इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं दी अज़ान के लिए मस्जिद में लाउडस्पीकर बजाने की इजाज़त, SDM के आदेश को सही ठहराया
मस्जिद से जुड़े मसरूर अहमद ने एसडीएम की ओर से परमीशन नहीं दिए जाने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस वीसी दीक्षित की डिवीजन बेंच ने कहा है कि यह मामला दखल देने लायक नहीं है.
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर बजाए जाने से इलाके का सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है तो यह प्रशासन की ड्यूटी बनती है कि वह वहां पर साउंड सिस्टम का इस्तेमाल होने से रोके. हाई कोर्ट ने कहा कि साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रखना सरकारी अमले की ज़िम्मेदारी है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि भारत में हर किसी को अपने मज़हब के हिसाब से धार्मिक भावनाएं प्रकट करने का अधिकार हासिल है.
हाईकोर्ट ने कहा कि इस अधिकार के ज़रिये किसी के निजी जीवन में छेड़खानी करने या उसे परेशान करने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती है. अदालत ने इसी आधार पर जौनपुर की एक मस्जिद में अज़ान के लिए लाउडस्पीकर बजाए जाने की परमीशन दिए जाने के मामले में दखल देने से इंकार कर दिया और अर्जी को खारिज कर दिया.
मस्जिद ने दी थी चुनौती
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जौनपुर जिले के बद्दोपुर गांव में एसडीएम ने इस आधार पर अज़ान के लिए लाउडस्पीकर बजाए जाने की अनुमति नहीं दी. क्योंकि, गांव में सिर्फ दो फीसदी मुस्लिम ही रहते हैं. लाउडस्पीकर बजने से सामाजिक संतुलन और साम्प्रादायिक सौहार्द बिगड़ सकता है.
मस्जिद से जुड़े मसरूर अहमद ने एसडीएम की ओर से परमीशन नहीं दिए जाने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस वीसी दीक्षित की डिवीजन बेंच ने कहा है कि यह मामला दखल देने लायक नहीं है.
अगर एसडीएम ने किसी अप्रिय घटना को बचाने के लिए आदेश देने से मना कर दिया है तो ऐसा करना उनका अधिकार है. हाई कोर्ट ने कहा कि साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रखना उनकी ज़िम्मेदारी है.
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