नई दिल्ली: बीजेपी तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मौजूदा विधायकों के जमकर टिकट काटेगी. सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पहली सूची में 14 टिकट काटने के बाद बीजेपी आलाकमान 3 और मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकतें हैं. सूत्रों के मुताबिक राज्यों के चुनावों के बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में भी इसी पैटर्न पर मौजूदा सांसदों के भी टिकट काटे जायेंगे. तकरीबन 40 फीसदी मौजूद सांसदों के टिकट काटे जा सकते हैं.


बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति की अगली बैठक नवंबर के पहले सप्ताह में होगी. विधानसभा चुनाव में जीत के लिए पार्टी सिटिंग विधायकों के खूब टिकट काट रही है. अभी तक छत्तीसगढ़ में 77 उम्मीदवारों के नामों का एलान बीजेपी कर चुकी है उसमें से 14 मौजूदा विधायकों के टिकट काट भी चुकी है. आलाकमान की इंटरनल रिपोर्ट्स के आधार पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जा रहे हैं. आलाकमान एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए टिकट काटने की रणनीति पर काम कर रही है इसके लिए स्थानीय स्तर पर हुए सर्वे के आधार पर टिकट काटे जा रहे हैं.


छतीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी 40 फीसदी तक मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की तैयारी बीजेपी आलाकमान कर चुका है. मध्य प्रदेश में तो संघ भी 75 मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की सिफारिश कर चुका है. आलाकमान की आंतरिक रिपोर्ट में भी यही 70 से ज़्यादा विधायकों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी उभर कर सामने आई है.


सबसे बुरे हालात राजस्थान में हैं. राजस्थान में तकरीबन पचास फीसदी से ज़्यादा विधायकों से जनता बुरी तरह नाराज़ है. ऐसे में आलाकमान 50 फीसदी तक मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकते हैं.


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बीजेपी आलाकमान ने राजस्थान के ग्राउंड रिपोर्ट के लिए तीन नेताओं गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल और प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर से सर्वे कराया है. इसी सर्वे और ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर हरेक नाम को खुद अमित शाह परखेंगे. प्रदेश ईकाई से आए नामों का सर्वे के आधार पर मिलान करेंगे और सिटिंग विधायकों के टिकट कटेंगे.


सूत्रों के मुताबिक इन तीन राज्यों में विधानसभा चुनावो में जिस तरह से मौजूदा विधायकों के टिकट आलाकमान काट रहे हैं ठीक उसी तर्ज पर लोकसभा चुनावो में भी 40 फीसदी तक मौजूदा सांसदों के टिकट काटे जा सकते हैं. आलाकमान विधानसभा चुनावों के बाद हर राज्य के लोकसभा सांसदों की रिपोर्ट लेना शुरू करेंगे. सूत्रों का कहना है कि इस प्रक्रिया को बीच-बीच में दोहराया जाता रहता है ताकि लोकसभावार सांसद और उसके लिए जनता के मन की बात को समझा जा सके लेकिन उसके बाद भी आखिरी सर्वे सबसे ज़्यादा प्रभावी भूमिका निभाएगा.


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