पटना: ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे जब सरकारी विभाग टेंडर निकालकर निजी कंपनियों से काम कराते हैं और फिर पैसों के भुगतान के लिए निजी कंपनियों को दौड़ाते हैं. लेकिन अब ऐसे ही एक मामले में बिहार के जल संसाधन विभाग पर कोर्ट का डंडा चला है, अदालत ने विभाग के प्रधान सचिव का दफ्तर जब्त कर लिया है और 15 सितंबर के बाद उसे नीलाम किया जा सकता है.


बिहार सरकार के हेडक्वार्टर यानी पटना सचिवालय का एक हिस्सा नीलाम होने जा रहा है, निजी कंपनी को भुगतान न करने की वजह से सचिवालय के एक हिस्से में बने सिंचाई भवन पर कोर्ट ने नोटिस चिपकाकर प्रधान सचिव के दफ्तर को जब्त कर लिया है. 15 सितंबर के बाद उसे नीलाम किया जा सकता है.


दरअसल जल संसाधन विभाग ने 2011 में बिहार के नवगंछिया में बांध की मरम्मत का काम KEMS सर्विस प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी को दिया था, 10 करोड़ के इस ठेके में कंपनी को 6 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है लेकिन बाकी पैसों के लिए कंपनी को दौड़ाया जा रहा है. जिसको लेकर कंपनी के डायरेक्टर मोहन खंडेलवाल ने पहले बिहार पब्लिक वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट्स डिस्प्यूट्स आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल में शिकायत की, जहां 2014 में ही विभाग को ब्याज सहित बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया गया लेकिन विभाग ने ऐसा नहीं किया.


कंपनी हाईकोर्ट गई जहां से पिछले साथ अगस्त में विभाग को फिर से कंपनी का बकाया भुगतान ब्याज सहित एक महीने के भीतर लौटाने का आदेश दिया लेकिन विभाग ने हाईकोर्ट की भी नहीं सुनी. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को अभी पेंडिंग ही रखा गया है लेकिन इस दौरान पटना में सब जज एक ने जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव को जब्त करके 15 सितंबर तक का वक्त दिया है, भुगतान न होने की स्थिति में दफ्तर को नीलाम किया जाएगा.


इस पूरे मामले पर प्रधान सचिव त्रिपुरारी शरण और जल संसाधन मंत्री ललन सिंह ने चुप्पी साध रखी है. कोई इस सवाल का जवाब देने को तैयार नहीं कि आखिर विभागीय दफ्तर के नीलामी की स्थिति क्यों बनी?