वाराणसी: आईआईटी-आईआईएम में पढ़ते समय मल्टीनेशनल कम्पनियों में अच्छी जॉब पाना लगभग हर युवा का सपना होता है. लेकिन कुछ ऐसे भी युवा हैं जो इन कंपनियों जॉब करने के बाद भी उन्हें छोड़ समाज में बदलाव लाने की मुहिम से जुड़ जाते हैं. इन्हीं में से एक हैं यूपी कैडर के युवा आईपीएस आशीष तिवारी जो लंदन और जापान में काम करने के बाद इंडिया वापस आए. वापस आकर न केवल उन्होंने इंडियन पुलिस सर्विसेज ज्वाइन की बल्कि अब पॉजिटिव और स्मार्ट पुलिसिंग के जरिए समाज में बदलाव लाने में जुटे हैं. इसी का नतीजा है कि हाल ही में दिल्ली में आशीष तिवारी को फिक्की ने स्मार्ट पुलिस ऑफिसर्स अवार्ड से नवाजा. आशीष इस समय मिर्जापुर में पोस्टेड हैं, इससे पहले वे वाराणसी में बतौर एसपी रूरल तैनात थे. इसी दौरान उन्होंने काशी के युवाओं के एक ग्रुप की प्रतिभा को पहचाना और उनको सपोर्ट किया. अब वे इसी ग्रुप के जरिए मिर्जापुर के नक्सल प्रभावित गांवों में बदलाव ला रहे हैं.
आशीष तिवारी ने 2002 में आईआईटी कानपुर से बीटेक कम्प्यूटर साइंस में एडमिशन लिया और फिर एमटेक की भी पढाई पूरी की. इस दौरान उनका सेलेक्शन कैंपस इंटरव्यू के जरिए लंदन की बैंकिंग सेक्टर की कंपनी लेहमन ब्रदर्स के लिए हो गया. वहां लगभग डेढ़ साल काम करने के बाद वे जापान के नोमुरा बैंक के लिए चुन लिए गए. यहां भी डेढ़ साल काम करने के बाद उन्हें लगा कि वे अपनी जॉब से वह नहीं कर पा रहे, जिसका सपना उन्होंने देखा था. नतीजा यह हुआ कि वे सालाना करोड़ों के पैकेज वाली नौकरी छोड़ इंडिया वापस आ गए. वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे. साल 2011 में उनका सेलेक्शन इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज के लिए हुआ. इसके अगले साल 2012 में वे एक बार फिर सिविल सर्विसेज के एग्जाम में अपीयर हुए और इस बार 219वीं रैंक हासिल हुई और वे इंडियन पुलिस सर्विसेज के लिए चुन लिए गए. साल 2013 में भी वे आईपीएस के लिए ही चुने गए और उन्हें 247वीं रैंक मिली थी.
मिर्जापुर के एसपी बनने से पहले आशीष तिवारी वाराणसी के एसपी रूरल थे. इस दौरान उन्होंने रूरल पुलिसिंग का चेहरा बदल दिया था. उनकी पहल पर पहली बार रूरल इलाके के थानों में मुंशी बॉडीकैम लगाकर बैठते थे. इससे थाने में आने वाले फरियादियों की शिकायतें दर्ज होने लगीं. साथ ही थानों में उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घटनाओं में भी काफी कमी आई. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी के स्टूडेंट्स की बनाई हुई संस्था होप फाउंडेशन का काम देखा. इस संस्था को दिव्यांशु उपाध्याय और उनके साथी रवि मिश्रा ने मिलकर बनाया था. इस संस्था से बीएचयू, काशी विद्यापीठ और दिल्ली की जेएनयू के कई स्टूडेंट्स जुड़ चुके थे. इन स्टूडेंट्स ने गांवों में जाकर महिलाओं को प्रेरित कर ग्रीन ब्रिगेड का गठन किया. ग्रीन ब्रिगेड की महिलाएं अपने इलाके में नशा मुक्ति और डोमेस्टिक वायलेंस रोकने का काम करने लगीं. स्टूडेंट्स की संस्था होने के चलते, फाइनेंसियली काफी दिक्कतें आती थीं. स्टूडेंट्स अपनी पॉकेट मनी के पैसे बचाकर यह काम कर रहे थे. इस दौरान स्टूडेंट्स ने एसपी रूरल आशीष तिवारी से सम्पर्क किया. आशीष तिवारी ने इन स्टूडेंट्स के काम से प्रभावित होकर उनकी काफी मदद की.
इस बीच आशीष तिवारी का ट्रांसफर बतौर एसपी मिर्जापुर हो गया. उन्होंने वहां पहुंचकर नक्सल प्रभावित गांवों का मुआयाना किया और पाया कि वहां के लोगों को जागरूक करने की बहुत जरूरत है. आशीष तिवारी ने होप वेलफेयर ट्रस्ट के युवाओं को मिर्जापुर बुलाया और नक्सल प्रभावित गांवों में काम करने के लिए कहा. होप टीम के दिव्यांशु बताते हैं कि नक्सली इलाके का नाम सुनकर कई टीम मेंबर्स को डर भी लगा, लेकिन एसपी आशीष तिवारी ने उनका उत्साहवर्धन किया और पूरा सहयोग करने का भरोसा दिया. इसके बाद होप टीम ने धनसीरिया गांव में ग्रीन ब्रिगेड का गठन किया. आशीष तिवारी ने धनसिरिया गांव ग्रीन ग्रुप की महिलाओं को गांवों में फैली कुरीतियों को मिटाने के लिए निगरानी करने की शपथ दिलाई. उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर गांवों में काम करते समय कोई महिलाओं से बदसलूकी करता है तो वे तुरंत उन्हें बताएं, ऐसे लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करेगी.
