यूपी निकाय चुनाव: मेयर पदों पर जीती बीजेपी ने क्या खोया?
पहली नज़र में बीजेपी की जीत का आंकडा बेहद सुनहरा लगता है लेकिन हालात वाकई इतने सुनहरे नहीं हैं और बीजेपी के पुराने नेता इस बात को समझ भी रहे हैं. आखिर क्या खोया है बीजेपी ने? चलिए बताते हैं आपको.
नई दिल्ली: यूपी निकाय चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने खूब खुशियां मनाईं. यूपी में जीत का जश्न गुजरात तक हुआ. 16 में से 14 मेयर सीटों पर बीजेपी की जीत हुई. 595 पार्षद सीटों पर भी बीजेपी जीत गई. नगर पालिका अध्यक्ष की 70 सीटों पर और नगर पालिका सदस्य की 922 सीटों पर भी भगवा फहराया. नगर पंचायत अध्यक्ष की 100 सीटों पर और नगर पंचायत सदस्य की 664 सीटों पर भी बीजेपी ने जीत हासिल की है. निसंदेह पहली नज़र देखने में ये आंकडा बेहद सुनहरा लगता है लेकिन हालात वाकई इतने सुनहरे नहीं हैं और बीजेपी के पुराने नेता इस बात को समझ भी रहे हैं. आखिर क्या खोया है बीजेपी ने? चलिए बताते हैं आपको.
पालिका और पंचायत में पीछे
मेयर चुनाव में बीजेपी की जीत का प्रतिशत रहा 87.5 जो निसंदेह कमाल का है. पार्षद पदों पर ये प्रतिशत 45.85 रह गया. नगर पालिका अध्यक्ष पदों पर 35.35 प्रतिशत और नगर पालिका सदस्य पदों पर 17.53 प्रतिशत में ही ये आंकडा सिमट गया. नगर पंचायत अध्यक्ष पदों पर ये आंकडा 22.83 रहा तो वहीं नगर पंचायत सदस्य पदों पर मात्र 12.22 प्रतिशत.
तो 16 में से 14 का जो आंकडा सुनहरा लग रहा था, इन नए आंकडों को देखने के बाद वो कैसा लग रहा है? यकीनन अब सुनहरा रंग फीका पड़ने लगा होगा. आखिर क्या वजह रही जो मेयर चुनाव की चैम्पियन बीजेपी नगर पालिका और नगर पंचायत में कमाल नहीं दिखा पाई?
निर्दलियों पर जनता का भरोसा निर्दलीय उम्मीदवारों ने 224 पार्षद पद जीते है. नगर पालिका अध्यक्ष के 43 पदों और नगर पालिका सदस्य के 3380 पदों पर कब्जा किया जो 64.25 प्रतिशत है. ये तथ्य भी हैरान करने वाला है कि निर्दलीय उम्मीदवारों ने नगर पंचायत अध्यक्ष के 182 पद (41.55%) और नगर पंचायत सदस्य के 3875 पदों (71.31 %) पर कब्जा कर लिया. जनता ने इतनी बड़ी तादाद में निर्दलीयों पर भरोसा जताया है तो कहीं ना कहीं, कोई ना कोई बात तो जरूर रही होगी. आखिर क्यों यहां कोई पार्टी कुछ कमाल नहीं दिखा पाई. क्या ये माना जाना चाहिए कि बीजेपी की कथित लहर यहां शांत पड़ गई.टिकट कटने से नाराज कार्यकर्ताओं ने भी पहुंचाया नुकसान
बीजेपी के पुराने लोग जानते हैं कि इसके पीछे क्या कारण रहे हैं. सोशल मीडिया पर कई तरह की चर्चाएं भी चल रही हैं जिनमें सबसे बड़ी चर्चा टिकट कटने से नाराज कार्यकर्ताओं की नाराजगी है. यूपी भर में ऐसे कई लोगों के टिकट काटे गए जो सालों से इन चुनावों के लिए पसीना बहा रहे थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खास तौर पर इस बात की चर्चा है. अलीगढ़ और मेरठ में मेयर पद पर हार के लिए भी इसी फैक्टर को जिम्मेवार बताया जा रहा है.
2019 और अगले विधानसभा में नई चुनौती होंगे ओवैसी और केजरीवाल
बीजेपी को अगले लोकसभा चुनाव और अगले यूपी विधानसभा चुनाव में जिस नई चुनौती का सामना करना पड़ेगा वह हैं असदुद्दीन ओवैसी और अरविंद केजरीवाल. अभी तो बीजेपी ने शायद इन्हें गंभीरता से भी नहीं लिया होगा लेकिन इन लोगों ने कुल जमा जितनी सीटें जीती हैं, इन्हें हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
आम आदमी पार्टी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि पार्टी के कार्यकर्ता जीत से उत्साहित हैं और संगठन को बड़ा किया जा रहा है. दिल्ली से कुछ नेता अब आने वाले वक्त में मेरठ और लखनऊ को बेस बना सकते हैं.
हालांकि राजनीति के जानकार बताते हैं कि इतने कम वोट इन पार्टियों को मिले हैं जिसका मतलब जनता इन्हें ऑप्शन के रूप में नहीं देख रही है. यूपी का मुस्लिम अपना वोट अभी भी सपा और बसपा को ही देना पसंद करता है. हालांकि इनकी जीत को खास तौर पर AIMIM की जीत को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता.