इलाहाबाद : हिन्दी की नामचीन कवियित्री महादेवी वर्मा की मंगलवार को इक्तीसवीं पुण्यतिथि थी. पुण्यतिथि के मौके पर महीयसी को श्रद्धांजलि देने के लिए देश भर में तमाम आयोजन हुए, लेकिन महादेवी की कर्मभूमि इलाहाबाद में नगर निगम ने इस मौके पर उनके नाम से पचपन हजार रूपये बकाये का हाउस टैक्स का बिल जारी किया है. इस बिल पर साफ़ तौर पर लिखा हुआ है कि अगर महादेवी वर्मा ने पंद्रह दिनों के अंदर पचपन हजार रूपये का भुगतान नहीं किया तो उसके बाद वसूली नोटिस और मकान के कुर्की की कार्रवाई की जाएगी.


इलाहाबाद की मेयर माफ कर चुकी हैं हाउस टैक्स


नगर निगम के अफसरों ने यह कारनामा तब किया है, जब इसी साल फरवरी महीने में कुर्की का नोटिस जारी होने के बाद इलाहाबाद की मेयर उनके घर का हाउस टैक्स माफ़ करने का एलान कर चुकी है. महादेवी के दुनिया छोड़ने के इकतीस साल बाद भी पुण्य तिथि के मौके पर उनके नाम से बिल और चेतावनी भेजे जाने से उनके परिवार वालों और साहित्य से जुड़े लोगों में खासी नाराज़गी है. इस पूरे मामले में नगर निगम के अफसर अब बैकफुट पर हैं और वह गलतबयानी कर अपनी कारगुजारियों पर पर्दा डालने की कोशिश में जुटे हैं.


विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के शहर इलाहाबाद से यूं तो देश के तमाम नामचीन साहित्यकारों का नाता रहा है, लेकिन इस शहर को ख़ास पहचान महाकवि निराला के साथ ही हरिवंश राय बच्चन और महीयसी महादेवी वर्मा के नाम से मिलती है. महादेवी वर्मा का जन्म वैसे तो यूपी के फर्रुखाबाद में हुआ, लेकिन उनका पूरा जीवन इलाहाबाद में बीता. यहीं उनकी पढ़ाई हुई. यहीं उन्होंने अध्यापन का काम किया और इसी शहर में दीपशिखा समेत अपनी ज़्यादातर रचनाओं को कागजों पर उकेरा. 11 सितम्बर साल 1987 को इलाहाबाद के ही अशोक नगर मोहल्ले के के अपने मकान में उन्होंने आख़िरी सांस ली थी. उनका अंतिम संस्कार भी इसी शहर में गंगा के घाट पर हुआ तो अस्थियों का विसर्जन गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम की धारा में किया गया.


इलाहाबाद को महादेवी की कर्मभूमि की वजह से भी जानते हैं


देश दुनिया में बहुतेरे लोग इलाहाबाद को आज महादेवी की कर्मभूमि की वजह से भी जानते हैं. यह अलग बात है कि जिस इलाहाबाद को महादेवी वर्मा ने एक अलग पहचान दिलाई, उस शहर ने सांसे थमने के बाद आधुनिक युग की साहित्यिक मीरा को वक्त के साथ भुला दिया. इलाहाबाद के नगर निगम में न तो शहर में किसी जगह महादेवी वर्मा की मूर्ति लगवाई, न किसी सड़क या चौराहे का नामकरण किया और न ही उनके नाम पर कभी कोई आयोजन किये. यहां तब तो तब भी गनीमत रही, लेकिन नगर निगम ने देश की इस महान कवियित्री की मौत के इकतीस साल बाद उनकी पुण्यतिथि के दिन फिर से जो कारनामा किया है, उसने न सिर्फ साहित्य से जुड़े लोगों को गुस्से में भर दिया है, बल्कि महादेवी के परिवार वालों की आंख में आंसू भी भर दिए हैं.



महादेवी का जीवन और उनकी रचनाएं यूपी बोर्ड समेत तमाम पाठ्यक्रमों में शामिल हैं
दरअसल महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद के पाश इलाके अशोक नगर की नेवादा बस्ती के जिस बंगलेनुमा मकान में अपना पूरा जीवन बिताया, जहां आख़िरी सांस ली, वह उनके अपने ही नाम पर था. अपने जीवनकाल में ही उन्होंने इसे एक ट्रस्ट को दान भी कर दिया था. महादेवी का जीवन और उनकी रचनाएं अरसे से यूपी बोर्ड समेत तमाम पाठ्यक्रमों में भी हैं. साहित्य में थोड़ी भी दिलचस्पी रखने वाले किसी भी शख्स को यह बखूबी पता है कि महादेवी अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन शायद महादेवी की कर्मभूमि इलाहाबाद के नगर निगम के अफसरों को यह जानकारी नहीं या फिर वह इससे जानबूझकर अंजान बने हुए हैं. तभी तो नगर निगम के टैक्स डिपार्टमेंट ने उस महादेवी वर्मा के नाम से एक और बिल व चेतावनी भेजी है, जो इकतीस साल पहले ही दुनिया छोड़ चुकी हैं.