एसपी आशीष तिवारी की प्रेरणा का ही नतीजा था कि होप टीम ने राजगढ़ क्षेत्र के नक्सल प्रभावित दस गांवों सेमरी सरसो, पुरैनिया, रामपुर 38, भीटी भवानीपुर, नदिहार, राजगढ़, दरवान, धनसिरिया, कूड़ी, ददरा आदि से 15-15 महिलाओं को चुनकर ग्रीन ब्रिगेड तैयार की. इस टीम का मुख्य उद्देश्य है राजगढ़ क्षेत्र में बढ़ रहे बाल यौन शोषण, अवैध शराब खाना, जुआ के अड्डों और महिलाओं पर हो रहे घरेलू हिंसा को रोकना है. आशीष तिवारी ने इन गांवों को बेहतर बनाने के लिए ही यहां की महिलाओं सशक्तिकरण की मुहिम चलाई. इसी सोच के साथ उन्होंने बनारस की तरह ही यहां भी 'ग्रीन ब्रिगेड' की की टीम तैयार करवाई. उन्होंने ग्रीन ब्रिगेड में ऐसी महिलाएं को भी जोड़ा है जिनके पति कभी नक्सलवादी थे और एनकाउंटर में मारे गए थे. अब ग्रीन ब्रिगेड की हरी साड़ी पहने महिला अगर अपने इलाके में अवैध रूप से शराब बनते या बिकते देखती है तो वह सीटी बजाकर अपनी साथियों को अलर्ट करती है. इसके बाद ग्रीन ब्रिगेड की मेंबर्स वहां पहुंचकर गलत काम करने वाले लोगों को रोकती हैं और उन्हें जागरूक भी करती हैं. अगर वे उनकी बात नहीं मानते तब वे स्थानीय पुलिस की सहायता लेती हैं.
ख़ास बात यह है कि इन महिलाओं को पुलिस मित्र का आईडी कार्ड दिया गया है. इसके अलावा ग्रीन ब्रिगेड से जुड़ी महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग भी दी गई है. उन्हें स्वालंबी बनाने के लिए रोजगार परक काम जैसे सिलाई-कढ़ाई की भी ट्रेनिंग दी जा रही है. इन महिलाओं को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देने के लिए बीएचयू के ट्रेन्ड मार्शल आर्ट्स एक्सपर्ट आते हैं. आशीष तिवारी और ग्रीन ब्रिगेड की कोशिशों के चलते इलाके की महिलाओं में काफी तेजी से जागरुकता बढ़ी है. जिस उद्देश्य से आशीष तिवारी ने बनारस के युवाओं को मिर्जापुर आकर काम करने को कहा था, वह अब पूरा होता दिख रहा है. यह महिलाएं न केवल अपने इलाके में क्राइम कंट्रोल कर रही हैं, बल्कि सामजिक बुराइयों के प्रति लोगों को जागरूक भी कर रही हैं.
हाल ही में ग्रीन ब्रिगेड और होप टीम की कोशिशों का नतीजा यह निकला कि प्राइमरी हेल्थ सेंटर से गायब रहने वाले डॉक्टर अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद नजर आने लगे हैं. साथ ही अब मिर्जापुर के आलाधिकारी लगातार सरप्राइज इंस्पेक्शन कर स्कूलों और हेल्थ सेंटर्स पर सुविधाएं सुधारने के निर्देश भी दे रहे हैं. जिन हेल्थ सेंटर्स पर डॉक्टर्स और फार्मासिस्ट दवाइयां न होने का बाहाना बनाते थे, वे भी अब ग्रामीणों को बुलाकर उनकी जरुररत की दवाएं मुफ्त उपलब्ध कराने लगे हैं. मिनिस्ट्री ऑफ वुमंस वेलफेयर एंड चाइल्ड डेवलपमेंट के सेक्रेटरी चेतन संघाई ने भी होप टीम और ग्रीन ब्रिगेड के कामों के बारे में रिपोर्ट मंगाई और इन युवाओं से मिलने के लिए अप्वाइंटमेंट दिया है. होप टीम के दिव्यांशु और रवि ने बताया कि उनकी टीम जल्द ही सेक्रेटरी से मिलकर इस इलाके की रिपोर्ट उनके सामने पेश करेगी. होप टीम के मेंबर्स मिर्जापुर के गाँवों में आ रहे बदलाव का क्रेडिट आशीष तिवारी को देते हुए कहते हैं कि उनके गाइडेंस के चलते ही इतना बड़ा काम संभव हो सका.