नई दिल्ली: अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला देते हुए बीजेपी और हिंदूवादी नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का केस चलाने की मंजूरी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की पिटीशन पर यह फैसला सुनाया. आप कन्फ्यूज ना हों, यह फैसला जन्मभूमि विवाद पर नहीं है. यह फैसला उस आपराधिक साजिश के केस पर आया है जो 6 दिसंबर 1992 को हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब बीजेपी के बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह समेत कई नेताओं पर साज़िश की धारा में मुकदमा चलेगा. याचिका में जिन नेताओं के नाम हैं उनमें से कई अब इस दुनिया में नहीं हैं. अयोध्या मुद्दे पर दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए: कांग्रेस


आसान शब्दों में कहें तो आज का फैसला विवादित ढांचा तोड़ने की साजिश पर है. मतलब यह एक आपराधिक साजिश का केस है. वो साजिश जिसकी वजह से 6 दिसंबर 1992 को घटना घटी. मतलब यह केस 6 दिसंबर 1992 के घटना पर आधारित है. यहां आप पढ़ें कि आखिर 6 दिसंबर 1992 को क्या हुआ था? जिस पर आज यह फैसला आया है. इस मामले में कुल 21 बड़े नेता आरोपी थे, जिनमें से 5 अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसी वजह से 14 नेताओं के खिलाफ आदेश आया है.


यहां समझे पूरा मामला
पहली FIR- 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद दो एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर संख्या 197 लखनऊ में दर्ज हुई. ये मामला ढांचा गिराने के लिए अनाम कारसेवकों के खिलाफ था. दूसरी FIR- दूसरी एफआईआर यानी एफआईआर नंबर 198 को फैज़ाबाद में दर्ज किया गया. बाद में इसे रायबरेली ट्रांसफर किया गया. इस एफआईआर में आठ बड़े नेताओं के ऊपर मंच से हिंसा भड़काने का आरोप था. ये बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा, गिरिराज किशोर, अशोक सिंहल, विष्णु हरि डालमिया, उमा भारती और विनय कटियार थे.


वहां मंदिर बनेगा या मस्जिद बनेगा..या विवादित जन्मभूमि किसके हिस्से जाएगा यह केस अलग है. इस केस का आज के फैसले से कोई लेना देना नहीं है. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि जन्मभूमि विवाद क्या है? कम शब्दों में समझिए कि 1949 में विवादित ढांचे में रामलल्ला की मूर्ति अचानक प्रकट हुई. इस पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच विवाद हुआ. इस मुसलमानों से एफआईआर दर्ज कराई कि यह मूर्तियां बाहर से लाकर रखी गई हैं. निचली अदालत ने वहां ताला लगा दिया. इसके दस साल बाद निर्मोही अखाड़े ने विवादित ढांचे पर अपना मालिकाना हक जताते हुए मुकदमा दर्ज कराया. फिर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना हक जताया. कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने के आदेश दिये. 1986 तक स्थिति बनी रही फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ताला खुलवा दिया. दूसरा मोड़ 1989 में आया जब राजीव गांधी सरकार ने ही शिलान्यास की अनुमति दी. सबसे अहम फैसला, 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाद को सुलझाने के लिए एक बीच का रास्ता निकाला था, लेकिन उस फैसले के बाद भी स्थिति अभी 6 साल पहले वाली ही बनी हुई है.


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था, राम मूर्ति वाला हिस्सा रामलला विराजमान को, राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया था. मतलब कुल मिलाकर यह केस अलग है.. और आज वाला फैसला जो आया है वह ढांचा गिराने की साजिश मतलब आपराधिक केस है.


कोर्ट के आज के आदेश का असर नेताओं के भविष्य़ पर पड़ना तय है. अब जरा सियासी नजरिये से देखिए कि फैसले का असर क्या होगा?


आडवाणी सांसद हैं और राष्ट्रपति पद के लिए नाम चल रहा है. मुरली मनोहर जोशी भी सांसद हैं और इनका नाम भी राष्ट्रपति की रेस में है. उमा भारती मोदी सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं, अभी उन्होंने इस्तीफे से इनकार किया है. कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं. संवैधानिक पद पर हैं इसलिए अभी केस नहीं चलेगा. केस चलने से राष्ट्रपति की रेस में आडवाणी, जोशी बाहर हो जाएंगे. उमा भारती पर विपक्ष इस्तीफे का दबाव बनाएगा. राष्ट्रपति चुनाव से हटाने के लिए बाबरी मामले में आडवाणी के खिलाफ केस पीएम मोदी की साजिशः लालू यादव