पटना: इंटरनेशनल योग दिवस के मौके पर देशभर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. पीएम नरेंद्र मोदी और कई नेेताओं सहित आम लोगों ने भी 21 जून को अलग-अलग जगहों पर योग किया, लेकिन नीतीश कुमार इससे दूर रहे. बिहार में पहले से ही सीट बंटवारे को लेकर तनातनी जारी है और इस बीच ही नीतीश कुमार का खुद को योग दिवस से अलग रखने के फैसले ने सियासी सरगर्मी को और बढ़ा दिया. कार्यक्रम में गठबंधन सहयोगी बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे.
नीतीश कुमार की इस दूरी के राजनीतिक मतलब हो सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार योग नहीं करते हैं. वे पिछले 20 सालों से योग करते आए हैं. सांसद बनकर जब दिल्ली आए थे तब वो सुदर्शन योग की परिपाटी को मानते थे और योग मुद्रा का अभ्यास करते थे.
बिहार में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेर योग आश्रम के साथ जुड़े और फिर स्वामी सत्यानन्द के द्वारा बताए गए योग आसान का अभ्यास करने लगे. मुख्यमंत्री आवास में भी वे ध्यान करते हैं और रोजाना करीब आधे घण्टे तक योग के करते हैं. नीतीश कुमार का मानना है कि योग सार्वजनिक नहीं निजी होना चाहिए.
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इसके साथ ही मुख्यमंत्री अपने सहयोगियों को भी योग करने के लिए प्रेरित करते हैं. शुरुआती दौर में कुछ लोगों ने ट्रेड मिल और साइकलिंग करने की सलाह भी दी थी लेकिन नीतीश ने योग ही करने में ज़्यादा दिलचस्पी ली. 2006 में बाबा रामदेव को पहली बार बिहार का ब्रांड एम्बेसेडर बनाया गया था. नीतीश कहते हैं कि वो हमेशा से योग के पक्षधर रहे हैं. इसके लिए मुंगेर के विश्वविख्यात योग स्कूल के कई कार्यक्रमों में जाते रहे हैं और समय समय पर इनकी मदद भी करते रहे हैं.
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नीतीश ने इससे प्रेरित होकर पटना के गौतम बुद्ध पार्क में विपश्यना सेंटर की शुरुआत भी की. नीतीश कहते हैं कि जब स्वामी सत्यानन्द जीवित थे तो वह बराबर मुंगेर के योग आश्रम जाते थे. उन्होंने योग कराने वाले प्रशिक्षकों को आधे घण्टे का पैकेज तैयार करने की सलाह भी दी थी.