लखनऊ: बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अफ़जाल अंसारी के लिए अखिलेश यादव प्रचार नहीं करेंगे. लेकिन पार्टी की मुखिया मायावती ग़ाज़ीपुर में अगले महीने रैली करेंगी. बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी के भाई अफ़जाल के कारण ही अखिलेश और उनके चाचा शिवपाल यादव में झगड़ा बढ़ गया था.


अखिलेश यादव कुछ दिनों से धर्म संकट में थे. क्या करें, क्या न करें के भँवर में फँसे थे. लेकिन अखिलेश ने अब ग़ाज़ीपुर न जाने का फ़ैसला किया है. बीएसपी के अफ़जाल अंसारी यहाँ से बीजेपी के मनोज सिन्हा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं.


13 मई को मायावती ने यहाँ रैली आयोजित की है. वे चाहती थीं कि अखिलेश यादव भी उस दिन मंच पर रहें. लेकिन वे नहीं मानें. अब बहिन जी अपने उम्मीदवार के लिए अकेले ही प्रचार करेंगी. वैसे बीएसपी के नेताओं को उम्मीद है कि अखिलेश यादव मान जायेंगे.


आपको बता दें कि अखिलेश और उनके चाचा शिवपाल यादव में झगड़े के कारण अंसारी ब्रदर्स भी रहे हैं. अखिलेश के विरोध के कारण अंसारी बंधुओं की पार्टी क़ौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय नहीं हो पाया.


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ये बात है साल 2016 की. मुलायम सिंह से हरी झंडी मिलने के बाद शिवपाल यादव ने विलय करा दिया था. उन दिनों मुख़तार अंसारी और उनके भाई सिबगतुल्लाह अंसारी, दोनों विधायक थे. बीजेपी विधायक कृष्णानन्द राय की हत्या के आरोप में मुख़तार कई सालों से जेल में बंद हैं


उनके भाई अफ़जाल भी सांसद रह चुके हैं. यूपी के पूर्वांचल के क़रीब छह जिलों में अंसारी भाईयों का जलवा है. 2017 के विधानसभा चुनाव के लिए क़ौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कराया गया था. लेकिन अखिलेश इसके लिए राज़ी नहीं हुए. बाद में पार्टी को ये फ़ैसला बदलना पड़ा.


जिसके कुछ ही महीनों बाद मायावती ने अंसारी परिवार को बीएसपी में शामिल कर लिया. परिवार के तीन सदस्यों को टिकट भी दिया. लेकिन जीते सिर्फ़ मुख़तार अंसारी. इस बार के लोकसभा चुनाव में सिर्फ़ अफ़जाल अंसारी को टिकट दिया है.


राजनीति का काल चक्र भी अजीब है. अखिलेश यादव को अफ़जाल अंसारी का चेहरा तक पसंद नहीं है. लेकिन अब ग़ाज़ीपुर में लगे पोस्टरों में दोनों नेता साथ साथ दिख रहे हैं. इस बार एसपी ने बीएसपी के साथ गठबंधन किया है. तो फिर गठबंधन धर्म तो निभाना ही पड़ेगा.


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