गोरखपुर: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की यादें गोरखपुर से भी जुड़ी हुई हैं. आजादी के पहले साल 1940 में अटल बिहारी बाजपेयी अपने बड़े भाई प्रेम बिहारी बाजपेयी की शादी में 16 साल की उम्र में सहबाला बनकर आए थे. गोरखपुर के मथुरा प्रसाद दीक्षित की बेटी रामेश्वरी से अटल के बड़े भाई प्रेम बिहारी की शादी हुई थी. मौजूदा समय में मथुरा प्रसाद दीक्षित के परिवार के तमाम सदस्य गोरखपुर में रहते हैं, जिसमें अटल जी के रिश्ते में साले ब्रज नारायण दीक्षित सबसे बुजुर्ग अवस्था में हैं और परिवार के मुखिया के रूप में उनका सम्मान है.


भारत रत्‍न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सेहत को लेकर गोरखपुर का यह परिवार बेहद चिंतित और दुखी है. गोरखपुर में उनके बिताए एक-एक पल को यह परिवार याद कर भावुक हो जाता है. वे ईश्वर से उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं. ये परिवार पल-पल टेलीविजन पर टकटकी लगाए बैठा है कि अब उन्हें एम्स से छुट्टी दे दी जाएगी. वह स्वस्थ होकर घर को लौटेंगे. अटल बिहारी बाजपेयी ने गोरखपुर के अपने इस रिश्ते को तमाम यात्राओं के दौरान कभी नहीं खोला. वे अक्‍सर यहां पर आते रहे. लेकिन 1996 की एक चुनावी जनसभा में एमपी इंटर कॉलेज में गोरखपुर वासियों की भारी भीड़ को देखते हुए अटलजी अपने अंदाज में गोरखपुर से अपने रिश्ते का खुलासा किया था.

उन्होंने मंच से कहा था कि मुझे गोरखपुर की तमाम गलियां याद हैं. क्योंकि मेरा बचपन में यहां कई बार यहां आना-जाना हुआ है. मैं तो यहां अपने बड़े भाई की शादी में सहबाला बनकर आया था. मेरी तब भी बहुत इज्जत और मान-सम्मान हुआ था. मुझे लगता है गोरखपुर के लोग वैसा ही प्यार इस चुनाव में भी अटल बिहारी को देंगे.

दीक्षित परिवार आज भी अटल जी की यादें अपने समेटे हुए हैं. उनके भाई के साले ब्रज नारायण दीक्षित कहते हैं कि अटल जी हंसमुख और मजाकिया अंदाज में हम सभी के बीच रहते थे. 1975 के बाद जब वह गोरखपुर आए तो घर परिवार में उनके सत्कार का जो दौर चला उसे अटलजी बेहद प्रभावित हुए. यही नहीं वे घर के लोगों का बनाया हुआ पकवान तो ग्रहण किए, लेकिन सुबह की बेला में अपने हाथों से लोगों को ठंडई का रसपान सभी को कराया. इसके बाद अटल जी 1994 में तब दीक्षित परिवार में आए जब उनके भाई के ससुर मथुरा प्रसाद दीक्षित का निधन हुआ था.

यह परिवार मूलतः इटावा का रहने वाला है और चार पीढ़ियों पहले गोरखपुर के दुर्गाबाड़ी रोड पर आकर बस गया था. अटल जी को परिवार के लोगों ने पहले की तरह हाथों-हाथ लिया. उनके सम्मान में वह सब कुछ परोसना चाहा, जो अटल जी को पसंद था, लेकिन अटल जी बेहिचक परिवार के बीच अपनी पसंद का इजहार किया और कढ़ी- चावल बनवा कर खाए. इस दौरान उन्होंने इस घर की एक बहू से अपना जूठा हाथ भी नहीं धुलवाया था और कहा था कि मैं सारा काम खुद करता हूं. इसलिए मेरा हाथ मुझे ही धोने दें. परिवार के लोग अटल जी के सरलता राजनीतिक और पारिवारिक मामले में स्पष्ट सोच के भी मुरीद है.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के भतीजे संदीप दीक्षित कहते हैं कि अटल जी ने आखिरी बार 1994 में यहां पर आए थे. उसके बाद उनसे मुलाकात भी नहीं हो पाई. वहां पर जाने पर भी वे किसी को पहचान नहीं पाते रहे हैं. वे जब भी यहां पर आते रहे हैं खूब मेहनत और लगन से आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे हैं. वे अक्‍सर अपनी कविताएं सुनाकर उन लोगों के भीतर जोश भरते रहे हैं. इस परिवार ने कभी भी उनसे किसी चीज़ की उम्मीद नहीं की. क्योंकि वह अटल जी के विचारों से वाकिफ रहे हैं. उन्हें अटल जी का यह संदेश, मेहनत ही इंसान को आगे ले जाता है, पहचान दिलाता है, इसलिए खुद की मजबूती ही जरूरी है. यह परिवार अटल जी के स्वस्थ होने की कामना कर रहा है और उनकी अभी लंबे समय तक मौजूदगी को देश के लिए बेहद जरूरी बता रहा है.

आज गोरखपुर में उनके भाई के ससुराल में भी उनके खराब स्‍वास्‍थ्‍य के कारण मायूसी पसरी हुई है. लेकिन, ये परिवार उनके जल्‍द ठीक होने की दुआ कर रहा है.