लखनऊ: लोकसभा चुनाव की आहट के बीच उत्तर प्रदेश के बंटवारे का मुद्दा एक बार फिर उठा है. इस दफा यह मामला दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने उठाते हुए इसके समर्थन में बाकायदा आंदोलन छेड़ने का एलान किया है.
आप के प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश एक विशाल राज्य है और आबादी के लिहाज से देखें तो इसे दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा राज्य माना जा सकता है. इतने बड़े सूबे का असल मायने में विकास कर पाना अब व्यावहारिक दृष्टि से दूभर है.
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी छोटे राज्यों की पक्षधर है. वह उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने की हिमायत करती है और वह इस मांग को लेकर आंदोलन भी करेगी. पार्टी इस आंदोलन की रणनीति दो-चार दिन में तय कर लेगी.
इस सवाल पर कि उत्तर प्रदेश के विभाजन का दूसरी पार्टियां कड़ा विरोध जता चुकी हैं, सिंह ने कहा कि बीजेपी भी छोटे राज्यों के गठन की हिमायती है. बुंदेलखण्ड के लोग, पूर्वांचल के निवासी और पश्चिमी क्षेत्र के बाशिंदे भी अपने लिये अलग राज्य की मांग अर्से से कर रहे हैं. यह जनभावना का सवाल है. पार्टियों को इस पर गम्भीरता से सोचना चाहिये.
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी का रुख यह है कि कानून-व्यवस्था और विकास की स्थिति को बेहतर बनाने के लिये छोटे राज्यों का गठन जरूरी है. अभी उत्तर प्रदेश की हालत देखिये. मैं पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर चीजों को देख रहा हूं. जर्जर कानून-व्यवस्था होने और विकास की अनदेखी के कारण स्कूल, सड़क और अस्पताल नहीं बन पा रहे हैं. सोनभद्र सबसे ज्यादा राजस्व देता है, मगर वहां के हालात देखिये. पूर्वांचल की हालत देख लीजिये. उत्तर प्रदेश चार राज्यों में बंट जाएगा तो अच्छा रहेगा.
वैसे, पहले भी उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन की मांगें होती रही हैं, मगर ज्यादातर दलों के लिये यह सियासी सहूलियत का मामला कभी नहीं रहा.
पूर्व केन्द्रीय मंत्री चैधरी अजित सिंह कई बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों को मिलाकर ‘हरित प्रदेश‘ बनाने की मांग कर चुके हैं. मगर यह कभी फलीभूत नहीं हुआ. बुंदेलखण्ड की मांग को लेकर वर्ष 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ी तत्कालीन ‘बुंदेलखण्ड कांग्रेस‘ को बुंदेलखण्ड समेत हर जगह मात खानी पड़ी. उसके अध्यक्ष रहे राजा बुंदेला अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं.
उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग तो कई बार उठ चुकी है, लेकिन इस पर कोई ठोस कदम बसपा अध्यक्ष मायावती की सरकार ने ही उठाया था. नवम्बर 2011 में तत्कालीन मायावती सरकार ने राज्य विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार राज्यों पूर्वांचल, बुंदेलखण्ड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र के पास भेजा था. हालांकि कुछ ही महीनों बाद प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था.
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में खासकर सपा ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का विधेयक तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा पारित कराये जाने का कड़ा विरोध करते हुए चुनाव प्रचार के दौरान इसे इस सूबे के वासियों की शिनाख्त मिटाने की कोशिश के तौर पर प्रचारित किया था. उस चुनाव में बीएसपी को पराजय का सामना करना पड़ा था.