लखनऊ: यूपी में बीजेपी अब बीएसपी के फ़ार्मूले पर लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में है. तैयारी भी उसी हिसाब से शुरू हो गई है. बीएसपी के मंच से अब भी नारे लगते हैं- जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. पार्टी के संस्थापक कांशीराम ऐसा कहते थे. बीजेपी में ये नारा तो नहीं लगता है लेकिन अगले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी हाईकमान का कुछ ऐसा ही इशारा है. बीजेपी का सारा ज़ोर ग़ैर यादव पिछड़ी जातियों को एकजुट करने पर है यूपी में इस बिरादरी के 54 प्रतिशत वोटर हैं. इनके समर्थन से पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 71 सीटें जीतने में कामयाब रही. बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल को दो सीटें मिलीं. अगले आम चुनाव के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 74 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है.


यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन से मुक़ाबले के लिए बीजेपी ने पिछड़ों पर दांव आजमाने का फ़ैसला किया है. अगड़ी जातियां तो परंपरागत रूप से बीजेपी का वोट बैंक रही हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी ने ख़ुद को पिछड़ी जाति का घोषित कर इस बिरादरी में अपनी पैठ बना ली है. ग़ैर यादव पिछड़ों ने पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए झूम कर वोट किया लेकिन योगी आदित्यनाथ राज्य के मुख्य मंत्री बना दिए गए. ब्राह्मण नेता महेंद्र नाथ पांडे को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया गया. अब पार्टी एक बार फिर से पुराने एजेंडे पर लौट आई है.


बीजेपी ने पिछड़ी बिरादरी के अलग अलग जातियों का सम्मेलन करने का फ़ैसला किया है. इस तरह की सभी बैठकें लखनऊ में होंगी. 24 अगस्त को निषाद समाज का सम्मेलन होगा. 25 तारीख़ को भुर्ज़ी, 28 को विश्वकर्मा और 29 को चौरसिया जाति के नेताओं और कार्यकर्ताओं की मीटिंग होगी. इससे पहले इसी महीने प्रजापति, नाई और राजभर बिरादरी का सम्मेलन हो चुका है. इन सभी सम्मेलनों में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और पार्टी के यूपी अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडे को भी बुलाया जाता है.


पिछड़ा वर्ग सम्मेलन का काम काज देख रहे बीजेपी के महामंत्री विजय बहादुर पाठक ने कहा कि हम इन बैठकों से उस समाज के नेताओं से संपर्क और संवाद कर रहे हैं. पीएम आवास योजना, उज्जवला गैस योजना और शौचालय योजना में भी पिछड़ों को अधिक हिस्सेदारी देने का मन योगी सरकार ने बनाया है. सरकारी मशीनरी से मिल कर संगठन के लोग इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं.


ग़ैर यादव पिछड़ो को ख़ुश करने के लिए यूपी सरकार पहले ही आरक्षण में कोटा बनाने का फ़ैसला कर चुकी है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस फ़ैसले का एलान विधानसभा में किया था. इसके बाद पिछले मई महीने में यूपी पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति का गठन किया गया. रिटायर जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यों की कमेटी को ये पता करने को कहा गया है कि किस जाति को कितनी सपकारी नौकरियां मिली हैं.


पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. ये शिकायतें हैं कि यादव और कुर्मी जैसी जाति के लोगों सारी सुविधायें ले लेते हैं जबकि निषाद, राजभर और कश्यप समाज के लोगों को आरक्षण का बहुत कम फ़ायदा मिलता है. इसीलिए योगी सरकार लोकसभा चुनाव से पहले कोटे में कोटा आरक्षण देने की तैयारी में है. सीएम रहते हुए राजनाथ सिंह ने भी ये अति पिछड़ों और अति दलितों को अलग से आरक्षण देने की कोशिश की थी लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए थे.


दलित हमेशा से बीएसपी का बेस वोट बैंक रहा जबकि ग़ैर यादव पिछड़ों को पार्टी ने स्टेपनी वोट बैंक समझा. ये फ़ार्मूला बीएसपी संस्थापक कांशीराम का था. इन्हीं दोनों बिरादरी के बूते बीएसपी आगे बढ़ती रही. लेकिन पहले 2014 के लोकसभा और फिर 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने इस फ़ार्मूले को ध्वस्त कर दिया अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कोशिश इस माहौल को बनाए रखने की है.