प्रयागराज: एससी एसटी एक्ट को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि इस एक्ट के तहत किसी के खिलाफ तभी केस दर्ज किया जा सकता है, जब घटना कुछ लोगों के सामने हुई हो. इसके साथ ही इस मामले में लोगों को गवाही देनी होगी और शिकायतकर्ता को इस बात को साबित करना होगा कि लोगों के सामने उसे जातिसूचक शब्दों के ज़रिये अपमानित किया गया है. हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार बंद कमरे में या सिर्फ दो लोगों के बीच हुई घटना में एससी एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकेगी. साथ ही ऐसे मामलों में न तो एफआईआर दर्ज होगी, न ही ट्रायल कोर्ट को मुकदमा चलेगा और न ही समन जारी किया जाएगा.
अदालत ने इसी आधार पर सोनभद्र जिले के खनन विभाग के अफसर पर एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज केस को रद्द करते हुए उन्हें बड़ी राहत दी है. हालांकि अदालत ने खनन विभाग के अफसर पर एफआईआर से सिर्फ एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज धारा को ही हटाया है. अधिकारी के खिलाफ मारपीट, गाली-गलौच और धमकी देने की आईपीसी की धाराओं के तहत केस चलता रहेगा. जस्टिस आरके गौतम की बेंच ने यह आदेश सोनभद्र के खनन विभाग के अधिकारी केपी ठाकुर की अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है. अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट भी पहले ही यह साफ़ कर चुका है पब्लिक व्यू में नहीं होने वाली घटना में एससी एसटी एक्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
बता दें कि मामले में सोनभद्र के खनन विभाग के अधिकारी केपी ठाकुर अपने अधीनस्थ विनोद कुमार तनया के खिलाफ चल रही विभागीय जांच कर रहे थे. बयान के लिए बुलाए जाने पर विनोद तनया साथी कर्मचारी एमपी तिवारी के साथ केपी ठाकुर के चैंबर में गए. ठाकुर ने एमपी तिवारी को बाहर कर कमरा अंदर से बंद कर लिया था. कमरे में सिर्फ ठाकुर और तनया ही थे. बाद में विनोद कुमार तनया ने अदालत के ज़रिये केपी ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. विनोद कुमार तनया ने आरोप लगाया कि बयान के लिए कमरे में बुलाकर अधिकारी ने उनके साथ मारपीट व गाली गलौच किया और जान से मारने की धमकी दी. इतना ही नहीं जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल कर उसे अपमानित भी किया. विनोद कुमार तनया दलित समुदाय से आते हैं.
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