पटनाः लोकसभा चुनाव में पोलिंग खत्म होने के साथ ही एग्जिट पोल के आंकड़ों ने बिहार में महागठबंधन को जोरदार झटका दिया है, जबकि एनडीए की बल्ले बल्ले के संकेत हैं. एग्जिट पोल के मुताबिक केंद्र में एक बार फिर मोदी की सरकार बनती दिखाई दे रही है. ऐसे में अलग-अलग राज्यों के नतीजे काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. एग्जिट पोल के मुताबिक बिहार में एक बार फिर एनडीए को बहुमत मिलता दिख रहा है. राज्य के 40 लोकसभा सीटों में एनडीए को 34 सीटें मिल सकती हैं, जबकि महागठबंधन महज़ 6 सीटों पर सिमट जाएगा.
एग्जिट पोल के मुताबिक बिहार में एनडीए जिस तरह का प्रदर्शन करते हुए दिखाई दे रहा है उसके कई कारण सामने आ रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो लालू यादव का जेल में होना और लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की अनुभवहीनता का फायदा एनडीए को मिला. इसके साथ ही कई दूसरे कारण भी हैं.
चुनावी मैदान में लालू यादव का न होना
बिहार ही नहीं देश की जनता के बीच में लालू यादव की अपनी एक अलग साख है. ठेठ देसी अंदाज में बातचीत, लोगों के बीच जाकर उन्हीं की जुबां में उनके दर्द के बारे में बताना और उसपर मरहम लगाने की कला उन्हें बाकी नेताओं से अलग पहचान दिलाती है. इस बार के लोकसभा चुनाव में उनका न होना आरजेडी के लिए बड़ी कमी बनकर सामने आई. विपक्ष के पास लालू जैसा कोई नेता नहीं था जो कि मोदी-नीतीश की जोड़ी को चुनौती दे सके.
सीटों के बंटवारे में गलती
राजनीतिक विशलेषक यह भी मानते हैं कि लालू यादव की अनुपस्थिति में सीटों के बंटवारे में भी गड़बड़ी देखने को मिली. इन गड़बड़ियों के कारण आरजेडी के कई कद्दावर नेता या तो बागी हो गए या पार्टी छोड़कर निर्दलीय नामांकन दाखिल कर दिया. बागी नेताओं ने न सिर्फ पार्टी छोड़ी बल्कि संबंधित क्षेत्र से महागठबंधन के उम्मीदवारों को नुकसान भी पहुंचाया.
भाई-भाई के बीच फूट
राज्य में महागठबंधन की हार के वजहों की अगर पड़ताल करें तो एक मुद्दा यह भी सामने आता है कि लालू के दोनों बेटों के बीच चुनाव के दौरान दूरियां दिखी. नालांदा और पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट को छोड़ दिया जाए तो दोनों भाईयों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेद साफ नजर आया.
दरअसल, तेज प्रताप यादव जहानाबाद और शिवहर सीट पर अपने पसंद के उम्मीदवार उतारना चाहते थे. वहीं सारण सीट को लेकर तेज प्रताप यादव चाहते थे कि उनके ससुर चंद्रिका राय को यहां से पार्टी अपना उम्मीदवार न बनाए. इन तीन सीटों पर तेज प्रताप यादव ने पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव प्रचार किया था.
मोदी-नीतीश की जोड़ी के सामने कौन
कई विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि बिहार में एनडीए को फायदा इसलिए भी मिल रहा है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार के सामने महागठबंधन का कोई नेता नहीं दिखा. तेजस्वी यादव कोशिश करते दिखे लेकिन बिहार की जनता पूरी तरह से उन्हें इस चुनाव में नेता नहीं माना.
मोदी-नीतीश की जोड़ी ने मारी बाजी
सर्वे के मुताबिक एनडीए गठबंधन को बिहार में प्रचंड बहुमत मिलता दिख रहा है. राजनीतिक विशेषज्ञ एनडीए की इस प्रचंड जीत में न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बल्कि नीतीश कुमार का भी अहम रोल मान रहे हैं. बिहार में नीतीश कुमार की तूती बोलती है और उनकी साफ सुथरी छवि जनता में भारी अपील रखती है.
नीतीश कुमार ने अपनी पहचान हर जाति धर्म के बीच बनाई है. यही कारण है कि सभी समाज में उनका अपना वोटर वर्ग है. इसी से नीतीश कुमार को मजबूती मिलती है. शराब बंदी और स्कूली छात्र-छात्राओं के बीच साइकिल योजना के कारण राज्य के महिला वोटरों में नीतीश कुमार ने अपनी अलग पहचान बनाई है.
नीतीश कुमार का वोट बैंक बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन हर सीट पर इतने वोटर जरूर हैं कि जीत और हार में अहम रोल अदा कर सकें. कुल मिलाकर अगर कहें तो नीतीश कुमार गरम मसाले की तरह हैं जो कि किसी भी सब्जी में डालें तो स्वाद आ जाए और न डालें तो स्वादहीन.
एग्जिट पोल में सच हुई रामविलास पासवान की भविष्यवाणी, अब नई सरकार में जताई है ये उम्मीद