नई दिल्ली/लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को कोर्ट से बाहर सुलझाने के लिए कहे जाने के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कुछ प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने देश की शीर्ष कोर्ट की मध्यस्थता में बातचीत के लिए सहमति जताई, लेकिन वे कोर्ट के बाहर इस मामले के समाधान को लेकर कुछ ज्यादा आशावान नहीं हैं.


''अगर चीफ जस्टिस मध्यस्थता करें, तो हम बातचीत के लिये तैयार''


बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने कहा, ‘‘अगर चीफ जस्टिस मध्यस्थता करें, तो हम बातचीत के लिये तैयार हैं. हमें उन पर भरोसा है. अगर वह कोई टीम मनोनीत करते हैं तो भी हम इसके लिये तैयार हैं, मगर कोर्ट के बाहर कोई समझौता मुमकिन नहीं है. अगर सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कोई आदेश पारित करता है तो हम उसे देखेंगे.’’


उधर, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने अच्छी टिप्पणी की है. अगर मसले का हल बातचीत से निकल जाए तो यह अच्छी बात है और यह सबके लिए खुशकिस्मती होगी. हम बातचीत के लिए तैयार हैं.’’ उन्होंने कहा कि बातचीत का कोई लम्बा दौर नहीं होगा. दो-चार बैठकों के बाद आठ-दस दिन में मामला साफ हो जाएगा.


धार्मिक मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता


सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को ‘संवेदनशील’ और ‘भावनात्मक मामला’ बताते हुये आज कहा कि इसका हल तलाश करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को नये सिरे से प्रयास करने चाहिये. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है और उन्होंने सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए मध्यस्थता करने की पेशकश भी की. पीठ में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस के कौल भी शामिल हैं.


पीठ ने कहा, ‘‘ये धर्म और भावनाओं से जुड़े मुद्दे हैं. ये ऐसे मुद्दे है जहां विवाद को खत्म करने के लिए सभी पक्षों को एक साथ बैठना चाहिये और सर्वसम्मति से कोई निर्णय लेना चाहिये. आप सभी साथ बैठ सकते हैं और सौहार्द्रपूर्ण बैठक कर सकते हैं.’’


''आपसी बातचीत से नहीं सुलझ सकेगा यह मसला''


जीलानी ने कहा कि 31 साल गुजर चुके हैं और उनका मानना है कि अब यह मसला आपसी बातचीत से नहीं सुलझ सकेगा. उन्होंने कहा, ‘‘साल 1986 में कांची कामकोटि के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष अली मियां के बीच बाबरी मस्जिद मामले पर बातचीत हुई थी, मगर वह नाकाम रही थी. बाद में 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और बीजेपी नेता भैरव सिंह शेखावत के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन वह बेनतीजा रही. उसके बाद प्रधानमंत्री बने नरसिम्हा राव ने एक समिति बनायी और कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय के जरिये बातचीत की शुरआत की कोशिश की, लेकिन 1992 में मस्जिद ढहा दी गयी.’’


सुप्रीम कोर्ट की आज की टिप्पणी का स्वागत करते हुए अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख और मुख्य इमाम डॉक्टर उमेर अहमद इलियासी ने कहा, ‘‘अगर दोनों पक्षों के लोग बैठकर इस मामले को सुलझा ले तो इससे बेहतर कुछ नहीं होगा. दोनों तरफ के प्रमुख संतों और इमामों को इसमें आगे आना चाहिए.’’


मामले को कोर्ट से बाहर हल करने का प्रयास


इलियासी ने कहा, ‘‘इस मामले का बातचीत के जरिए समाधान होना हमारे समाज और देश दोनों के लिए बेहतर होगा. ऐसा होने पर पूरी दुनिया में बहुत अच्छा संदेश जाएगा.’’ दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा कि इस मामले को कोर्ट से बाहर हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए.


बुखारी ने आज एक बयान में कहा, ‘‘हम देश की शीर्ष कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत करते हैं. मामले को कोर्ट से बाहर हल करने की कोशिश होनी चाहिए. दोनों पक्ष बैठकर बातचीत करें और मामले को हल करने की कोशिश करें.’’


‘पीस फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के प्रमुख मुफ्ती एजाज अरशद कासमी ने कहा, ‘‘इस पूरे मामले से अवगत सुप्रीम कोर्ट का कोई जस्टिस मध्यस्थता करे तो यह बहुत अच्छा होगा. जस्टिस की मध्यस्थता में दोनों पक्ष बैठक कर बातचीत कर सकते हैं.’’