लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अयोध्या भूमि विवाद की सुवनाई के लिए नई तारीख दे दी है. जस्टिस यूयू ललित के खुद को संवैधानिक पीठ से अलग करने के बाद अब 29 जनवरी को नई बेंच बैठेगी. यानी आज से 19 दिन बाद अयोध्या मामले पर सुनवाई की तारीख सामने आ सकती है.


अयोध्या में जमीन विवाद बरसों से चला आ रहा है, अयोध्या विवाद हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है. अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मान्यता है. मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई.



क्या है अयोध्या भूमि विवाद


हिन्दू पक्ष ये दावा करता रहा है कि अयोध्या में विवादित जगह भगवान राम का जन्म स्थान है. जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 में गिरा कर वहां मस्जिद बनाई. मस्जिद की जगह पर कब्जे को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्षों में विवाद चलता रहा. दिसंबर 1949, मस्जिद के अंदर राम लला और सीता की मूर्तियां रखी गयीं.


जनवरी 1950 में फैजाबाद कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ. गोपाल सिंह विशारद ने पूजा की अनुमति मांगी. दिसंबर 1950 में दूसरा मुकदमा दाखिल हुआ. राम जन्मभूमि न्यास की तरफ से महंत परमहंस रामचंद्र दास ने भी पूजा की अनुमति मांगी.


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन पक्षों में बांट दी थी विवादित ढांचे की 2.77 एकड़ जमीन


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आठ साल पहले विवादित ढांचे की 2.77 एकड़ जमीन तीन पक्षों में बांट दी थी. एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और बाकी के दो हिस्से श्रीराम लला विराजमान और निर्मोही अखाड़े को. यहां रामजी की मूर्ति रखे जाने का स्थान श्रीरामलला विराजमान के पास है. राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े के पास है और बाकी का खाली हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास है. तीनों ने विवादित ढांचे की पूरी जमीन पर अपना हक जताते हुए हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. अभी मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.



 2010 के 2:1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गयी हैं


अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्टके 30 सितंबर, 2010 के 2:1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गयी हैं. हाई कोर्ट ने इस फैसले में विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर- बराबर बांटने का आदेश दिया था.


इस फैसले के खिलाफ अपील दायर होने पर शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने के साथ ही विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था.