इलाहाबाद हाईकोर्ट में नहीं हैं इलाज के बेहतर इंतजाम, अदालत ने मांगा यूपी सरकार से जवाब
पीआईएल दाखिल करने वाली वकील ममता सिंह की दलील है कि अगर कैम्पस में इलाज के उचित इंतजाम होते तो इन वकीलों का प्राथमिक उपचार किया जा सकता था. इसके अलावा अक्सर बीमार होने वाले वकीलों-कर्मचारियों व वादकारियों के लिए आधुनिक सुविधाओं वाला बीस बेड का हॉस्पिटल ज़रूरी है.
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिछले दिनों मुकदमों की सुनवाई के दौरान तीन वकीलों की मौत के मामलों को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कैम्पस में स्थित सरकारी अस्पताल की दुर्दशा और वहां संसाधनों की कमी पर नाराज़गी जताते हुए यूपी सरकार से जवाब तलब किया है. अदालत ने यूपी सरकार से इस बात पर भी जवाब दाखिल करने को कहा है कि क्यों न हाईकोर्ट कैम्पस में बीस बेड का आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल खोल दिया जाए, जिसमे डॉक्टर्स व ट्रेंड स्टाफ की कमी न हो.
हाईकोर्ट की वकील ममता सिंह की पीआईएल पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का वक्त दिया है. अदालत इस मामले में ग्यारह दिसम्बर को फिर से सुनवाई करेगी. अदालत ने इस मामले में चीफ मेडिकल सुप्रीटेंडेंट यानी सीएमएस को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है.
गौरतलब है कि एशिया की सबसे बड़ी अदालत का गौरव रखने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट में रोज़ाना हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं. अनुमान के मुताबिक़ यहां रोज़ाना सौ के करीब जजेज, तकरीबन अठारह हज़ार वकील, दो हज़ार से ज़्यादा स्टाफ, छह हज़ार मुंशी और सात सौ के करीब सुरक्षाकर्मी आते हैं. इनके अलावा तकरीबन तीन हज़ार वादकारी भी हाईकोर्ट आते हैं.
कैम्पस में एक सरकारी अस्पताल भी है, लेकिन उसमे संसाधनों की कमी है. पर्याप्त संख्या में डाक्टर व स्टाफ भी नहीं है. एम्बुलेंस में इलाज की कोई सुविधा नहीं है. सात नवम्बर को अदालत में सुनवाई के दौरान अमूल्य रत्न नाम के वकील की हार्ट अटैक से मौत हो गई. उससे पहले भी दो वकीलों की मौत हो चुकी है.
जस्टिस बीके नारायण और जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए यूपी सरकार से जवाब तलब किया है और साथ ही हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से भी जवाब मांगा है. ममता सिंह की तरफ से अदालत में यह दलील भी दी गई कि बेहतर इलाज का अधिकार मौलिक अधिकार है. दिल्ली हाईकोर्ट में सात मंजिला अस्पताल है. तमाम दूसरी अदालतों में भी इलाज के पुख्ता इंतजाम हैं, लेकिन सबसे बड़ी अदालत होने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट का हॉस्पिटल महज़ शोपीस बना हुआ है.
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