नई दिल्ली: बीएसपी और समाजवादी पार्टी के बीच 37-37 लोकसभा सीटों पर बात बन गई है. यानि 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के गठबंधन में कांग्रेस के लिए कोई जगह नहीं होगी. अब सभी को कांग्रेस के रुख का इंतजार है. कांग्रेस अब तक चुप है वहीं समाजवादी पार्टी ने हमलावर रुख अपना लिया है. कल पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में बीएपसी के साथ मिल कर आगामी आम चुनाव में बीजेपी को हराने में सक्षम है और इसके लिए कांग्रेस जैसी 'गैर जरूरी' ताकत की जरूरत नहीं है.
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने कहा कि एसपी-बीएसपी गठबंधन रायबरेली और अमेठी निर्वाचन क्षेत्र को छोड़ सकता है. रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी सांसद हैं.
नंदा ने कहा, “उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अनावश्यक ताकत है इसलिए हम उसे शामिल करने या बाहर रखने के बारे में सोच ही नहीं रहे हैं.'' उन्होंने कहा, “राज्य में एसपी-बीएसपी गठबंधन मुख्य ताकत है तो बीजेपी का सामना करेंगे. कांग्रेस एक या दो सीट पर हो सकती है. यह फैसला लेना कांग्रेस पर है कि वह अपने आप को कहां देखना चाहती है.”
लोकसभा चुनावों से पहले सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला लेने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी (एसपी) नेता अखिलेश यादव के बीच बातचीत तेज होने संबंधी खबरों के बाद नंदा की यह टिप्पणी आई है. दोनों नेताओं ने शुक्रवार को नई दिल्ली में मुलाकात की थी.
नंदा के मुताबिक कांग्रेस अभी भी 'गठबंधन राजनीति' के मंत्र के हिसाब से नहीं ढल पाई है क्योंकि 'वह अपने सहयोगियों के लिए उन राज्यों में एक इंच भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं जहां वह मजबूत है लेकिन जहां वह कमजोर है वहां दूसरों से अपने लिए बड़ा हिस्सा छोड़ने की उम्मीद करती है.'
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखना क्या बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित होगा? इस सवाल पर उन्होंने कहा, “हमारे पूर्व के अनुभवों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जहां कांग्रेस ने सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे भी हैं, वहां हमें बीजेपी को हराने में कोई मुश्किल नहीं हुई. कांग्रेस का वोट शेयर पूरी तरह गैर जरूरी है.” विपक्षी गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में पूछे जाने पर नंदा ने कहा कि इस बारे में फैसला चुनाव के बाद आम सहमति से किया जाएगा.
कांग्रेस से दूरी की वजह
आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. तब यूपी को ये साथ पसंद है का नारा खूब गूंजा था. लेकिन इस गठबंधन को खास सफलता नहीं मिली थी. विधानसभा की कुल 403 सीटों में कांग्रेस मात्र सात और समाजवादी पार्टी 47 सीट जीतने में कामयाब रही थी. वहीं बहुजन समाज पार्टी मात्र 19 सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी ने 312 सीटों पर कब्जा जमाया था.
2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो मोदी लहर में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी पस्त दिखी. इस चुनाव में कांग्रेस दो, समाजवादी पार्टी पांच सीटें ही जीत सकी थी. वहीं बीएसपी खाता खोलने में भी नाकामयाब रही.
लगातार खराब प्रदर्शनों को देखते हुए अखिलेश ने कांग्रेस से दूरी बना ली और मायावती के साथ जाने का एलान किया. दोनों ने सहयोग ने फूलपुर, गोरखपुर और कैराना में हुए उपचुनाव में शानदार सफलता हासिल की. तीनों सीटों पर चुनाव से पहले बीजेपी का कब्जा था. अब दोनों पार्टियों को उम्मीद है कि वह लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को पटखनी देगी.
लोकसभा चुनाव: गठबंधन तो दूर SP को 'गैर जरूरी' लगने लगी है कांग्रेस, सिर्फ राहुल-सोनिया के लिए छोड़ेगी सीटें
एबीपी न्यूज़
Updated at:
07 Jan 2019 09:38 AM (IST)
2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. तब यूपी को ये साथ पसंद है का नारा खूब गूंजा था. लेकिन इस गठबंधन को खास सफलता नहीं मिली थी.
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