लखनऊ: समाजवादी पार्टी में जारी वर्चस्व की जंग पर चुनाव आयोग का फैसला आ गया है. 'समाजवादी दंगल' में आखिरकार अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव को चित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं. इसके साथ ही समाजवादी पार्टी और चुनाव चिन्ह 'साइकिल' दोनों पर अखिलेश ने कब्जा कर लिया है. जानें वो 5 बातें जिससे अखिलेश ने 'समाजवादी दंगल' में मुलायम से जीती 'साइकिल की जंग'...




कैसे शुरु हुआ विवाद ?


1- यूपी के सबसे ताकतवर यादव कुनबे में 'समाजवादी दंगल' की शुरुआत नए साल के मौके पर यानी 1 जनवरी 2017 को हुई थी, जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करते हुए मुलायम सिंह यादव को एसपी का संरक्षक बनाया गया था. यह अधिवेशन पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने बुलाया था जिसे एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने असंवैधानिक करार दिया था. मुलायम ने इस अधिवेशन को लेकर चुनाव आयोग में शिकायत की थी और कहा था कि समाजवादी पार्टी के मुखिया वह खुद हैं. जिसके बाद पार्टी के नाम और सिंबल का झगड़ा आयोग में पहुंच गया.


मुलायम ने साइकिल पर पेश नहीं किया अपना 'दावा'


2- दुनिया तो ये जानती है कि चुनाव आयोग में साइकिल के निशान के लिए मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव लड़ रहे थे लेकिन अब चुनाव आयोग के फैसले में इस बात का खुलासा हुआ है कि पार्टी के चुनाव चिन्ह 'साइकिल' लिए मुलायम सिंह ने दावा ही पेश नहीं किया. जी हां! आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि चुनाव आयोग के मांगने पर भी मुलायम ने अपने समर्थन में कोई हलफनामा नहीं दिया.


आपको बता दें कि अखिलेश के समर्थन में 228 में से 205 विधायकों ने, 68 में से 56 विधान पार्षदों ने, 24 में से 15 सांसदों ने, 46 में से 28 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों ने, 5731 में से 4400 प्रतिनिधियों ने हलफनामा दिया, जिससे पार्टी पर अखिलेश का दबदबा चुनाव आयोग में साबित हुआ. लेकिन मुलायम ने खुद को छोड़कर किसी का हलफनामा आयोग के सामेन पेश नहीं किया.



अखिलेश के समर्थन पर मुलायम ने नहीं जताई आपत्ति


3- अखिलेश खेमे की तरफ से रामगोपाल यादव ने 4716 प्रतिनिधियों के समर्थन के दस्तावेज चुनाव आयोग के समक्ष पेश किए गए थे. जिसपर मुलायम ने कोई आपत्ति नहीं जताई. साथ ही अखिलेश खेमे के समर्थकों की संख्या पर भी मुलायम ने कोई सवाल नहीं उठाएं. इतना ही नहीं आयोग ने मुलायम सिंह यादव को 12 जनवरी को शाम 5 बजे तक अपने समर्थन में हलफनामे पेश करने का मौका भी दिया लेकिन मुलायम ने चुनाव आयोग के मांगने पर भी हलफनामा दिया ही नहीं.



मुलायम खेमे ने रिसिव नहीं किए अखिलेश के एफिडेविट्स


4- समाजवादी पार्टी के नाम और सिंबल की लड़ाई चुनाव आयोग में पहुंचने के बाद आयोग ने दोनों खेमों को अपने-अपने जवाब एक-दूसरे को भेजने का आदेश दिया. जिसके बाद अखिलेश खेमे की तरफ से रामगोपाल यादव ने अपने एफिडेविट मुलायम को भेजे लेकिन मुलायम खेमे की तरफ से ना तो अखिलेश के एफिडेविट रिसिव किए गए और ना ही अपने जवाब अखिलेश खेमे को भेजे गए.


अखिलेश के दावों को कमजोर साबित करना चाहते थे मुलायम


5- ऐसा नहीं है कि मुलायम सरेंडर के मूड में थे. दरअसल मुलायम अखिलेश कैंप की ओर से पेश हलफनामों में कमी निकालकर चुनाव आयोग के सामने अखिलेश के दावों को कमजोर साबित करना चाहते थें. इसी वजह से चुनाव आयोग के सामने उन्होंने ये भी कहा कि पार्टी में कोई विवाद नहीं है.


इस तरह अखिलेश खेमे की तरफ से अपने समर्थन में पेश किए गए दस्तावेजों के आधार पर चुनाव आयोग ने आज फैसला सुनाया और अखिलेश यादव ने पिता मुलायम को हराकर समाजवादी पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह साइकिल पर कब्जा कर लिया. मुलायम सिम्बल की लड़ाई हार गये हैं. अब अखिलेश का मतलब ही समाजवादी पार्टी है.