नई दिल्ली: बिहार में एनडीए में चल रहे सीट बंटवारे के विवाद के साथ ही अब महागठबंधन में भी सीट को लेकर दवाब की राजनीति शुरू हो गई है. राहुल गांधी की पीएम दावेदारी पर तेजस्वी यादव का खुलकर न आना इस खबर को पुख्ता करता है. खबर है कि कांग्रेस ने बिहार में 15 सीटों की मांग की है. 2014 में कांग्रेस 12 सीट पर लड़ी थी. तब कांग्रेस को दो पर जीत मिली थी. इस बार कांग्रेस दबाव इसलिए बढ़ा रही है क्योंकि महागठबंधन में अब जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) और शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल भी है.


हम ने पांच सीटों पर दावा जताया है. जबकि एलजेडी को चार सीट की जरूरत है. हम को गया, मुजफ्फरपुर, नवादा, महराजगंज, नालंदा, शिवहर में से 5 सीट चाहिए. एलजेडी को मधेपुरा, हाजीपुर, जमुई, सीतामढ़ी की सीट चाहिए. एनसीपी कटिहार लड़ेगी और बेगूसराय सीट लेफ्ट के लिए लालू छोड़ सकते हैं. इस हिसाब से 11 सीट निकल गई. कांग्रेस को 15 चाहिए तो सवाल ये की क्या लालू यादव केवल 14 पर लड़ेंगे?


ऐसा संभव नहीं दिखता. ऐसे में कांग्रेस की सीट लालू यादव कम कर सकते हैं. ऐसा होने पर कांग्रेस में भगदड़ भी मच सकती है. कांग्रेस से जिन सीटों पर महागठबंधन में विवाद होगा उसमें मुजफ्फरपुर, नवादा, शिवहर, बेगूसराय, महराजगंज की सीट है.


मुजफ्फरपुर से कांग्रेस के अखिलेश सिंह और हम के अजीत कुमार दावेदार हैं. नवादा में कांग्रेस के अजीत शर्मा और हम के अनिल कुमार, महाराजगंज में हम के महाचन्द्र सिंह और आरजेडी में प्रभुनाथ सिंह का परिवार दावेदार है. शिवहर में हम से लवली आनंद और आरजेडी या कांग्रेस से रामा सिंह दावेदार हो सकते हैं. बेगूसराय में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अमिता भूषण और लेफ्ट के कन्हैया कुमार को लेकर मतभेद की आशंका है. खगड़िया से इस बार एलजेपी सांसद महबूब अली कैसर कांग्रेस से लड़ने को इच्छुक हैं. ऐसे में आरजेडी की दावेदार कृष्णा यादव मुश्किल खड़ी कर सकती हैं.


दरभंगा में भी पेंच है. खबर है कि कीर्ति आजाद कांग्रेस से प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में आरजेडी के अली अशरफ फातमी क्या करेंगे ये बड़ा सवाल है. ऐसी स्थिति में कांग्रेस महागठबंधन में मुश्किल खड़ी कर सकती है. क्योंकि इससे पहले तक राज्य में कांग्रेस की जो स्थिति थी वो स्थिति अब बदल चुकी है.


कांग्रेस अभी संख्या के हिसाब से 18 साल में सबसे मजबूत स्थिति में है. ऐसे में कांग्रेस कोई रिस्क भी उठा सकती है. क्योंकि चुनाव लड़ने वाले महत्वकांक्षी नेता यहां भरे पड़े हैं. यही वजह है कि बीच बीच में कांग्रेस नीतीश कुमार पर डोरे डालने की कोशिश करती रही है.


बीजेपी से जेडीयू की बात बिगड़ती है तो फिर कांग्रेस लालू यादव से अलग हो सकती है. तब नीतीश और कांग्रेस मिलकर बिहार में चुनाव लड़ेंगे. ये तो एक संभावना है लेकिन दूसरी जो बड़ी संभावना है वो ये कि सम्मानजनक सीट नहीं मिलने पर कांग्रेस कोई नया समीकरण भी खड़ा कर सकती है. ऐसे में एक विकल्प अलग लड़ने का होगा. इसी की तैयारी के तहत प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने कल ही हर पंचायत में संगठन खड़ा करने का एलान किया है.