पटना: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रविवार को पटना के गांधी मैदान में हुई रैली ने लगभग दो दशकों के अंतराल के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच उम्मीदें जगाई हैं. राहुल गांधी की जन आकांक्षा रैली में जोर देकर कहा गया कि यूपी की तरह कांग्रेस बिहार में भी फ्रंट फुट पर बल्लेबाजी करेगी और छक्के मारेगी. जाहिर तौर पर यह पार्टी के भविष्य की रणनीति के बारे में संकेत देता है. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बिहार में आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की क्या रणनीति रहने वाली है.


बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी (बीपीसीसी) के प्रमुख मदन मोहन झा ने कहा कि 28 साल के अंतराल के बाद आयोजित रैली ने पार्टी को फिर से जोड़ दिया है. झा ने कहा, "इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ा है और लोकसभा चुनाव के लिए सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे पर कोई भी बातचीत उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए होगी."


बीपीसीसी के पूर्व प्रमुख अनिल शर्मा ने कहा कि राहुल गांधी के भाषण ने, जो स्पष्ट रूप से लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी के चुनाव अभियान को गति देने के लिए था, ने प्रतिद्वंद्वी दलों के लिए बेंचमार्क निर्धारित किया है. बीजेपी के विपरीत हम वही करते हैं जो हम वादा करते हैं. शर्मा ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कर्ज माफी की घोषणा की थी और लोगों को उन पर भरोसा करने का कारण होना चाहिए. शर्मा ने कहा कि राहुल ने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने का वादा करके बुद्धिजीवियों को प्रभावित करने की कोशिश की.


कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि राहुल की रैली ने बातचीत की मेज पर पार्टी को बेहतर स्थिति में पहुंचा दिया. "हम पहले ही आरजेडी को स्पष्ट कर चुके हैं कि उसे लोकसभा चुनावों में 'बड़े भाई' की भूमिका नहीं निभानी चाहिए. राहुल गांधी पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि आरजेडी और कांग्रेस बिहार में अगली सरकार बनाएंगे. आरजेडी अगर 2009 जैसे परिणामों से बचना चाहता है तो उसे कांग्रेस के साथ आना होगा.


बीपीसीसी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा, हमारे पास कई सांसद और कई अन्य संभावित विजेता हैं. कांग्रेस नेता ने कहा कि अपने पुराने दृष्टिकोण के साथ आरजेडी, कांग्रेस की हिस्सेदारी को पांच से छह लोकसभा सीटों पर सीमित करने की कोशिश कर रही है. इस बार उन्हें (आरजेडी नेताओं) को अपना रुख बदलना होगा. हम महागठबंधन के तहत आने वाले लोकसभा चुनावों में 12-15 सीटों पर लड़ने के इच्छुक हैं.


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मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की हालिया जीत ने भी राज्य कांग्रेस के पिछले चुनावों की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के विश्वास को बढ़ाया है.


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