महादेवी ने नाम जारी हुआ है 55 हजार रुपए बकाये का बिल


इस बिल पर नीचे लिखा हुआ है कि अगर पंद्रह दिनों में पूरे बिल का भुगतान नहीं किया गया तो महादेवी वर्मा के खिलाफ वसूली नोटिस जारी किये, कुर्की की प्रक्रिया शुरू किये जाने या फिर वारंट जारी किये जाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. इस बार जो बिल भेजा गया है बिल पर जो डिटेल्स दिया गया है, उसके मुताबिक़ साल 2018-19 का हाउस टैक्स 3234 रूपये हैं. महादेवी के मकान के नाम पर 31405 रूपये बकाया और इस बकाये पर 20413 रूपये का ब्याज लगाया गया है. इस तरह महादेवी वर्मा के नाम पर कुल पचपन हजार तिरपन रूपये का बिल जारी किया गया है.


ऐसा नहीं है कि नगर निगम के अफसरान को महादेवी वर्मा के इस दुनिया में न होने की जानकारी नहीं है. निगम इससे पहले इसी साल फरवरी महीने में महादेवी वर्मा के नाम पर रेड नोटिस कर चुका है. इस नोटिस में लिखा गया था कि अगर पंद्रह दिनों में बकाये व ब्याज का भुगतान नहीं किया गया तो मकान के कुर्की की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी. महादेवी के नाम से कुर्की का नोटिस जारी होने के बाद काफी कोहराम मचा था. हैरान करने वाली बात यह है कि महादेवी ने अपने जीवन में ही यह बंगला एक साहित्यिक ट्रस्ट को दान कर दिया था.


नगर नियम के क़ानून के मुताबिक़ गैर व्यावसायिक ट्रस्ट के दफ्तर पर हाउस टैक्स लगता ही नहीं है. ट्रस्ट के प्रमुख लोगों में महादेवी के दत्तक पुत्र रामजी पांडेय के परिवार के लोग ही हैं, जो इसी बंगले में रहते हैं. इन लोगों का दावा है कि तकरीबन बीस साल पहले ही इन्होने महादेवी के डेथ सर्टिफिकेट के साथ ट्रस्ट की डीड नगर निगम दफ्तर में दाखिल कर उसका मालिकाना हक बदलने की अर्जी दी थी, लेकिन कई बार भाग दौड़ के बाद भी यह मकान आज भी नगर निगम के रिकार्ड में महादेवी वर्मा के नाम पर ही दर्ज है.फरवरी में महादेवी के नाम कुर्की का नोटिस जारी होने के बाद काफी हंगामा मचा था. इस पर नगर निगम की मुखिया और इलाहाबाद की मेयर अभिलाषा गुप्ता ने नोटिस वापस लेने और पूरा बकाया हाउस टैक्स माफ़ किये जाने का वायदा किया था, लेकिन बिल माफ़ करना तो दूर की बात रही, निगम ने फिर से एक नया बिल भेज दिया है.


साहित्यकारों ने कहा- महादेवी जैसी शख्सियत के नाम से बिल और कुर्की का नोटिस भेजना बेहद शर्मनाक


महादेवी के परिवार वालों और साहित्य से जुड़े लोगों के साथ ही शहर के बुद्दिजीवियों और जनप्रतिनिधियों ने इसे महान साहित्यकार का अपमान बताते हुए नगर निगम के अफसरों व यूपी की योगी सरकार से माफी मांगने को कहा है. उनका कहना है कि मौत के इकतीस साल बाद महादेवी जैसी शख्सियत के नाम से बिल और कुर्की का नोटिस भेजना बेहद शर्मनाक है. दूसरी तरफ इस मामले के सुर्ख़ियों में आने के बाद नगर निगम के अफसरों को अब जवाब देते नहीं बन रहा है. अफसरों का कहना है कि परिवार वालों द्वारा कोई अर्जी नहीं दिए जाने से उनके रिकार्ड में मकान मालिक के तौर पर अब भी महादेवी वर्मा का ही नाम चढ़ा हुआ है. महादेवी वर्मा के बारे में उन्हें जानकारी है, लेकिन दस्तावेजों में अभी तक फेरबदल न हो पाने की वजह से यह बिल और इससे पहले का नोटिस जारी किया गया था.


नगर निगम के टैक्स सुप्रीटेंडेंट पीके मिश्र का कहना है कि महादेवी के परिवार ने फरवरी के एपिसोड के बाद भी मकान के ट्रांसफर के लिए कोई आवेदन नहीं किया है, जबकि महादेवी के परिवार वालों ने इसे न सिर्फ झुठलाया है बल्कि नगर निगम द्वारा द्वारा रिसीव किये गए प्रार्थना पत्र की कॉपी भी दिखाई है. इससे साफ़ है कि यह मामला सीधे तौर पर नगर निगम की लापरवाही का नतीजा है.