मुजफ्फरपुर: बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से मरने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ने के बीच इस बीमारी के कारणों को लेकर विशेषज्ञों की राय अलग अलग है. मुजफ्फरपुर स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कालेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष (एचओडी) डा. गोपाल शंकर सहनी ने कहा, ‘‘कई लोग इसके लिए लीची के सेवन को जिम्मेदार बताते हैं. मैं कई वर्षों से ऐसे मरीजों को देख रहा हूं और यह अत्यधिक गर्मी और उमस के कारण होती है.’’


चमकी बुखार के बारे में सहनी की राय पर शिशु रोग विशेषज्ञ एवं पूर्व में इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीडियाट्रिक्स के बिहार चैप्टर का नेतृत्व कर चुके अरुण शाह का कहना है, "यदि गर्मी और आर्द्रता मुख्य कारक है, तो ऐसा क्यों है कि ज्यादातर बच्चों में इसके लक्षण सुबह विकसित होते हैं.’’ शाह वेल्लोर के महामारी विशेषज्ञ टी जैकब जॉन के साथ काम कर चुके हैं. जॉन ने ही पहली बार 2016 में लीची के सेवन को अनियंत्रित हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त शर्करा का स्तर के बेहद कम हो जाना) का एक कारक बताया था.


अरुण शाह ने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन ने यह नहीं कहा गया था कि लीची का सेवन करने वाला कोई भी बीमार पड़ जाएगा. बिना पकी लीची के फल में एमसीपीजी नामक टॉक्सिन की सांद्रता उच्च स्तर में होती है. इसके कारण जब कुपोषित बच्चे ऐसे फल का सेवन करते हैं तो यह हाइपोग्लाइसीमिया को बढ़ावा देता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन के निष्कर्षों को अटलांटा स्थित सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की ओर से किए गए एक शोध द्वारा भी पुष्टि की गई थी और यह प्रतिष्ठित पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित हुई थी.’’


इसके आगे अरुण शाह ने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन में इस तरह के प्रकोप को रोकने के लिए कई सिफारिशें की गयी थीं. इसमें जागरूकता बढ़ाना शामिल था ताकि बच्चों को भूखे पेट न सोने दिया जाए और लीची के बगानों से उन्हें दूर रखा जाए. इसके अलावा कुपोषण के उन्मूलन की भी आवश्यकता है.’’ उन्होंने कहा कि 2017 और 2018 में इस रोग से बचाव को लेकर जागरूकता अभियान चलाए जाने के कारण इससे ग्रसित होने वाले बच्चों की संख्या में कमी आयी थी. उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए प्राथमिकी स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता है.


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