प्रयागराज: इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के राजनीति विभाग के प्रोफेसर मोहम्मद शाहिद जेल से रिहा हो गए हैं. घर पहुंचने पर छात्रों ने प्रोफेसर का स्वागत किया. वहीं, प्रोफेसर ने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि मैंने तब्लीगी जमात में शामिल होने की कोई भी जानकारी नहीं छिपाई.
प्रोफेसर ने खुद पर लगे आरोपों को बताया गलत
बता दें कि यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष से अनुमति लेकर प्रोफेसर सात मार्च को दिल्ली गए थे. 10 मार्च को वो ट्रेन से वापस प्रयागराज लौट आए. उनके ऊपर इंडोनेशियाई जमातियों को मस्जिद में ठहराने के आरोप लगे हैं. हालांकि, वो अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बता रहे हैं. उनका कहना है कि इंडोनेशिया के जमातियों से उसकी कोई भी पुरानी जान-पहचान नहीं थी. उनका कहना है कि उन्होंने कहीं से मोबाइल नंबर हासिल कर मुस्लिम मुसाफिर खाने का सिर्फ पता पूछा था.
मौलाना साद से फोन पर बातचीत नहीं हुई: प्रोफेसर
प्रोफेसर ने अपने ऊपर लगे दोनों ही आरोपों को सिरे से खारिज किया है. उन्होंने मौलाना साद और असदुद्दीन ओवैसी से फोन पर बातचीत होने से भी इनकार किया है. उन्होंने बताया कि दिल्ली जमात में शामिल होने के दौरान मौलाना साद से कई बार मुलाकात हुई है.
मौलाना साद की गिरफ्तारी न होने पर कहा
वहीं, मौलाना साद की गिरफ्तारी न होने के सवाल पर प्रोफेसर ने कहा कि इस मामले में जांच एजेंसियां ही जानकारी दे सकती हैं. उन्होंने कहा कि मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. उन्होंने कहा कि मैंने कोई गलती नहीं की है, इसलिए मुझे न्याय जरूर मिलेगा.
इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि इस दौरान उन्हें कई तरह के अनुभव हुए हैं. उन्होंने कहा कि मुझे तमाम छात्रों और प्रोफेसरों का भी समर्थन मिला है. हालांकि, इस दौरान केंद्र और राज्य सरकार को लेकर प्रोफेसर ने सीधे तौर पर कोई बात नहीं कही.
प्रोफेसर पर आरोप
दरअसल, प्रोफेसर शाहिद पर 10 मार्च तक निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात में शामिल होने की बात छिपाई. उनपर जमात में शामिल होने वाले विदेशियों को पनाह दिलाने और उनकी मदद करने का आरोप है. इसके अलावा उनपर आरोप है कि जमात में शामिल होने की जानकारी छिपाकर वो 17 मार्च को यूनिवर्सिटी की वार्षिक परीक्षा में भी शामिल हुए.
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