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एक जेल जहां कैदियों को हासिल है घर बसाने और काम पर बाहर जाने की आजादी
खुली जेल को आधिकारिक तौर पर "देवी अहिल्याबाई खुली कॉलोनी" नाम दिया गया है. फिलहाल इसमें 10 विवाहित कैदियों को स्वतंत्र अपार्टमेंट दिये गये हैं.
इंदौर: बरसों पुरानी तंग काल कोठरी की जगह दो कमरों का नया-नवेला घर, जिसमें परिवार के साथ रहने का सुख और इसके साथ ही दिन भर बाहर काम करने की स्वतंत्रता-यह उस खुली जेल की तस्वीर है जिसे यहां सजायाफ्ता कैदियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के मकसद के तहत शुरू किया गया है.
जिला जेल के पास हाल ही में शुरू की गयी खुली जेल को आधिकारिक तौर पर "देवी अहिल्याबाई खुली कॉलोनी" नाम दिया गया है. फिलहाल इसमें 10 विवाहित कैदियों को स्वतंत्र अपार्टमेंट दिये गये हैं. इन्हीं में से एक अपार्टमेंट में 45 साल के भूपेंद्र सिंह ने रविवार से अपनी गृहस्थी बसायी है.
मध्यप्रदेश के शाजापुर कस्बे के इस निवासी को पारिवारिक विवाद में एक युवक की हत्या के वर्ष 1996 के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद उन्हें उम्रकैद की सजा सुनायी गयी थी. पिछले साढ़े बारह साल के दौरान वह सूबे की अलग-अलग जेलों में बंद रहे हैं. उन्होंने बताया, "उम्रकैद की मेरी सजा पूरी होने में फिलहाल कुछ समय बाकी है. लेकिन खुली जेल में आने के बाद मुझे लग रहा है कि मेरी अभी से रिहाई हो गयी है. मुझे अपने जुर्म पर पछतावा है और अब मैं आम नागरिक की तरह जीवन बिताना चाहता हूं."
खुली जेल में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं कैदी
सिंह ने बताया, "चूंकि खुली जेल में रहने के कारण मुझे बाहर काम करने की आजादी भी है. लिहाजा मैं शहर में चाय-नाश्ते की दुकान खोलने की तैयारी कर रहा हूं." खुली जेल में उनकी पत्नी सीमा भी उनके साथ रह रही हैं. इस दम्पति के दो बेटे हैं जो इंदौर से बाहर पढ़ रहे हैं. अगले शैक्षणिक सत्र से उनका दाखिला किसी स्थानीय स्कूल में कराया जायेगा और वे भी अपने माता-पिता के साथ खुली जेल में रह सकेंगे.
सीमा ने कहा, "मैं अपने पति से बरसों दूर रही हूं और अपने दोनों बेटों की परवरिश की है. लेकिन हम खुश हैं कि हमारा परिवार अब साथ रह सकेगा." इस बीच, जिला और सत्र न्यायाधीश राजीव कुमार श्रीवास्तव ने खुली जेल के प्रयोग को सराहा है. उन्होंने कहा, "कई बार ऐसा होता है कि क्षणिक आवेग के कारण लोग गंभीर अपराध कर बैठते हैं.
ऐसे लोग जब सजा के दौरान लम्बे समय तक सामान्य जेलों में बंद रहते हैं, तो उनके मन में सामाजिक तंत्र से बगावत करने और दूसरे नकारात्मक भावनाएं घर कर जाती हैं. इन लोगों को नकारात्मक भावनाओं से बचाकर उनकी सामाजिक बहाली के लिये खुली जेल का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ विकल्प है."
खुली जेल जिला जेल की प्रशासकीय निगरानी
श्रीवास्तव ने कहा, "खुली जेल में सजा पूरी करने के बाद जब कैदी रिहा होंगे, तो वे समाज को और समाज उनको बेहतर तरीके से अपना सकेगा." खुली जेल जिला जेल की प्रशासकीय निगरानी में शुरू की गयी है. जिला जेल की अधीक्षक अदिति चतुर्वेदी ने बताया, "हाई कोर्ड के दिशा-निर्देशों के मुताबिक प्रदेश में खुली जेलों का प्रयोग शुरू किया गया है. इन जेलों में अच्छे बर्ताव वाले उन कैदियों को रखा जाता है जिन्हें गंभीर अपराधों में उम्रकैद की सजा सुनायी गयी हो और इस दंड की अवधि एक से दो साल में खत्म होने वाली हो."
उन्होंने बताया कि खुली जेल में रहने वाले सभी कैदी सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक इस परिसर के बाहर काम कर सकते हैं. लेकिन इस दौरान उन्हें शहर की सीमा लांघने की इजाजत नहीं है. चतुर्वेदी ने बताया कि जेल प्रशासन ने पूरी कोशिश की है कि खुली जेल का माहौल इसके नाम के मुताबिक रहे. फिर भी इसमें रहने वाले कैदियों और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए तीन प्रहरियों की तैनाती की गयी है. ये प्रहरी जेल में आने-जाने वाले लोगों का पूरा रिकॉर्ड रखेंगे.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
Opinion