पटना: बिहार बोर्ड में कभी टॉपर घोटाला तो कभी रिजल्ट में हेराफेरी लेकिन इस बार तो अति हो गई. जिन लड़कों ने जेईई, मेडिकल, मर्चेंट नेवी में एंट्रेंस टेस्ट पास किया उन्हें बोर्ड ने ज़ीरो दे दिया. कुछ को कुल मार्क्स से भी ज्यादा नंबर भी दे दिया गया है. पूरे बिहार में छात्रों में उबाल है. एआईएसएफ, जन अधिकार जैसे छात्र संगठन इनके समर्थन में सड़कों पर उतर गए हैं. लेकिन इनकी आवाज़ भी अनसुनी कर दी जा रही है. पुलिस इन्हें पकड़ कर ले जा रही है.


राज प्रकाश को खुश होना चाहिए था क्योंकि इन्होंने जेईई, मर्चेंट नेवी का एंट्रेंस टेस्ट पास कर लिया है. लेकिन इनके चेहरे पर परेशानी है. बोर्ड ने इन्हों मैथ्स और केमेस्ट्री में फेल कर दिया गया. प्रकाश का कहना है कि मेरे साथ बहुत गलत हुआ है. मैंने बहुत पढ़ाई की और जेईई निकाल लिया. मर्चेंट नेवी कॉलेजों से एडमिशन के लिए कॉल आया है पर बिहार बोर्ड ने मेरा भविष्य खराब कर दिया.


प्रकाश जैसे कई छात्र हैं जिन्होंने साल भर मेहनत की लेकिन उनका रिज़ल्ट खराब हो गया. कुछ छात्र ऐसे भी हैं जिन्हें कुल मार्क्स से भी ज़्यादा नंबर मिला है. बलिराम कुमार को दो विषय में फेल कर दिया गया. बलिराम, शुभम, अमन कुमार जैसे हज़ारों छात्र बहुत परेशान हैं. सभी कॉन्फिडेंट हैं कि वे पास हैं.


अमन को तो एक विषय में नंबर ही नहीं मिला है. उनका कहना है कि बीआईटी में एडमिशन लेना है लेकिन उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो गई. उन्होंने कहा, ''मेरी कॉपी को मेरे सामने रीचेक की जाए. उन्होंने कहा, ''मैंने 10वीं अच्छे अंको से पास किया है.'' अमन ने आरोप लगाया कि नीट वाले टॉपर के रिजल्ट का इंतज़ार किया गया और फिर उसे टॉपर घोषित किया. नवगछिया के राजा कुमार को तो नंबर ही नहीं दिए गए. बिहार बोर्ड के दफ्तर के सामने गला फाड़कर चिल्ला रहे है लेकिन इनकी शिकायत कोई नहीं सुन रहा.


बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की तरफ से काफी मशक्कत के बाद घोषित किए गए इंटरमीडिएट परीक्षा के नतीजों ने एक बार फिर राज्य के लोगों को चौंका दिया है. परीक्षा समिति के टॉप-टेन छात्रों पर कोई सवाल नहीं उठ रहे लेकिन कई स्तरों पर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं. कक्षाओं में छात्रों की 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है कि नहीं? इस संबंध् में बोर्ड के अध्यक्ष का जो बयान है कि इसके एक्ट और नियमावली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. इससे विरोधाभासी स्थिति उत्पन्न हो रही है.


सरकार ने बार-बार घोषित किया है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हीं छात्र-छात्राओं को मिलेगा जिनकी उपस्थिति 75 प्रतिशत न्यूनतम है. इसी आधार पर सरकारी और निजी विद्यालयों के अनुदान का आकलन किया भी जाता है. लेकिन बोर्ड के इस वक्तव्य से यह संदेश निकलता है कि सरकारी विद्यालय परीक्षा का फॉर्म भरने और परीक्षा देने का केन्द्र मात्रा है. उनमें पढ़ाई लिखाई की कोई आवश्यकता नहीं है. इससे सरकारी विद्यालयों की साख प्रभावित हो रही है और कोचिंग संस्थाओं को बढ़ावा मिल रहा है. इस प्रकार यह एक विचारणीय प्रश्न है.


फूल-प्रूफ व्यवस्था के बावजूद और छात्रों के डिजिटल लॉक के बावजूद छात्रों और उनके अभिभावकों से पैसे मांगे जाने की खबरें प्रकाश में आ रही हैं. जाहिर है कि कहीं न कहीं व्यवस्था में कमी है. विद्यालयों में कम्प्यूटर नहीं है. कम्प्यूटर शिक्षक नहीं हैं. जबकि बोर्ड के सारे काम ऑनलाइन करने की व्यवस्था है. ऐसी स्थिति में विद्यालयों को निजी साइबर कैफे का उपयोग करने की व्यवस्था है और सारे डेटा निजी साइबर कैफे वालों के पास है. इससे कितना लीक हो रहा है इसके लिए किसी को भी जवाबदेही नहीं है. प्रैक्टिकल परीक्षा में छात्रों को उतने नम्बर प्राप्त हुए हैं जितने का प्रश्न पत्र नहीं है या फिर उनके अंक ही शून्य हैं.