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विधानसभा चुनाव: 'पंजे' के साथ के बावजूद इस वजह से यूपी की सियासत में नहीं चल पाई साइकिल!

लखनऊ: यूपी का चुनावी दंगल खत्म हो चुका है. सियासत के इस अखाड़े में ना केवल 14 साल बाद बीजेपी का वनवास खत्म हो गया है बल्कि मोदी लहर में विपक्ष का भी सूपड़ा साफ गया है. यूपी चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 403 में से 325 सीटों पर जीत का परचम लहराया है और एसपी-कांग्रेस गठबंधन के साथ बीएसपी को भी 75 सीटों के अंदर समेट दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद यूपी की सियासत में क्यों फ्लॉप हो गई समाजवादी पार्टी की साइकिल ?

पारिवारिक कलह के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपने नेतृत्व में यूपी में एक बार फिर सरकार बनाने का ताना बाना बुना लेकिन अमित शाह की रणनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुंआधार प्रचार की बदौलत बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल किया और एसपी-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटों पर समेट दिया. आज हम आपको बता रहें हैं वो पांच वजहें जिसके चलते पंजे के साथ के बावजूद यूपी की सियासत में नहीं चल पाई साइकिल...

चुनाव से ठीक पहले पारिवारिक कलह

यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की हार के पीछे सबसे बड़ी वजह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुलायम कुनबे में मची कलह मानी जा रही है. इससे उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी ना केवल दो खेमे में बंट गई बल्कि बंटवारे की वजह से पार्टी में अंदरुनी कलह भी शुरु हो गई. इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव को एसपी सुप्रीमो के पद से हटाना भी कई पार्टी कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरा. हालांकि उन्होंने इसका खुलकर विरोध तो नहीं किया लेकिन चुनाव में इसका सीधा असर देखने को जरुर मिला.

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मुलायम ने नहीं किया चुनाव प्रचार

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का यूपी की सियासत में कैंपेनिंग से दूर रहना भी एसपी-कांग्रेस गठबंधन की हार के पीछे एक बड़ा कारण साबित हुआ. आपको बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मुलायम ने अपनी छोटी बहू और लखनऊ कैंट सीट से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी अपर्णा यादव को छोड़कर किसी भी कैंडिडेट का चुनाव प्रचार नहीं किया और यही वजह रहा कि यूपी के चुनावी दंगल में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.

जातिगत छवि से उबर ना पाना

दरअसल समाजवादी पार्टी की छवि यादव जाति के लोगों से जोड़कर देखी जाती है और कांग्रेस से गठबंधन के बाद इसकी छवि यादव और मुस्लिम जाति तक सीमित रह गई. वैसे तो 2017 के विधानसभा चुनाव में एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के ढर्रे को तोड़ते हुए अपनी एक नई लीक बनाई और खुद को जातिगत राजनीति से अलग करने की काफी कोशिश भी की लेकिन काफी हद तक वो इस छवि से उबर नहीं पाए. और कही ना कही यही जातिगत छवि समाजवादी पार्टी-कांग्रेस के गठबंधन की हार का कारण बनी.

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गठबंधन के लिए कैंपेनिंग नहीं की प्रियंका गांधी

इसके साथ ही कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी का यूपी चुनाव में गठबंधन के लिए कैंपेनिंग नहीं करना हार की बड़ी वजहों में से एक वजह साबित हुआ. दरअसल यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाली प्रियंका गांधी दोनों ही दलों के उम्मीदवारों का प्रचार करने वाली थीं लेकिन चुनाव के दौरान प्रियंका ने कांग्रेस के गढ़ को छोड़कर कहीं भी चुनाव प्रचार नहीं किया, जो गठबंधन की हार का कारण बना.

अखिलेश के लिए मुसीबत बना बिजली और गधा

यूपी के सियासी दंगल में जो दांव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए उल्टा पड़ा वो था चुनाव प्रचार के दौरान बिजली का मुद्दा. जी हां! एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने सूबे में चुनाव प्रचार के दौरान बिजली का मुद्दा उठाया और प्रदेश में लोगों को 24 घंटे तक बिजली देने का दावा किया लेकिन यही मुद्दा उनके लिए गले की हड्डी बन गया. विरोधी दलों और खासकर बीजेपी ने इस मु्द्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा. पीएम मोदी ने एक रैली में संबोधन के दौरान राहुल गांधी के उस बयान तक का जिक्र कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि यूपी में खंभों पर तार तो हैं लेकिन उनमें बिजली नहीं है. इसके साथ ही गधे का मुद्दा भी अखिलेश के लिए इस चुनाव में हार का कारण साबित हुआ.

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