधन धर्म के ख़िलाफ़ काम करना नहीं मानती. एनसीपी नेताओं का कहना है कि हर पार्टी को अपनी ताक़त बढ़ाने का अधिकार है. हम सरकार में साथ हैं, लेकिन पार्टी तो अलग अलग है.
दरअसल इस पार्टी तोड़ राजनीति की बड़ी वजह है पारनेर के पूर्व शिवसेना विधायक विजय औटी और मौजूदा एनसीपी के लंके के बीच वर्चस्व की लड़ाई. बताया जा रहा है कि विधायक लंके शिवसेना छोड़ एनसीपी में शामिल हुए, चुनकर भी आए. फिर अब नगरपंचायत शिवसेना से छीनने का सपना भी देख रहे हैं. और इस काम में उन्हें साथ मिल रहा है राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार का, बताया जा रहा है कि खुद पार्टी अध्यक्ष शरद पवार भी विधायक लंके के काम से काफ़ी प्रभावित हैं. तभी तो गठबंधन धर्म के ख़िलाफ़ जाकर पार्टी बढ़ाने के इस निर्णय को पार्टी ने ही हरी झंडी दे दी.
राज्य में तीन दलों के एक साथ आने और सत्ता चलाने के बाद, सवाल यह था कि क्या ये सभी शुरू से ही जमीनी स्तर पर एकजुट होंगे. इसका जवाब अब कई जगहों से मिल रहा है. स्थानीय क्रंच राज्य क्रंच से बड़ा है. नतीजतन, स्थानीय चुनावों के दृष्टिकोण के रूप में, सत्ता संघर्ष भड़क गया है और ऐसे संकेत हैं कि महाविकास अघाड़ी के घटक दलों को स्थानीय स्तर पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जाता है. इसे नजरअंदाज करना होगा, क्योंकि राज्य में सत्ता में रहने वाली पार्टियों को स्थानीय स्तर पर भी जीवित रहने की जरूरत है.
राज्य में तीन पार्टीयों के गठबंधन की सरकार है, तीनों पार्टीयों का सत्ता के लिए मिलन तो हो गया, लेकिन क्या तीनों पार्टियों के विचारधारा का मिलन हो सका है. इससे पहले कांग्रेस के नेताओं ने खुलकर सरकार में अपनी हिस्सेदारी को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की थी. कांग्रेस के एक मंत्री ने तो शरद पवार पर टीका की. अब एनसीपी पार्टी बढ़ाने के नाम पर शिवसेना को तोड़ रही है. इससे साफ़ दिखता है कि गठबंधन की ठाकरे सरकार में सबकुछ ठीक नहीं.