प्रयागराज: यूपी सरकार द्वारा सुधार के नाम पर तमाम पुलिस कांस्टेबल्स को जबरन रिटायर किये जाने का मामला अब कानूनी दांवपेंच में फंस गया है. जबरन रिटायर किये गए कई पुलिस वालों ने योगी सरकार के इस फैसले को मनमाना व तानाशाह करार देते हुए इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है.


अर्जी दाखिल करने वाले पुलिस कांस्टेबल्स की तरफ से अदालत में कहा गया है कि इस तरह का फैसला लेने में नियम - कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है और साथ ही हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के तमाम आदेशों की अवहेलना भी की जा रही है.


अर्जी में यह भी कहा गया है कि पुलिस कप्तान सर्विस रिकार्ड के बजाय निजी वजहों से मनमाने तरीके से जबरन रिटायर कर रहे हैं. पुलिस कर्मियों की इन अर्जियों को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए पुलिस के आला अफसरों व यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है.


इन सभी को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सिर्फ एक हफ्ते की मोहलत दी गई है. जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्र की बेंच सभी अर्जियों पर तीस जुलाई को एक साथ सुनवाई करेगी.


ये याचिकाएं वाराणसी मे तैनात रहे महेन्द्र कुमार पाण्डेय अलावा गोरखपुर, आगरा, गाजियाबाद, कानपुर में तैनात कान्सटेबलों ने दायर की है. सिपाहियों की तरफ से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का तर्क था कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश व्यक्तिगत नाराजगी के आधार पर मनमानी ढंग से जिला के पुलिस कप्तान द्वारा पारित किये जा रहे हैं.


कहा गया है कि इस प्रकार का आदेश पारित करने से पूर्व इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों को दरकिनार कर दिया गया है. यहां तक कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गयी गाइडलाइन का भी पालन नहीं किया गया है. इसके तहत एक स्क्रीनिंग कमेटी होगी जो सेवानिवृत्ति किए जाने वाले कर्मचारी का उसकी सेवा से सम्बंधित सारा ब्यौरा जुटाएगी. कर्मचारी का सर्विस रिकार्ड देखा जाएगा. उसकी प्रतिकूल प्रविष्टि आदि पर ध्यान दिया जाएगा तथा कर्मचारी को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर मिलेगा. मगर इसके विपरीत पुलिस विभाग में बिना किसी जांच के मनमाने तरीके से सिपाहियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश दिया जा रहा है, जो गलत होने के साथ साथ गैरकानूनी है.


याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता विजय गौतम ने ऐसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति आदेश को रद्द करने की हाईकोर्ट से मांग की है तथा कहा है कि सिपाहियों को साठ वर्ष की आयु तक उन्हें सेवा मे बने रहने दिया जाए. याचिका के समर्थन मे सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्णयों को आधार बनाया गया है तथा कहा गया है कि सारी कार्रवाई एकतरफा की जा रही है.