इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सुविधाएं देने की यूपी सरकार की अधिसूचना की वैधता के खिलाफ दाखिल याचिका पर राज्य सरकार से आठ हफ्ते में जवाब मांगा है. सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह साफ़ कर दिया है कि अधिसूचना के तहत यदि जाति प्रमाणपत्र जारी किये गये हैं तो वे सभी प्रमाणपत्र याचिका की निर्णय के अधीन होंगे.


अगली सुनवाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने की छूट


कोर्ट ने अन्तर्हस्तक्षेपी अर्जी दाखिल करने वालों को भी अगली सुनवाई की तिथि तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने की छूट दी है. साथ ही याची से भी कहा है कि वह जिन लोगों को अधिसूचना के तहत जाति प्रमाण पत्र जारी हुआ है उन्हें भी याचिका में पक्षकार बनायें. दरअसल यह अधिसूचना पूर्व की अखिलेश सरकार द्वारा जारी की गई थी, इसलिए अदालत नई सरकार से इस बारे में उसकी राय जानना चाहती है.


अधिसूचना को अवैध मानते हुए निरस्त किये जाने की मांग


यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने डॉ बीआर आम्बेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण की जनहित याचिका पर दिया है. याचिका पर अधिवक्ता का कहना है कि जातियों को अनुसूचित जाति घोषित करने का अधिकार केन्द्र सरकार को है. राज्य सरकार ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अधिसूचना जारी की है. 21, 22 और 31 दिसम्बर 16 की अधिसूचना को अवैध मानते हुए निरस्त किये जाने की मांग की गयी है.


कोर्ट ने अधिसूचना के अमल पर पहले ही लगायी थी रोक


राज्य सरकार की तरफ से कहा गया है कि जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया गया है. केवल अनुसूचित जाति की सुविधाएं देने की अधिसूचना जारी की है. इनमें से अधिकांश जातियां अनुसूचित जाति की उपजातियां है. कोर्ट ने अधिसूचना के अमल पर पूर्व में रोक लगायी थी, परन्तु लगी इस रोक को आगे नहीं बढ़ाया है. कोर्ट ने कहा है कि जिन्हें भी जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया है उन्हें पक्षकार बनाया जाए और यह प्रमाणपत्र याचिका के अन्तिम निर्णय पर निर्भर करेगा.