नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले की लगातार 40 दिनों तक सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. फैसला 17 नवंबर से पहले आने की उम्मीद है. अयोध्या भूमि विवाद मामले में शनिवार को हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' यानी जो मांगा, वह न मिलने पर विकल्प को स्वीकार करने संबंधी हलफनामा दाखिल किया.


क्या है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब है कि अगर मालिकाना हक किसी एक या दो पक्ष को मिल जाए तो बचे हुए पक्ष को क्या वैकल्पिक राहत मिल सकती है. मुस्लिम पक्षकारों ने दस्तावेजों को संयुक्त रूप से सीलबंद लिफाफे में पेश किया है.


सुनवाई के आखिरी दिन बुधवार को मुस्लिम पक्षकारों ने शीर्ष अदालत को स्पष्ट रूप से कहा था कि वे बाबरी मस्जिद की बहाली चाहते हैं, क्योंकि यह विध्वंस से पहले मौजूद थी.
मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने फोन कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया.


रामलला विराजमान ने क्या कहा
रामलला विराजमान पक्ष की ओर से जोर देते हुए कहा गया है कि अदालत भक्तों को जमीन दे. अदालत में दिए गए नोट में कहा गया, "मुस्लिम पक्ष इसके हकदार नहीं हैं, क्योंकि ढांचा पहले से मौजूद नहीं था. विवादित स्थल पर मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए गुहार लगाना अन्यायपूर्ण है. यह हिंदू धर्म, इस्लामी कानून और न्याय के सभी सिद्धांतों के विपरीत है."


रामलला के वकीलों ने कहा कि अयोध्या हिंदुओं के तीर्थ स्थानों में से एक है. नोट में कहा गया है कि अयोध्या आस्था, विश्वास और पूजा का वह मार्ग है, जिसके द्वारा हिंदू मोक्ष को प्राप्त करेंगे.


हिंदू उपासक गोपाल सिंह विशारद का कहना है कि हिंदुओं की असीम मान्यता को देखते हुए इसे किसी अन्य धर्म के साथ साझा नहीं किया जाना चाहिए.


अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने क्या कहा
अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी इस संबंध में अपना नोट जमा किया है, जहां इसने संपत्ति के प्रशासनिक मुद्दों को उठाया है और इसे हल करने के लिए एक ट्रस्ट स्थापित करने की सिफारिश की है. इसी तरह की सिफारिश श्रीराम जन्म पुनरुद्धार समिति द्वारा की गई है.


अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए हुआ था मध्यस्थता पैनल का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल का गठन किया था. लेकिन मध्यस्थता पैनल तय समय सीमा में किसी नतीजे पर पहुंचने में नाकाम रहा. मध्यस्थता पैनल में वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफ एम आई कलीफुल्ला हैं.


राजीव धवन ने फाड़ दी थी नक्शे की कॉपी, हिन्दू पक्ष ने कार्रवाई के लिए दर्ज कराई शिकायत


सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई के आखिरी दिन मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने बुधवार को कथित रूप से भगवान राम के जन्म स्थल को दर्शाने वाले एक नक्शे को फाड़ दिया था. अब इस मामले की शिकायत एक हिन्दू पक्षकार ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) से की है. अखिल भारत हिन्दू महासभा से संबंधित एक संगठन ने धवन की इस कार्रवाई की निन्दा करते हुये बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखा है. पत्र में धवन के इस कदम को ‘अत्यधिक अनैतिक कृत्य’’ बताया गया है.


चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष बीसीआई से शिकायत करने वाले संगठन के वकील विकास सिंह ने सुनवाई के अंतिम दिन उस नक्शे को दिखाया था जिसपर राजीव धवन ने आपत्ति जताई थी थी. विकास सिंह द्वारा स्थलाकृति मानचित्र (पिक्टोरियल मैप) दिये जाने पर धवन ने कोर्ट कक्ष में ही उसे फाड़कर सनसनी पैदा कर दी थी.


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