नई दिल्ली: दशहरा के बाद नीतीश कुमार बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार करने वाले हैं. दशहरा के बाद ही सीट बंटवारे से बीजेपी पर अंतिम फैसला भी होगा. प्रशांत किशोर को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर नीतीश कुमार ने बीजेपी से सीट बंटवारे की बातचीत के लिए अधिकृत कर दिया है. दोनों पार्टियां अपने अपने हिसाब से सीटों के चयन में जुट गई है.


सीएम नीतीश के सामने इस वक्त कानून व्यवस्था, करप्शन और सवर्णों की नाराजगी से पार पाना बड़ी चुनौती है. इस चुनौती को ध्यान में रखकर कई बड़ी रणनीति पर विचार हो रहा है. नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में फेरबदल करने वाले हैं. कांग्रेस से जेडीयू में आए अशोक चौधरी का मंत्री बनना तय है. एक महिला भी मंत्री बनेंगी. इसमें बेलसंड की विधायक सुनीता सिंह चौहान का नाम सबसे आगे है. कुशवाहा जाति से भी किसी को मंत्री बनाया जाएगा.


इसके अलावा जो चर्चा सबसे गर्म है वो ये कि नीतीश कुमार अपने पास के बड़े मंत्रालयों का बोझ कम करना चाहते हैं. इसके लिए एक और डिप्टी सीएम की चर्चा है. तलाश ऐसे नेता की है जो कई पैमाने पर फिट हो. मसलन सवर्णों की नाराजगी को मैनेज कर सके. ढंग से मंत्रालय चला सके और साथ ही बिहार में बीजेपी का भविष्य बेहतर कर सके.


मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते चर्चा है कि बीजेपी की तैयारी बिहार में विकास और हिंदुत्व के नाम पर आगे बढ़ने की है. फिलहाल बिहार बीजेपी में जितने भी नेता हैं वो पहली पंक्ति के हैं. यानी अगले पांच साल में उनका राजनीतिक करियर ढलान पर रहेगा. ऐसे में बीजेपी नया नेता तैयार कर बिहार में खुद को स्वतंत्र और मजूबत करना चाहेगी.


सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे का जो फॉर्मूला है उसमें बिहार का मंत्रिमंडल, बिहार विधानसभा की सीटों का बंटवारा भी शामिल है. नीतीश कुमार के रणनीतिकार ललन सिंह मुंगेर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. इस सीट से सूरजभान की पत्नी और उन्हीं की जाति की वीणा सिंह एलजेपी की सांसद हैं. ललन सिंह के मुंगेर लड़ने की सूरत में सूरजभान को नवादा या बेगूसराय शिफ्ट करने की प्लानिंग है.


बेगूसराय के लिए पूर्व सांसद मोनाजिर हसन को नीतीश जुबान दे चुके हैं. ऐसे में नवादा की सीट बचती है. अब एक प्लानिंग ये हो सकती है कि गिरिराज सिंह को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी देकर नवादा की सीट एलजेपी के खाते में डाल दें.


नीतीश और बीजेपी को इतनी मशक्कत इसलिए करने की जरूरत पड़ रही है क्योंकि कांग्रेस सवर्णों के सहारे बीजेपी के वोट बैंक को कमजोर करने में लगी है. मिथिलांचल में ब्राह्मण चेहरा मदन मोहन झा को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने मैथिल ब्राह्मण को तोड़ने की कोशिश की है. कीर्ति आजाद के नाराज होने की वजह से मैथिल वैसे भी नाराज हैं. लिहाजा मिथिलांचल में अहम भूमिका निभाने वाला ये समाज बीजेपी और जेडीयू से दूरी बना सकता है. कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह की वजह से भूमिहारों का झुकाव कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है.


भूमिहार इस बात से भी नाराज है कि एससी-एसटी एक्ट को लेकर हुए भारत बंद में उनके समाज के नौजवान और महिलाओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया. पटना में प्रदर्शन किया तो पुलिस ने दौड़ा दौड़ा कर पीटा. प्रमोशन में आरक्षण से लेकर कई और ऐसे मामले हैं जिसकी वजह से सवर्ण वोटरों पर एनडीए की पकड़ ढीली हो रही है. इसी ढिलाई को कसने के लिए बीजेपी के रणनीतिकार लगातार फीडबैक ले रहे हैं. कुछ लोगों की टीम सर्वे भी कर रही है कि आधार वोट को कैसे बरकरार रखा जाए.


आनंद मोहन की रिहाई की मांग को लेकर राजपूत समाज फिर से सक्रिय है. राजपूत वोटर फ्लोटिंग वोटर रहा है. यानी राजपूत वोटर पहले जाति को तरजीह देता है फिर पार्टी को. शत्रुघन सिन्हा को लेकर कायस्थ भले ही अभी नाराज न हो लेकिन बाद में हो सकता है. बीजेपी अपने 15 फीसदी इस आधार वोट को लेकर चिंतित है. पार्टी को लग रहा है कि बहुत कुछ पाने के चक्कर में कहीं अपना बहुत कुछ खोना न पड़े.


बिहार बीजेपी के मौजूदा बड़े नेताओं में सुशील मोदी वैश्य हैं, नंद किशोर यादव हैं, प्रेम कुमार कहार हैं, अश्विनी चौबे- ब्राह्मण, गिरिराज सिंह भूमिहार, रविशंकर प्रसाद कायस्थ और राधा मोहन सिंह राजपूत जाति के हैं.


थोड़ा अतीत के पन्नों को पलटें तो बिहार में जब 2015 का चुनाव हो रहा था तब गिरिराज सिंह ऐसे डील करते लगता था मानो वे ही सीएम के दावेदार हों. अखबार से लेकर टीवी तक सोशल मीडिया से लेकर चुनाव मैदान तक गिरिराज का ही जलवा दिखता था. लोग ये मानने भी लगे थे कि सरकार बनी तो गिरिराज सीएम होंगे. क्योंकि गिरिराज नरेंद्र मोदी कैंप के हैं. जबकि सुशील मोदी उस दौर में नीतीश के साथ खड़े थे जब नीतीश और नरेंद्र मोदी की सियासी टक्कर होती थी. वैसे भी बीजेपी को भविष्य के हिसाब से बढ़ना है क्योंकि नीतीश के बाद जेडीयू का कोई भविष्य नहीं है.


लेकिन नीतीश और गिरिराज में कई मौकों पर तल्खी दिख चुकी है. दरभंगा में मोदी चौक नाम को लेकर एक हत्या हुई तो गिरिराज ने बिहार सरकार पर सवाल खड़े किए. अश्विनी चौबे के बेटे वाले मैटर में भी गिरिराज नीतीश की लाइन से अलग दिखे थे. इसलिए हो सकता है नीतीश इफ एंड बट में रहें.